दिल्ली,उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मी शीला जी दिल्ली में अनुवाद ब्यूरो की में एक अधिकारी थीं। 60 वर्ष की उम्र में उनक़ा कैंसर से निधन हो गया था। विद्रोही स्वभाव की शीला जी ने प्रयाग संगीत सम्मेलन से विशारद भी किया था और वे सितार वादक भी थीं और सितार की शिक्षिका थीं। उनके तीन चार कविता संग्रह भी छपे थे। उनकी 500 कविताओं के संचयन का लोकार्पण केदारनाथ सिंह ने किया था। प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में शीला सिद्धांतकर 17 वां स्मृति सम्मान पुरस्कार युवा कवि के रूप में संयुक्त रूप से अनुपम सिंह तथा शालू शुक्ल को उनके संग्रह पर घोषित किया गया था लेकिन अनुपम सिंह के अस्वीकार के बाद शालू शुक्ल को हिंदी की वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया ने श्रीमती शालू शुक्ल को उनके काव्य संग्रह “तुम आना वसंत” के लिए यह सम्मान प्रदान किया। हिंदी के चर्चित आलोचक ज्योतिष जोशी ने पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव ने शालू शुक्ल की कविताओं पर अपना वक्तव्य दिया। समारोह में ममता जी और गरिमा ने बेबाक ढंग से अपनी बातें रखी पर शालू की कुछ कविताओं की तारीफ भी की पर प्रेम कविताओं से ऊपर उठने और प्रेम की जटिलताओं को समझने की भी सलाह दी।
समारोह की अध्यक्षता ममता कालिया ने की। समारोह में शीला जी पर एक वृतचित्र को भी दिखाया गया। इसका निर्देशन रामजी यादव ने किया जबकि यह फ़िल्म हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक कर्ण सिंह चौहान की, लेखकों पर फिल्मों की योजना के तहत बनी है।
25 मिनट की फ़िल्म में शीला जी का इंटरव्यू भी है और नित्यानंद तिवारी केदारनाथ सिंह मंगलेश डबराल पंकज सिंह अनामिका रेखा अवस्थी आशा जोशी की, शीला जी की कविताओं पर टिप्पणियां भी हैं।