हिंदी अवधी की प्रथम महिला दलित कहानी-छोट क चोर' -लेखिका श्रीमती मोहिनी चमारिन

 हिंदी अवधी की प्रथम महिला दलित कहानी

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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादन में सितम्बर 1914 के अंक में पटना के हीरा डोम की कविता अछूत की शिकायत इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित सरस्वती में प्रकाशित हुई जिसे हिंदी की पहली दलित रचना होने का सम्मान मिला और संभवतः यह भोजपुरी की भी पहली दलित रचना है । इसके ठीक ग्यारह माह बाद अगस्त 1915 में इलाहाबाद से ही प्रकाशित ओंकारनाथ वाजपेई के सम्पादन में अल्पज्ञात पत्रिका कन्या मंनोरंजन के ग्यारहवें अंक में छोट क चोर' शीर्षक से एक कहानी प्रकाशित हुई जिसकी लेखिका श्रीमती मोहिनी चमारिन हैं । लेखिका के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल सकी है। लेकिन इस कहानी को हिंदी व अवधी की पहली दलित कहानी का गौरव प्राप्त है। जो जेएनयू के पीएचडी के शोधार्थी नैया को अपने शोध के दौरान प्राप्त हुई।

        छोट क चोर'

लेखिका श्रीमती मोहिनी चमारिन
अनुवादक उदय राज वर्मा उदय

 बहुत समय पहले एक बार चोरों ने उत्पात मचा रखा था। कहीं आज उसकी लोटा थाली चोरी हो गई तो कल उसकी थार( पीतल का थालीनुमा बड़ा बर्तन) , कहीं आज अमुक के यहां सेंधमार कर चोरों ने घर का सारा सामान उडा़ लें गये। यहां तक कि पानी पीने का लोटा भी नहीं छोड़ा।जिधर देखो उधर ही चर्चा हो रही कि पाकेट में पैसे रखकर मार्केट जाओ और तनिक ध्यान हटा नहीं कि पैसे नदारद। चोरों का मनोबल इतना बढ गया कि वे आंखों का काजल तक निकाल लें रहें हैं। हाकिमों पुलिस वाले काफी परेशान हुए और तलाशी तहकीकात की गई,मगर चोरों का कोई सुराग नहीं मिला। इधर रोज चार छः लोगों के घरों में चोरियां होने लगी जिससे परेशान हो कर हाकिम ने घोषणा करवाई कि जो कोई भी चोर या चोरों के गिरोह को पकड़वाएगा ,उसको एक सौ रुपए का इनाम दिया जाएगा।
   एक अहीरिन ( यादव जाति की स्त्री) थी और पांच छः वर्ष पहले विधवा हो हुई थी । मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपने तीनों लड़कों का पालन पोषण करती थी क्योंकि लड़के छोटे थे। सो एक औरत की कमाई में चार आदमी का खर्च चलाना मुश्किल है। अतः दिन में मजदूरी करती और रात में पिसौनी ( दूसरे के लिए गेहूं से आटा बनाना) करती थी। इतना परिश्रम करने के कारण उसका पौरुष कम हो गया और वह बिमारी का शिकार हो गयी।उसकी अस्वस्थता को देखकर सबसे बड़ा व बीच वाले लड़के ने किसी के यहां काम करना शुरू कर दिया लेकिन कहीं थूंक ( लार) से सत्तू गूंथा जा सकता है? छोटे छोटे लड़कों की कमाई से कहीं चार लोगों की गृहस्थी का खर्च चल सकता है? फिर भी मां थोड़ा बहुत काम करती थी। अतः उसने चारपाई पकड़ लिया।अब क्या किया जाए? मां बीमार, घर में खाने को नहीं । बीच और छोटे वाले लड़के मन्नत  मांगने लगे कि हे राम कहीं से एक एक चोर मिल जाता तो बहुत अच्छा होता।
छोटा लड़का- आओ कहीं चोर ढूंढ़े ,क्या पता कहीं मिल ही जाए।चोर कैसा होता है?
बीच वाला- चोर काला काला होता है उसकी आंखें लाल होती है मोटी सी।
छोटा- जैसे जगेसर क्या? जगेसर चोर है? 
बीच वाला- अबे पगले जगेसर तो इंसान हैं।
छोटा- तो चोर कैसे होता है?
बीच वाला- चोर चोरी करता है ,रात को बाहर निकलता है। उसे देख कर बड़ा डर लगता है। मुर्दा मिट्टी ( शमशान की मिटटी) रखता है और घर में घुसते ही फेंककर लोगों को बेहोश कर देता है।
छोटा- तुमने चोर देखा है? 
बीच वाला- मैंने तो नहीं देखा , सुना जरुर है। ननका ने देखा है। वह मुझे बता रहा था। 
छोटा- और ननका ने कहां देखा?
बीच वाला- एक दिन वह अपने बाप के साथ पंचायत से रात में आ रहा था कि उसने देखा चोर तालाब में पानी पी रहा था। लेकिन वह मुझे झुठला रहा था कि चोर इंसान की तरह होता है।
छोटा- तो तुमने क्या कहा?
बीच वाला- मैंने कहा- मुझे मत बताओ। मैं जानता हूं।चोर दूसरा और इंसान दूसरा होता है।
बड़ा लड़का- अरे द्वारका ,ओ लल्लू! चलो दौड़ो बुआ आई है।
   तीनों दौड़कर बुआ के पास गए।एक बुआ से लिपट गया तो दूसरे ने गठरी खोल कर लाई गुड़ चने का स्वाद लेते हुए बुआ को बातों से स्पर्श करने लगा।
द्वारिका- बुआ, तूने कभी चोर देखा है? वह कैसे होता है? 
बुआ- चोर मनुष्य की तरह होता है और कैसे होता है?
द्वारिका- मैंने तो सुना है चोर काला काला लाल आंखों वाला होता है बुआ! मैंने दो चीजें अभी तक नहीं देखी, एक चोर दूसरा हाकिम।
बुआ - अरे पगले! चोर भी इंसान है और हाकिम भी इंसान है। चोरी करने वाले चोर कहलाएंगे।चोर के कान पूंछ थोड़े ही होता है। जैसे हम इंसान हैं वैसे चोर भी इंसान। रात के चोर दिन के साहूकार और हाकिम , ओहदा पा गए कपड़ा पहन लिया हाकिम हो गये।वे इंसान छोड़ जानवर थोड़े ही होते हैं। हम तुम चोरी करें, गठरी ( पाकेट) मारें तो चोर कहलाएंगे।
द्वारिका - हां बुआ! परसों यहां हाकिम आए तो उनके लिए जमीन में तीन चार दिन पहले से ही खूंटा गाड़ा जा रहा था। तो मैंने सोचा कि वह कोई बहुत बड़ा जानवर होगा। तभी तो इतने खूंटे में बांधा जाएगा, जबकि गाय भैंस तो एक ही खूंटे में बांधी जाती है। तो बुआ मैं रास्ते में खेल रहा था कि लोग कहने लगे भागों हाकिम आ रहा है सब इधर उधर छिप गए। मैं तो पहले से ही डर गया था सो भागा कि , लेकिन फिर पीछे देखा तो मुझे आदमी की तरह लगा। ऐसे चोर भी आदमी ही है।
बुआ- ये तो न पगले में है, न समझदार में। अरे कुलनाशी चोर और हाकिम दोनों आदमी ही हैं।
द्वारिका- मैंने तो सुना है कि हाकिम आदमी को पकड़ता है और उसके साथ सिपाही रहते हैं।
बुआ - बिना कसूर के हाकिम का बाप भी सजा नहीं दे सकता और कसूर हो तो मैं ही तुम्हें सजा दे सकती हूं। हाकिम से डरना नहीं चाहिए,वह चोर बदमाश को सजा देता है न की अच्छे आदमी को।
द्वारिका- अच्छा जो चोर दिन को चले तो पहचाना जा सकता है?
बुआ- चोर के कान पूंछ थोड़े ही होता है जो पहचाना जा सके।आज चल मेरे साथ मैं तुम्हें हाकिम और चोर दोनों दिखाती हूं।
   बुआ के साथ जाकर द्वारिका और लल्लू ने  हाकिम और चोर को देखा तो यकीन आ गया कि चोर व हाकिम दोनों इंसान हैं। 
   हां तो घर की आर्थिक तंगी के कारण मां बीमार हो गयी ।अब दवा का खर्च कहां से आए ,तो लल्लू ने एक दिन कहा - 'भैया ! मैं घर में कोई काम नहीं करता और न ही मुझे कोई नौकरी पर रखता है।तो ऐसा किया जाए कि मैं चोर बन जाऊं और तुम मुझे पकड़ कर हाकिम के पास ले चलो, जिससे रुपए मिले और मां की दवा हो । मुझे चाहे जो सजा हो।'
द्वारिका- ' जो ऐसा करना है तो फिर मैं चोर बन जाता हूं। तुम इतने छोटे हो , मैं तुम्हें जेलखाना जाने नहीं दूंगा और मां भी तुम्हारे बिना प्राण दे देगी।'
लल्लू -'नहीं भैया कुछ काम करके घर का खर्च चलाते हो और मां की सेवा भी करते हो। मैं कुछ नहीं करता,सो मुझे चोर बन जाना ही उचित है। मां पूछें तो कहना कि बुआ के साथ जबरदस्ती भाग गया।
 बहुत कहा सुनी के बाद द्वारिका राजी हो गया और दूसरे दिन डिप्टी के सामने जाकर लल्लू ने कबूला कि मैं चोरी करता हूं।द्वारिका बोला कि हां साहब मैंने चोर को पकड़ा है। डिप्टी ने द्वारिका को सौ रुपए खजाने से इनाम दिलाया, लेकिन द्वारिका के चेहरे पर खुशी की झलक देखने को नहीं मिली।जिससे साहब ने सोचा जरुर दाल में कुछ काला है।इधर द्वारिका ने मां के खातिर कुछ फल और दवा लेकर घर चला। लेकिन मां लल्लू को न पूछें इसलिए घर के बाहर भागा। लल्लू को न देख कर मां को शंका हुई और द्वारिका को बुलाया- " द्वारका ओ द्वारका! " द्वारिका के होश गायब। लेकिन जब वह बहुत चिल्लाई तो द्वारिका को सामने आना पड़ा।
मां - लल्लू को कहां छोड़ आए ।
   द्वारिका झूठलाने का उपाय भूल गया। जिसने कभी झूठ नहीं बोला उसके मुख से झूठ नहीं निकलता।सो उसकी आंखों में आंसू आ गए और उसने मां को सब सच सच बता दिया।अब मां बहुत क्रोधित हुई और बोली- 
     " अब तो मेरी तबियत ठीक नहीं है ऊपर से एक न एक चिढ़ाते रहते हैं। भगवान मुझे मौत भी नहीं देते। अब जल्दी से लल्लू को लेकर घर आओ नहीं तो कुछ अन्न जल ग्रहण नहीं करुंगी, अपनी जान दे दूंगी।
द्वारिका रोने लगा- एक तो मां रो रोकर प्राण देने को तैयार दूसरे लल्लू वहां पता नहीं कैसे हो? हवन करते हाथ जले ।
   डिप्टी साहब छिपकर सब सुन रहे थे सो उन्होंने वापस जाकर  बुलाया और पूछा- "लल्लू जो कुछ तुम चुराए हो, सच सच बताओ। मुझे सब मालूम है ।"
  लल्लू ने सब सच सच बता दिया कि मां की दवा की खातिर उसने ये सब किया। तो हाकिम बड़े खुश हुए । उन्होंने लल्लू को गोद में उठा कर मुख चूमा और ईश्वर से प्रार्थना कि-" ईश्वर मुझे भी ऐसा लड़का देना।तुम्हारी गरीब मां सातों मुल्कों के राजा से भी बढ़कर अमीर ।" 
डिप्टी ने खजांची को आदेश दिया कि इस लड़के को दो थैली रुपए और देकर सिपाही के साथ घर तक पहुंचाओ ।
लल्लू  हंसी खुशी रुपए लेकर घर लौटा तो द्वारिका की जान में जान आई। मां इतनी खुश हुई मानों सांप को खोई हुई मणि मिल गई और वह बिना दवा के ही स्वस्थ हो गई।
    ईश्वर सभी को ऐसी संतान दें।
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 चेतावनी-उपरोक्त कहानी नूतन कहानियां के नियमित अंक अक्टूबर 2021 में प्रकाशित हो चुकी है। किसी भी रूप में बिना अनुमति प्रकाशन पर कापीराइट एक्ट के अर्न्तगत कार्यवाही की जायेगी।