भाषा विभाग उ0प्र0 शासन के नियंत्रणाधीन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, इन्दिरा भवन, लखनऊ में जनभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव ने की।
माँ वीणा पाणि के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर माल्यार्पण के साथ संगोष्ठी का शुभारम्भ किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डाॅ0 त्रिवेणी प्रसाद दुबे जी नें अपने वक्तव्य में कहा कि जन भाषा एवं सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी भाषा के उन्नयन हेतु राजकीय प्रयासों के अंतर्गत शैक्षणिक प्रणाली में आवश्यक संशोधन करते हुए हिन्दी के उत्थान हित सकारात्मक सामाजिक संास्कृतिक और आर्थिक परिवेश सृजित करना होगा इसके अतिरिक्त हिन्दी साहित्यिक संगठनों को निष्काम भाव से हिन्दी भाषा के स्वस्थ विकास हेतु संकल्पित विधि से कार्य करना होगा।
विशिष्ट अतिथि श्री पद्मकान्त शर्मा प्रभात जी ने कहा कि हिन्दी भाषा समर्थ व सशक्त जन भाषा का रूप ले चुकी है। वह सम्पर्क भाषा के रूप में देश विदेश में अपनी क्षमता स्थापित कर रही है। हिन्दी भाषा अभी भी सबसे क्षमतावान सहज अग्रणी भाषा है जो देश ही नहीं विदेशों से सम्पर्क भाषा के भूमिका में प्रमाणिकता साबित कर रही है।
मुख्य वक्ता डा0 दुर्गेश कुमार चैधरी, जी ने कहा कि भाषा उत्पत्ति मानव विकासवाद परम्परा की देन है। यह धीरे धीरे समाजों के निर्माण के साथ विकसित हुई। ज्ञान वृक्ष सिद्धान्त के रूप में मानव मस्तिष्क में हुए बदलाव ने सम्प्रेषण की शक्ति को बढा दिया है। भाषा के रूप भाषा का विकास पहले हुआ भाषा के अन्य रूपों का विकास बाद में। भाषा के माध्यम से हमने संस्कृतियों, सभ्यताओं, मूल्यों को समझने में सहयोग किया। भारतीय सन्दर्भ में हिन्दी निश्चित रूप से एक जनभाषा है। और व्यापकता के आधार पर यह सम्पर्क भाषा के रूप में स्थापित हो रही है। जिस तरह मैं बोलता हूं उस तरह तू लिख उसके बाद भी मुझसे बडा तू दिख।
कार्यक्रम का संचालन डा0 रश्मिशील जी ने किया इस कार्यक्रम में निदेशक जी ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। इस अवसर पर अंजू सिंह, मीना सिंह, हर्ष राज अग्निहोत्री, रवि, ब्रजेश, प्रियंका टण्डन, सोनी, शशि, आदि अनेक साहित्यकार, विद्वान व इंदिरा भवन में कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी गण उपस्थित रह उपस्थित विद्वानों, श्रोताओं द्वारा कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की गई।