मूंज की रस्सी

 




प्लास्टिक ने बहुत सी बायो डिग्रेडेबुल सामग्रियों को चलन से बाहर कर दिया है जिनमें एक है मूंज । चित्र नम्बर 1 में मूंज की रस्सी बंटी जा रही है । मेरे बचपन में यह दृश्य आम था पर प्रौढावस्था तक 60 वर्ष में समाज व व्यवस्था इस तरह बदली कि जूट की रस्सी से नयी पीढी अपरिचित हो गयी है ।

मूंज एक घास है , पवित्र घास जिसे कुश भी कहा जाता है । धार्मिक कार्य में पवित्रता के लिए कुश की पैंती ( मुद्रिका), मुष्टि , आसन व चटाई आदि का प्रयोग किया जाता है । पुराने छप्पर के घरों में छावन के रूप में भी कुश का प्रयोग किया जाता था । कुश को आप चित्र 3 व 4 में देख सकते हैं ।
मेरे बचपन में किसानी के लिए लम्बी रस्सियों , नार आदि की आवश्यकता होती थी । बरसात के दौरान किसान मूंज की रस्सियों को लकडी की भारी तकली में बंटते थे । पर बरसात बाद कार्तिक से लेकर जेठ महीने तक सूत की रस्सी बंटा करते थे । सूत असल में काटन नहीं जूट की एक देशी वेरायटी हुआ करती थी जिसे हम लोग सनई या पटवा बोलते थे । हजार-हजार मीटर लम्बी पतली रस्सियां बंटकर उन्हे तेहरा-चौहरा कर मोटी रस्सियों का निर्माण किया जाता था । सनई का काॅटन सूत वाले काॅटन यानी रूई की तरह होता था पर रूई के रेशों से मोटा , कई गुना मोटा । उसकी पतली डोर बंट कर गांव के धोबी बिरादरी के लोग टाट-पट्टी, अनाज भरने के बडे बडे कैरी बैग बनाते थे । फसल कटने पर सौ सौ गधों के झुण्ड खलिहान में ले जाकर धोबी पूरे अनाज को अपने बनाए बैग में भर गदहों पर लादकर चुटकी बजाते हमारे घर ले आते और अनाज पलट देते , अनाज का एक छोटा टीला तैयार हो जाता । उनके एक बोरे में इतना अनाज भरा होता था कि दो हट्टे कट्टे लोग बडे श्रम के बाद गदहे की पीठ से उसे उतारकर हमारे आंगन तक ला पाते रहे । जब बोरा पलटा जाता तो आधा किलो से लेकर किलो भर अनाज धोबी के बोरे में बने उल्टे जेब में फंस जाया करता । हमारे कारिन्दा (मास्टर सर्वेन्ट)लोग बडी मुस्तैदी से जांच करते और चालाकी से हडपे गये अनाज को फिर निकलवा लेते । कई बार इस तरह की रिकवरी 40 से 50 किलो अनाज तक होती । दर असल यह धोबियों का मजदूरी के आगे का बोनस हुआ करता था । मेरे बाबा पण्डित शिवराम गर्ग को सब बताया जाता , जिस वर्ष फसल अच्छी होती उस वर्ष वह पूरा बोनस धोबियों को दे देते अन्यथा उतना अनाज देते हुए धोबियो को भविष्य के काम के लिए अनुबन्धित कर लेते । पांच किलो तक अनाज की रिकवरी पर वह कोई ऐक्शन नहीं लेते , उसे पन-पियाव कहकर धोबियों के साथ जाने देते ।
23 अगस्त को अपने खेत में धान की फसल देखकर लौटते मुझे गांव के एक हिस्से में मुझे एक व्यक्ति मूंज की रस्सी बंटते दिखा तो मैंने आप सब मित्रों के लिए उसे सहेज लिया ।