फिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए
फिर वही सपना सजाना तो चाहिए
यूँ मशक़्क़त इश्क़ में करनी चाहिए
जाम नज़रों से पिलाना तो चाहिए
अब ख़ता करने जहाँ जाना चाहिए
अब पता उसका बताना तो चाहिए
दिल जगाकर नींद में ख़्वाबों को सुला
ये जहाँ अपना बनाना तो चाहिए
दिन निकलते ही जगाते हो तुम किसे
शाम को आ कर बताना तो चाहिए
रोकती है गर नुमाइश थकने से तब
इस अता से घर बनाना तो चाहिए
आपबीती, आदतन या बीमार है
दर्द कितना है बताना तो चाहिए
आसमाँ से गुफ़्तुगू होती ही नहीं
लड़ झगड़ने को ज़माना तो चाहिए
-मुहम्मद आसिफ अली
------------------------------------------------------------------------