इंजिनियर अरुण कुमार जैन
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वीरप्रभु जी,धरा पर आओ,हम सब आज पुकारें,
पल -पल दिखता घना अंधेरा, कैसे राह बनायें|
प्रेम, नेह, करुणा बतलायी, यहाँ युद्ध चहूँ ओर,
कई देशों में घना युद्ध है, हिंसा का है जोर,
बच्चे, बूढ़ो को भी मारें, कैसा अत्याचार!
नेह, प्रेम का नीर बहाकार, कर दो प्रभु उपकार |
अपने घर में मार रहे हैं,अब भाई को भाई,
निर्दयी होकर करें हत्या, करुणा, दया भुलाई.
भाई, माता, बहिनों का भी, करते ये संहार.
सद्बुद्धि आये, मन हो निर्मल, प्रभु दें करुणा उपहार |
आत्मघात भी अब करते हैं, बच्चे, घर की बेटी,
मात, पिता पर क्या बीतेगी, इसकी भी न सोची.
सुरभित उपवन में करते हैं, ये कंटक विस्तार,
सम्बल पा ये, सतत बढ़ें, पा दिव्यध्वनि उपचार |
तप,अपरिग्रह भूल गये, धन सम्पदा बढ़ाते,
अरबों, खरबों की सम्पति का, संग्रह करते जाते.
कहीं भूख से बिलख रहा, रोगी, अक्षम संसार,
उनकी पीर मिटाएं पहिले, ला करुणा, मन द्वार.
त्रिशला नंदन कृपा करो अब ,पुनः धरा पर आओ,
सेवा, करुणा,प्रेमकी सरिता, हर मन में अब लाओ,
अनेकान्त,अपरिग्रह, सत्य के खोलें सब नव द्वार,
जन्मकल्यानक पावन दिन पर, यह विनती बारम्बार |