ज़ब दो ऋतुयों का संगम हो, न गर्मी -सर्दी मौसम हो,
मन में आशा,उत्साह भरा,
ये चंचल मन न साथ रहा.
पलकें व नयना चंचल हों, अधरों पर प्यारी थिरकन हों,
उन्नत ललाट पर आभा हो,
राक्तिम कपोल, मधुशाला हो,
ग्रीवा में अद्भुत सी थिरकन,
कोमल बाँहों में स्पंदन,
नर्तन ज़ब हो इन पैरों में, कुछ प्रीति लगे ज़ब गैरों में.
ज़ब रोम- रोम रोमांच भरे,
राग गर्दभ भी, रसतान लगे.
हर युवा लगे, हो ये कान्हा,
न कोई पराया, बेगाना.
हर गली लगे बरसाना की,
मरुभूमि लगे, है नंदन वन. हर छोरी राधा रानी सी,
गोबर में सुरभि हो चन्दन.
निश्चित मानो यह होली है, यह नेह प्रेम की टोली है.
हर मन में अब वृंदावन है,
कान्हा -राधा अब हर इक तन है.
इंजिनियर अरुण कुमार जैन