बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं क्षेत्र के विकास पुरूष डा0 बाहुबलि कुमार जैन का जन्म 17 जून 1934 को ललितपुर तत्कालीन जिला झांसी में हुआ था । उनके पिता प्राणाचार्य पं0 सिद्धिसागर जैन देश के जाने माने आयुर्वेदिक चिकित्सक होने के साथ-साथ एक प्रतिष्ठित जैन पंडित थे। श्री प्राणाचार्य जी की भावना थी कि उनके बेटे बाहुबलि चिकित्सा क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त कर ललितपुर क्षेत्र के दीन दुखी जनों की सेवा करें। इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुये बाहुबलि को शिक्षित करने में उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। डा. बाहुबलि की प्राथमिक शिक्षा ललितपुर में नदीपुरा स्थित श्री रामराजा मंदिर विद्यालय में हुई, उसके बाद कक्षा 6 से 10 तक की शिक्षा उन्होने पुरूषोत्तम दास टण्डन हाईस्कूल ललितपुर से प्राप्त की। डा. बाहुबलि बचपन से ही अत्याधिक प्रतिभावान एवं अनुुशासित बालक थे। शिक्षा में रूचि के अतिरिक्त बालक बाहुबलि सभी प्रकार के खेलों, तैराकी, संगीत एवं वाद विवाद में काफी रूचि रखते थे। कक्षा 10 के बाद ललितपुर में माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध न होने के कारण पिता जी ने उन्हें डी.ए.वी. कालेज कानपुर में प्रवेश कराया जहां से बाहुबलि ने इन्टरमीडिएट परीक्षा पास करने के बाद विज्ञान में स्नातक की उपाधि (बी.एस.सी.) प्राप्त करते हुए कानपुर विश्व विद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। इसी दौरान बाहुबलि का विवाह सन् 1951 में टीकमगढ़ जिले के प्रतिष्ठित जैन परिवार के श्री रघुवर दयाल पवैया की सुपुत्री सौ. अरूणा जैन के साथ हो गया। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद बाहुबलि ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए स्वास्थ्य सेवा में अपने जीवन को समर्पित करने का संकल्प लिया और सन् 1952 में गजरा राजा मेडिकल कालेज, ग्वालियर जो तत्समय आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था, में डाक्टरी (एम.बी.बी.एस.) के लिये होने वाले प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित होकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। अपनी प्रतिभा एवं परिश्रम के बल पर बाहुबलि अपने शिक्षकों, सीनियर छात्रों, सहपाठियों एवं जूनियर छात्रों के अत्याधिक प्रिय थे। सन् 1957 में बाहुबलि ने एम.बी.बी.एस. की परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त करते हुए सर्वाधिक अंक प्राप्त करके अपने कॉलेज में एक नया रिकार्ड स्थापित किया। उनकी इस सफलता से प्रभावित होकर मेडिकल कालेज एवं आगरा विश्व विद्यालय द्वारा उन्हें उच्च शिक्षा का प्रस्ताव दिया गया। किन्तु डा. बाहुबलि जी के पिताश्री की यह इच्छा थी कि वह ललितपुर आकर चिकित्सा के माध्यम से स्थानीय एवं क्षेत्रीय लोगों की सेवा करें। इसी उद्वेश्य से पत्नी अरूणा को भी विवाह के उपरांत साथ-साथ शिक्षा उपलब्ध करवायी गयी और उन्होने भी ग्वालियर से ही आयुुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में डाक्टरी की उपाधि प्राप्त की।सन् 1957 में डा. बाहुबलि एवं डा. अरूणा ने ललितपुर में स्थित मुख्य मार्ग पर अपना अस्पताल प्रारम्भ किया।
ललितपुर में निजी क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले डा. बाहुबलि कुमार जैन जहां सबसे पहले एम.बी.बी.एस. चिकित्सक थे, वहीं डा. अरूणा जैन ललितपुर की सर्वप्रथम महिला चिकित्सक थंी। श्री डाक्टर जैन ने अपने चिकित्सा कार्य के प्रारंभ से ही अपने चिकित्सालय को सर्व सुविधा एवं साधन युक्त बनाया। उस समय जबकि राजकीय चिकित्सालय में भी एक्सरे, पैथोलॉजी आदि की समुचित व्यवस्था नहीं थी, उन्होंने अपने चिकित्सालय में एक्सरे, पैथोलॉजी, मैटेर्निटी, शल्य चिकित्सा आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराते हुये रोगियों को निःशुल्क आवास व्यवस्था हेतु आतुरालय एवं रोगियों के लिए निःशुल्क रोगी वाहन उपलब्ध कराया। तत्समय ललितपुर क्षेत्र दस्यु प्रभावित क्षेत्र था किन्तु डा. जैन उनकी परवाह न करते हुये असाध्य रोगियों का परीक्षण एवं चिकित्सा करने हेतु ललितपुर के ग्रामीण अंचलों में निडरता से जाकर रोगियों की उपयुक्त चिकित्सा करते थे जिससे चिकित्सा क्षेत्र में उन्होंने अल्पकाल में ही काफी ख्याति अर्जित कर ली थी।अपने पूज्य पिता पं. सिद्धि सागर जी प्राणाचार्य से आयुर्वेदिक चिकित्सा उन्हें विरासत में मिली थी जिसे उन्होंने अपने चिकित्सा कार्य में प्रयुक्त किया और क्षेत्र के मरीजों को सुलभ एवं सस्ती चिकित्सा उपलब्ध कराई। कालांतर में डा. बाहुबलि की बहुमुखी प्रतिभा, विद्वता, कुशल प्रबंधकीय व प्रशासकीय क्षमता, अथक परिश्रम, अपार इच्छा शक्ति, आशावादिता, निडरता, दूरदर्शिता तथा विशिष्ठ नेतृत्वशैली के सम्मिश्रण से जो व्यक्तित्व न सिर्फ ललितपुर के बल्कि पूरे राष्ट्र के सामने उभर कर आया, वह निःसंदेह स्मरणीय है और अमर रहेगा। आज हजारों लाखों लोग डा. बाहुबलि कुमार को एक शिक्षित चिकित्सक, आयुुर्वेदज्ञाता, एक सफल राजनेता एक समर्पित समाजसेवी, एक निःस्वार्थ धर्मनेता, एक निष्पक्ष पत्रकार/ सम्पादक/ लेखक, साहित्यकार,सफल उद्योगपति एवं कृषक के रूप में स्वयं को उनसे जुड़ा मानते हैं।
विनम्रता के साथ दृढ़ता और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना व स्पष्टवादी होना,उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसे लक्ष्य थे जिसके कारण डा. बाहुबलि को अपने प्रशंसकों के साथ-साथ आलोचकों की भी कमी नहीं रही है। डा. बाहुबलि ने जिस क्षेत्र में भी कदम रखा उसमें वह सदैव ही अग्रणी पंक्ति में रहे। एक विशाल व्यक्तित्व के जो अद्भुत एवं आकर्षक रूप श्री डा. बाहुबलिकुमार जी के व्यक्तित्व में देखे गये वह संक्षिप्त रूप से यहां प्रस्तुत हैः-
चिकित्सक: उन्होंने चिकित्सा की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। दीन दुखियों की सेवा करना ही उनका मुख्य उद्देश्य रहा। उनमें पूर्ण आत्मविश्वास था इसलिए वह बड़े से बड़े ऑपरेशन भी स्वयं कर लेते थे। उन्हें आयुर्वेद का पूरा ज्ञान था। आयुर्वेद का भरपूर ज्ञान उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला। जिस किसी मरीज के पास फीस के पैसे नहीं होते थे उससे बिना पैसे लिए उसका निःशुल्क उपचार करते थे। आज भी लोग डा. बाहुबलि के अस्पताल को नहीं भूल पाये हैं।तत्कालीन क्षय रोग, धनुष टंकार (टिटेनश) आदि जैसे घातक मर्ज के मरीजों की चिकित्सा डा. साहब अपने चिकित्सालय में आयुर्वेदिक एवं एलोपैथिक औषधियों से सहज ही कर देते थे एवं उनके चिकित्सालय में आने वाले मरीज शत-प्रतिशत स्वस्थ होकर जाते थे। चिकित्सा के क्षेत्र में आंचलिक, क्षेत्रीय, दूरवती जनसामान्य आज भी उन्हें याद करते हैं।
पत्रकार: आजादी के पूर्व से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘सिद्धि’ का सम्पादन किया। साप्ताहिक जनप्रिय वर्ष 1966 से क्षेत्रीय आवाज को सरकार, प्रशासनिक अधिकारियो एवं जनप्रतिनिधियों के पास तक पहुंचा रहा है। अपने प्रकाशन काल से ही इस समाचार पत्र ने तत्कालीन ललितपुर सब डिवीजन को जनपद का दर्जा दिलाने हेतु एक मुहिम चलाई जिसमें नगर क्षेत्र एवं अंचल के जागरूक कार्यकर्ताओं का सहयोग लेकर ललितपुर सब डिवीजन को 1974 में जनपद का दर्जा दिलाने में सफलता प्राप्त की। आज भी साप्ताहिक जनप्रिय का प्रसार जनपद के अतिरिक्त देश के विभिन्न प्रांतो, जिलों में हो रहा है। डा. साहब की यह सोच थी कि हम अपने क्षेत्र की आवाज दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से ही बुलंद कर सकते हैं, और ललितपुर जिले में कोई भी दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन नहीं हो रहा है। अतएव उन्होंने अपना मन ललितपुर जनपद से दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित करने का बनाया एवं 6 सितम्बर 1992 को दैनिक जनप्रिय का प्रकाशन प्रारंभ किया। जिसके वह प्रधान सम्पादक थे। इस समाचार पत्र ने अल्पकाल में ही बुंदेलखण्ड में अपना अहम स्थान बना लिया है।
डा. बाहुबलि जी के देश के विभिन्न समाचार पत्र,पत्रिकाओं में प्रत्येक विषय पर विकास परक लेख नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं, जिन्हें पाठकों ने सदैव सराहा है।
साहित्यकार: डा. बाहुबलि जी स्वयं एक साहित्यकार थे एवं साहित्यकारों का आदर किया करते थे। डा. जैन ने अनेकों साहित्यकारों के उपन्यास, काव्य संग्रहों का प्रकाशन किया जिनमें स्व. श्री पं. सुकदेव प्रसाद तिवारी के उ.प्र. सरकार द्वारा पुरुस्कृत उपन्यास ‘‘निर्वाह’’ का प्रकाशन किया। देश की प्रसिद्ध कवित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना का खण्ड काव्य गीतप्रिया का भी प्रकाशन किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कविवर गोविंददास पालीवालों के गीतों का संकलन ‘‘गोविंद गीतांजलि’’ आदि साहित्यिक पुस्तकों का प्रकाशन किया एवं अपने अनेकों विकास परक लेखों से जन जागृति और क्षेत्र के विकास को दिशाबोध दिया।
समाजसेवी: डा. बाहुबलि कुमार जी का नाम समाजसेवा में सहज ही आ जाता है। बाबू जयप्रकाश जी के नेतृत्व में जब दस्यु समर्पण का अभियान देश में चलाया गया उसी के तहत ललितपुर क्षेत्र के दस्युओं का समर्पण कराने में डा. बाहुबलि कुमार जी की अहम भूमिका रही। इस क्षेत्र के खूंखार दस्यु शंकर सिंह जैसे दस्युओं का आत्मसमर्पण कराने में उनका सहयोग क्षेत्रवासी सदैव याद रखेंगे।
वह सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे। उन्होंने हिन्दू, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों के धार्मिक स्थानों पर कई ऐसे विकास कार्य कराये जो सदैव स्मृति में रहेंगेे। क्षेत्र के विकास के लिए उन्होंने कई योजनायें तैयार करायी। ललितपुर को जिला बनवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। ललितपुर जिले के आर्थिक ,पर्यटन एवं औद्योगिक विकास के लिए कई योजनाएं तैयार की एवं तत्कालीन जनप्रतिनिधियो के सहयोग से उनका क्रियान्वयन कराया जिससे आज भी जनता लाभान्वित हो रही है।
धर्म सेवी: वे पक्के धार्मिक पुरूष थे। धर्म के कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे। पिता जी के बाद पूर्वजों का जो दिगम्बर जैन मंदिर मड़ावरा में था उसका रख रखाव, पूजा अर्चन की व्यवस्था, धर्मशाला का निर्माण आदि कार्य कराना, स्थानीय सिविल लाइन स्थित सिद्धि सागर दिगम्बर जैन मंदिर की देखभाल, पूजा अर्चन की व्यवस्था करना जिसके कारण सिविल लाइन में आवासित जैन समुदाय के नर-नारियों को धर्मलाभ प्राप्त करने का सहज ही अवसर मिल रहा है।
श्री डा. बाहुबलि कुमार जैन की एक भावना थी कि नदीपार के जैन बंधुओं को एवं क्षेत्र के जरूरतमंद जैनियों को सहज ही आवास और पूजा अर्चन की व्यवस्था हो इस हेतु उन्होंने नदीपार पुराने सागर रोड पर एक जैन कालोनी, बाहुबलि नगर के नाम से स्थापित की एवं साधर्मी भाइयों के सहयोग से वहां एक दि. जैन मंदिर का निर्माण कराया। जहां पर वह नित्य पूजा अर्चन करते थे।
ललितपुर जनपद में देवगढ़ एक ऐसा क्षेत्र है, जहां प्राचीन जैन मूर्तियों की भरमार के साथ-साथ दशावतार मंदिर, वराह मंदिर, सप्तऋषि मंदिर, नाहर घाटी, सिद्ध की गुफा आदि ऐसे स्थल हैं, जो सैलानियों की दृष्टि से अत्यंत दर्शनीय एवं पूज्यनीय हैं। डा. जैन के हृदय में एक भावना थी कि वह उस क्षेत्र को इस तरह विकसित करायें जिससे वहां पर्यटकों की दृष्टि पड़े और उनका नियमित आना-जाना वहां हो। देवगढ़ के विकसित होने से जनपद का भी विकास होगा, यह उनकी परिकल्पना थी। अतएव उन्होंने जैन मूर्तिकला के लिए देश में विख्यात जनपद मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर देवगढ़ जी को उन्नत करने में अपना भरसक योगदान दिया और देवगढ़ जी को राष्ट्रीय मानचित्र पर पर्यटन के दृष्टिकोण से उन्नत कराया। जहां पर अब देश के कोने-कोने से हजारों पर्यटक आने लगे हैं।
राजनेता: डाक्टर बाहुबलि कुमार जी जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़े, क्षेत्रीय राजनैतिक कार्यकर्ता थे।जनपद के एवं जनपद के दूरांचलों के निवासियों से उनका गहरा संपर्क रहा करता था। वह जनपद के चप्पे-चप्पे से यहां की आम समस्याओं से पूर्ण रूप से परिचित थे। वह यह जानते थे कि इस क्षेत्र में क्या आवश्यकता है, यहां क्या कमी है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है? उसके निराकरण के लिए वह सदैव तत्पर रहा करते थे और उनकी निःस्वार्थ भावना क्षेत्रवासी समझते थे। अतएव क्षेत्र के अधिकांश लोग उन्हें अपना हितैषी मानते थे। वह शुरू से ही कट्टर कांग्रेसी थे। वह गांधी जी की नीतियों में विश्वास रखते थे, सदैव खादी का प्रयोग किया करते थे। उन्होंने निःस्वार्थ भाव से कांग्रेस और देश के लिए काम किया। देश के शीर्षस्थ जनप्रतिनिधियों से उनके संपर्क थे और वह सदैव पार्टी के अच्छे एवं लगनशील कार्यकर्ताओं की अग्रणी श्रेणी में थे। उन्होंने अपने राजनैतिक कार्यों में गरिमा को बरकरार रखा। अन्तिम समय तक निःस्वार्थ भाव से क्षेत्र एवं देशहित में कार्य करते रहे।
उद्योगपति: डा. साहब चाहते थे कि ललितपुर क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों को बढ़ावा मिले। इस क्षेत्र में लोग उद्योगों की स्थापना करें जिससे क्षेत्र के बेरोजगारों को रोजगार एवं मजदूरों को कार्य मिले। इस भावना के तहत ही उन्होंने जहां एक ओर क्षेत्र के बुद्धिजीवियों को उद्योग स्थापित करने को प्रेरित किया वहीं उन्होंने अपने पूज्य पिता श्री के द्वारा स्थापित औषधि निर्माण इकाई का आधुनिकीकरण किया। इस इकाई में उत्तम गुणवत्ता युक्त औषधियों का निर्माण प्रारंभ कराया। यह औषधि इकाई सिद्धि फार्मेसी प्रा. लि. आज औषधि निर्माण के क्षेत्र में अपना स्थान देश में रखती है, एवं इस इकाई में निर्मित होने वाली औषधियों का प्रयोग देश के चिकित्सक एवं रोगी विश्वास के साथ करते हैं।
श्री डा. जैन सहकारिता पर विश्वास रखते थे। उन्होंने सिद्धि संयुक्त सहकारी कृषि समिति लि. को स्थापित किया। सहकारिता के आधार पर कृषि कार्य को बढ़ावा देते हुये इस समिति के माध्यम से कृषि भूमि का उन्नयन करके उसे उत्पादन के क्षेत्र में अग्रसित किया।
जनपद ललितपुर में छपाई व्यवस्था के अभाव को देखते हुये उन्होंने एक ऑफसेट प्रिटिंग प्रेस की स्थापना की जो सिद्धि प्रेस एवं जर्नल प्रा.लि. के नाम से जाना जाता है, एवं प्रिटिंग की दृष्टि से यह इकाई जनपद में एकमात्र ऑफसेट प्रिटिंग इकाई है।
जनपद ललितपुर एक पिछड़ा हुआ क्षेत्र है, यहां यात्रियों को ठहरने की व्यवस्था का अभाव रहा है। इस कमी को दृष्टिगत रखते हुये डा. जैन ने स्थानीय स्टेशन के निकट होटल ललित पैलेस का निर्माण कराया जो सर्व सुविधा युक्त है। जिसमें बाहर से आने वाले यात्रियों को उपयुक्त सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस प्रकार श्री डा. जैन ने जनपद में अनेक ऐसी इकाईयों को स्थापित कर अपने आप को एक कुशल उद्योगपति निरूपित किया। वे जनपद के अग्रणी उद्यमी थे। उन्होंने क्षेत्र में औद्योगिक विकास हेतु सदैव पहल की। बाहुबलि नगर की स्थापना कर डा. जैन ने जनपद में एक ऐसा कार्य किया जिससे जैन धर्मानुरागियों को सहज ही आवास व्यवस्था उपलब्ध हुई और वहां उनके अथक प्रयास से निर्मित नवीन दिगम्बर जैन मंदिर जी के निर्माण से देव दर्शनों, पूजन अर्चन की सुविधा उपलब्ध हुई। सिद्धि संयुक्त सहकारी कृषि समिति की स्थापना उनकी सहकारी विचारधारा का एक स्पष्ट नमूना है। यदि गहराई से डा. बाहुबलि के जीवन का विश्लेषण किया जाये तो वह धर्म के साथ कर्म में विश्वास करने वाले एक परम आशावादी चिन्तक थे।
विकासशीलता उनके चिन्तन का एक अटूट हिस्सा था। कल्पनाओं और स्वप्नों को वास्तविकता में बदलने की क्षमता रखने वाले डा. बाहुबलि जैन के शब्द कोष में विश्राम, थकान, निराशा जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं था और उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक सुबह 4 बजे से रात 12 बजे तक कार्य में लगे रहने की निरंतरता को जारी रखा। दिनांक 29 मार्च 2002 को सुबह लगभग 9 बजे दिल का दौरा पड़ा और दिनांक 30 मार्च 2002 को सुबह 8.25 मिनट पर झांसी के सैनिक हवाई अड्डे पर सुप्रसिद्ध एस्कार्ट हास्पिटल दिल्ली के चार्टर्ड वायुयान में डा. बाहुबलि कुमार जैन ने अपने प्राण त्याग दिये। आज डा. बाहुबलि कुमार जैन के सद्कर्म और शिक्षायें उनको एक विकास पुरूष के रूप में स्थापित करती हैं।