तमिलभाषी साहित्यकारों का हिंदी साहित्य को योगदान



डाॅ॰ पी आर वासुदेवन
कविता एवं वैभव वही श्रेष्ठ है, तो पतित पावन
गंगा के समान सबके लिए हितकर, स्वास्थ्यकर तथा
लाभदायक हुआ करता है। हमारे देश में साहित्य का
मुख्य उद्देश्य ‘स्वांत सुखाय’ माना जाता है। साथ ही
उसे परहित कारक के रूप में भी स्वीकार किया गया
है। विद्वानों ने साहित्य की आंतरिक प्रेरणा और बाह्य
प्रयोजनों का विवेचन तथा विश्लेषण भी प्रस्तुत किया
है। बोध् एवं ज्ञान एक ही वाहन के दो पहिए हैं। वाहन
इन दो पहियों के सहारे संसार के पथ पर अग्रसर होता
रहता है। तत्पश्चात् श्रव्य काव्य तथा दृश्य के रूप में
साहित्य का सृजन प्रारंभ हुआ। ध्ीरे-ध्ीरे टीकाऐं,
व्याख्या और गद्य काव्यों का श्रीगणेश होने लगा।
साहित्य का मुख्य अभिप्राय ‘बहुजन हिताए बहुजन
सुखाय है’। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्था, संगठन,
संघ, तथा संगठन की आवश्यकता प्रतीत होने लगी।
प्रत्येक संस्था, संस्थान तथा संगठन की अपनी अपनी
पृथक प्रवृतियां हुआ करती हैं। कहीं कहीं इन संगठनों
की कार्य प्रणालियों में भिन्नता में एकता का आभास
हो जाया करता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एकता राष्ट्र के लिए अनिवार्य
प्रतीत हो रही है। इस प्रकार की एकता तथा एकात्मकता
भाषा के द्वारा ही संभव है। भाषा विचारों के आदान-प्रदान
की संवाहिका है । आदान-प्रदान के द्वारा सद्भावना
पनपने लगती है । इससे हृदय से हृदय की पहचान हो
जाया करती है, यह पहचान मनुष्य को एक दूसरे के
निकट पहुंचने में सहायक सिद्ध होती है। ऐसी निकटता
ऐसी करीबी घनिष्ठता में परिवर्तित हो जाया करती है।
सद्भावना सहयोग के सूत्र को सुदृढ़ बना देती है।
सहयोग और सहकारी भावना संजीवनी का कार्य सम्पन्न
कर सकती है। समाज और राष्ट्र के विकास में इस
प्रकार की भावना अपेक्षित है। इस भावना को भाषा
तथा साहित्यिक द्वारा चरितार्थ किया जा सकता है।
भाषा का सहित्य से, समाज का समाज से, समाज का
राष्ट्र से अन्योय संबंध् कालान्तर से चला आ रहा है।
उसी प्रकार साहित्य का संस्कृति से, संस्कृति का मानव
की प्रवृत्ति से, मानव की प्रवृत्ति का प्रकृति से सरोकार
है। राजभाषा हिंदी भारतीय भाषाओं को परस्पर जोड़ने
वाली एक श्रृंखला है। एक रेशमी अनंुबंध् है। जो
देशकाल की सीमा को पार करके साहित्य के इतिहास
में अपने लिए अविस्मरणीय हस्ताक्षर के रूप में अंकित
स्थापित होकर युगों-युगों तक स्पंदित एवं अनुगुंजित
होता रहेगा और जिसकी अनुगूंज वीणापाणि की वीणा
में मुखरित होती रहेगी। ‘एक राष्ट्रभाषा हिंदी हो, एक
हृदय हो भारत जननी,’ यह दक्षिण भारत हिंदी प्रचार
सभा, चेन्नई का मूलमंत्र है। इसी मूलमंत्र के आधर पर
सभा हिंदी प्रचार प्रसार के कार्यों में संलग्न रही है।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई का कार्य सन
1918 से 1926 तक ¯हदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
द्वारा सम्पन्न होता रहा। ¯हदी के प्रचार-प्रसार के
साथ-साथ मद्रास के ¯हदीतर भाषा-भाषियों में
साहित्यिक अभिरुचि उत्पन्न करने का श्रेय दक्षिण
भारत ¯हदी प्रचार सभा की मातृसंस्था साहित्य सम्मेलन
प्रयाग को है। ¯हदी प्रचार आंदोलन में पत्र-पत्रिकाओं
का श्र्लाघनीय योगदान रहा है। जनवरी 1923 में सम्मेलन
ने ¯हदी प्रचार आंदोलन अभियान स्वरूप ¯हदी प्रचारक
एक ¯हदी पत्रिका का प्रकाशन आरंभ कर दिया। कुछ
समय बाद इसे मासिक बना दिया गया। प्रारंभ में ¯हदी
प्रचारक में उत्तर भारत के ¯हदी लेखकों की रचनाएं
प्रकाशित हुआ करती थी। सन 1927 से पत्रिका में
स्थानीय ¯हदी प्रचारकों तथा ¯हदी विद्यार्थियों के लेख
आदि प्रकाशित होने लगे। इस प्रकार साहित्यिक प्रवृति
तमिलभाषी साहित्यकारों का हिंदी साहित्य को योगदान
कृडाॅ॰ पी आर वासुदेवन
38 राजभाषा भारती अक्तूबर-दिसंबर , 2016
आरंभ हो गई। सन् 1930 के करीब करीब तमिल की
पत्र-पत्रिकाओं में प्रेमचंद, विसंम्भरनाथ कौशिक,
जयशंकर प्रसाद, पंडित सुदर्शन, आचार्य चतुरसेन शास्त्री
तथा जैनेन्द्र कुमार इत्यादि ¯हदी कथाकारों की रचनाएं
अनूदित होकर प्रकाशित होने लग गई। तत्पश्चात ¯हदी
के माध्यम से बगला के साहित्यकार गुरूदेव रवीन्द्र
नाथ ठाकुर, शरत चंद्र, बंकिमचंद्र तथा द्विजेन्द्र लाला
राय आदि की कृतियां तमिल की पत्रिकाओं में स्थान
पाने लगी।
श्रीमती अम्बुजममाल ने सन 1934 में रामचरित
मानस के अयोध्याकांड एवं गोदान का तमिल अनुवाद
प्रस्तुत किया। श्री के एम शिव राम शर्मा ने महाकवि
सुब्रमणियम भारती की ‘तराजु’ ‘ज्ञानरथम’ आदि तमिल
कृतियों का ¯हदी रूपान्तर प्रस्तुत किया। श्री रा॰
विलिनाथन ने कल्कि कृष्णमूर्ति की तमिल कृति
‘शेलेमलै की राजकुमारी’ पाथर््िापन का सपना, बाहर
का आदमी, भजगो¯वदम (राजाजी कृत) जय जय
शंकर (शंकराचार्य की जीवनी रा॰ गणपति कृत)
हृदयनाद, लहरों की आवाज (श्रीकल्कि कृष्णूर्ति कृत)
की तमिल कृतियों का ¯हदी अनुवाद प्रस्तुत किया।
आपकी ‘नूपूर गाथा’ (तमिल महाकाव्य) कसौटी,
मास्टरजी (तमिल नाटक) पाण्डुलिपि के रूप में है।
श्रीमती सरस्वती रामनाथन ने ‘पौ फटेगी, गोपुर का
दीप, श्री सुब्रमणियन भारती की प्रतीक कथाएं, नारी
(उपन्यास अखिलन कृत) कंरिचतेन (उपन्यास राजम
कृष्णन) तथा ‘कम्ब रामायण’ का कथासार तमिल से
¯हदी में प्रस्तुत किया। श्रीनिवासाचारी ने सप्तसरिता
(लेख) गांध्ी (जीव चरित्र), तराजु तथा नारी
(उपन्यास) का ¯हदी अनुवाद प्रस्तुत किया। आपने
हंस, भारती, गल्प संसार, ‘आजकल’ आदि ¯हदी
पत्रिकाओं के माध्यम से तमिल की नवीनतम
उपलब्ध्यिों को ¯हदी में प्रस्तुत करने का सराहनीय
कार्य किया है। श्रीमती एच॰ बालम ने ‘आण्डाल तथा
आॅलवार की कविताओं’ का ¯हदी रूपान्तर ‘मोहन
लतिका’ में प्रस्तुत किया है। आपने भारती की ‘पांचाली
शपथम्’ का ¯हदी अनुवाद ‘पांचाली की शपथ’ शीर्षक
से प्रस्तुत किया है।
डाॅ॰ पी॰ जयरामन अनुवाद के क्षेत्र में प्रख्यात हैं।
आपने ‘पुरनानूर की कथाओं’ तथा राष्ट्रकवि भारती के
‘तमिल पद्यों’ का ¯हदी में पद्यानुवाद प्रस्तुत किया
है। दीपम पार्थसारथी के उपन्यास का अनुवाद ‘आत्मा
के राम’ शीर्षक से प्रकाशित किया है। आपने अखिलन
के चित्तिरप्पावैं’ तमिल उपन्यास का ¯हदी अनुवाद
प्रस्तुत किया है। आपका ‘आध्ुनिक तमिल साहित्य
एक सर्वेक्षण’ ग्रंथ विशेष सराहनीय है। शा॰रा॰ सारंपाणि
ने ¯हदी पत्रकारिता जगत में अपने लिए एक विशेष
स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने ‘दक्खिन ¯हदी’ के सह
संपादक, दक्षिण भारत ¯हदी प्रचार सभा समाचार मद्रास
तथा दिल्ली के संपादक के रूप में ख्याति अर्जित की
है। मल्लिका, ‘राजीनामा’ आपकी उल्लेखनीय कृतियां
हैं। निबंध्, लेख तथा तमिल कविताओं का ¯हदी
अनुवाद भी आपने प्रस्तुत किया है। पत्रकारिता की
दीर्घकालीन सेवाओं के निमित राष्ट्रीय स्तर पर आपका
सम्मान भी हुआ है। ‘सानवती की कथावस्तु’ के
आधर पर आपने ‘पल्लविनी’ उपन्यास की रचना भी
की है। उमाचंद्रन ‘राकाचंद्र’ के उपनाम से लिखा करते
थे। आप तमिल और ¯हदी के उपन्यासकार तथा
कहानीकार हैं। आपका ‘मुल्लम मलरूम’ तमिल
उपन्यास पुरस्कृत हुआ। आपने स्वयं ‘कांटा और कली’
शीर्षक से तमिल उपन्यास का ¯हदी अनुवाद प्रस्तुत
किया है। आपकी रचनाएं तमिल और ¯हदी की
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थी। इनके
‘मुल्लम मल्लरूम’ उपन्यास पर तमिल और ¯हदी में
फिल्म बन चुकी है। आप आकाशवाणी मद्रास केन्द्र
के ¯हदी कार्यक्रमों से सम्बद्ध रहे।
टी॰ई॰ श्रीनिवासराघवन संस्कृत, ¯हदी तमिल के
ज्ञाता हैं। एक सुकवि भी हैं। कंदब (¯हदी काव्य
संग्रह) ‘अव्वैयार की नीतियां’ तमिल से ¯हदी में
अनुवाद), ‘पश्मोषि’ ‘नानूल’ ¯हदी अनुवाद, अमर
कोष (संस्कृत से ¯हदी में अनुवाद) के अतिरिक्त
अक्तूबर-दिसंबर , 2016 राजभाषा भारती 39
आपने मौलिक दोहे भी लिखे हैं। आपने तिरूकुरल के
कुछ अंश ‘नालडियार, भारती के गीत एवं भजगो¯वदम
का ¯हदी में अनुवाद भी प्रस्तुत किया है। आपकी
रचनाएं ¯हदी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती
रहती हैं। डाॅ॰ एस एन गणेशन ¯हदी, तमिल, मलयालम
तथा अंग्रेजी के ज्ञाता थे। इन चारों भाषाओं पर उनका
समान अध्किार था। नाचती लहरें, काव्यरूप मंथन,
तमिल की सुप्रसिद्ध रचना ‘शिलप्पध्किारम’ का आपने
अपने विभागीय अध्यक्ष श्री शंकरराजु नायडु के साथ
सफल अनुवाद प्रस्तुत किया। ‘तमिल ¯हदी व्याकरण
में विषमता’ आपकी उल्लेखनीय कृति है। ¯हदी उपन्यास
साहित्य का अध्ययन (शोध् प्रबंध्) बनारस ¯हदू
विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत है। आप भाषा वैज्ञानिक
तथा प्रखर ¯चतक थे। आप साहित्यानुशीलन समिति
के अध्यक्ष भी रहे। मद्रास महानगर की साहित्यिक
गतिविध्यिों में सक्रिय रूप से सम्मिलित हुआ करते
थे। आप एक आदर्श प्राध्यापक सफल मार्गदर्शक एवं
वक्ता भी थे। आप मद्रास विश्वविद्यालय में ¯हदी
विभाग के अध्यक्ष थे। आपके शोध् पत्र, निबंध् लेख
आदि ¯हदी की पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर
प्रकाशित हुआ करते थे।
र॰ शौरिराजन तमिल और ¯हदी के विद्वान हैं,
संस्कृत के भी अच्छे ज्ञाता हैं। आप सृजनशील लेखक
हैं। तमिल और ¯हदी के आदान प्रदान के क्षेत्र में
आपका योगदान स्तुत्य हैं। कालीदास कृत अभिज्ञान
शंकुतलम का आपने ¯हदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है।
द्राविड़ और आर्य के संबंध् में भी आपने ¯हदी में
काफी कुछ लिखा है। एन शंकरण के यात्रा वृतांत का
¯हदी अनुवाद ‘बीस साल के देश’ (जर्मनी) में ‘बीस
दिन की’ यात्रा कृति को केन्द्र सरकार द्वारा पुरस्कार
प्राप्त हुआ है। आपने सुजाता के उपन्यास ‘चैदह दिन’
का ¯हदी अनुवाद प्रस्तुत किया हैं। जयकांतन की चुनी
हुई कहानियों का ¯हदी अनुवाद तथा टीपी मीनाक्षी
सुंदरम पिल्ले के शोध्परक निबंधें का सफल अनुवाद
प्रस्तुत किया है। ‘जयकांतन की कहानियां’ पुस्तक
केन्द्र सरकार द्वारा पुरस्कृत है। आप दक्षिण भारत ¯हदी
प्रचार सभा, मद्रास की मुख पत्रिका ¯हदी प्रचार समाचार,
दक्षिण वाणी, ‘बहुब्रीहि’ के संपादन मण्डल में भी हैं।
साथ ही मद्रास से प्रकाशित ‘ज्ञानभूमि’ के संपादक भी
रहे। साथ ही ‘छत्रपति शिवाजी’ तथा ‘तमस’ के तमिल
रूपांतर कार्य में संलग्न रहें। आपका सभा द्वारा प्रकाशित
तमिल संस्कृति ग्रंथ उल्लेखनीय है।
डाॅ॰ एन॰ सुंदरम तमिल कन्नड़ ¯हदी और अंग्रेजी
के ज्ञाता हैं। आपने मु वरदराजनार के उपन्यास ‘कोयले
का टुकड़ा’ शीर्षक से ¯हदी अनुवाद प्रस्तुत किया।
राष्ट्रकवि भारती की राष्ट्रीय कविताओं का ¯हदी रूपान्तर
भी आपने प्रस्तुत किया है। आपने तिरूकुरल का अनुवाद
प्रस्तुत किया है। बाल साहित्य के क्षेत्र में एच दुरैस्वामी
ने महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किया है। इनकी प्रकाशित
कहानियों में ‘नानी की कहानी’ एक स्फटिक के बीस
पहलू, अव्वैयार की कथाएं इत्यादि बालोपयोगी संकलन
उल्लेखनीय है। आपकी बालपयोगी पुस्तकें पुरस्कृत
हुई हैं। आपने लौह पुरूष ‘बल्लभ पटेल की जीवनी’
पर आधरित नाटक भी लिखा। वह पाण्डुलिपि के रूप
में हैं।
डाॅ॰ सुब्रमणियन ‘विष्णुप्रिया संस्कृत ¯हदी बंगला,
तमिल अंग्रेजी के ज्ञाता थे। आप कवि समीक्षक
एकांकीकार, निबंध्कार एवं अच्छे वक्ता थे। ‘विमर्श
से परे’ (कहानी संग्रह) ‘सदर फाटक’ (उपन्यास)
तमिलनाडु एक्सप्रेस, इध्र से उध्र, उध्र से किध्र,
रामनाम सत्य है, अमर अम्बिकापति (एंकाकी)
अनामिका (¯हदी काव्य संग्रह) अतीत के चलचित्र
¯हदी से तमिल में अनूदित, ¯हदी साहित्य का इतिहास
(तमिल में) बृहत अंग्रेजी ¯हदी शब्द कोश प्रकाशित
है। आप सृजनशील रचनाकार थे। आलम आरा से
लेकर नवीनतम फिल्मी संगीत के ज्ञाता थे।
डाॅ॰ शेषन का ‘कल्कि एवं वृंदावन लाल वर्मा के
उपन्यासों का तुलनात्मक अध्ययन’ शोध् प्रबंध् प्रकाशित
है। तमिल साहित्य की झांकी प्रकाशित रचना है।
आपने शिव कुमार मिश्र के ‘नीलाचांद’ (उपन्यास)
का तमिल में अनुवाद किया है। डाॅ॰ गोंविदराजन ¯हदी
और तमिल के ज्ञाता है। ‘आलावार एवं अष्टछाप के
40 राजभाषा भारती अक्तूबर-दिसंबर , 2016
भक्ति काव्य का तुलानात्मक अध्ययन’ शोध् ग्रंथ है
तमिल साहित्य की रूपरेखा, विद्यापति के कुछ चुने हुए
पद उनकी कुछ प्रकाशित रचनाएं हैं। सुमतीद्रंन की
शिक्षा दीक्षा गुरूकुल काॅगड़ी में हुई। आपका तमिल
संस्कृत तथा ¯हदी तीनों भाषाओं का सम्यक ज्ञान था।
आप एक सफल शिक्षक एवं वक्ता भी थे। आप ¯हदी
प्रचार सभा द्वारा संचालित राष्ट्रभाषा विशारद, राष्ट्रभाषा
प्रवीण विद्यालयों के आचार्य तथा अमेरिकन कजेलाख्
मदुरै में ¯हदी प्राध्यापक रहे। आप सशक्त प्रगतिशील
कवि के रूप में विख्यात थे। आपके दो काव्य संग्रह
प्रकाशित हुए। ‘एक पल की याद में’ शीर्षक से छठे
दशक में प्रकाशित काव्य संग्रह की खूब चर्चा रही।
आपके शोध्परक लेख एवं कविताएं ¯हदी की
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करते थे।
डाॅ चंद्रकांत मुदलियार को ‘तमिल और ¯हदी के
भक्ति साहित्य का तुलानात्मक अध्ययन विषय पर
बनारस ¯हदू विश्वविद्यालय ने सन 1965 में पी एच डी
की उपाध् िप्रदान की। वे ¯हदी और संस्कृत के प्रकाण्ड
पंडित थे। डाॅ॰ एन वी राजगोपालन तमिल और ¯हदी
के प्रकाण्ड विद्वान हैं। अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी
पकड़ है। आप मद्रास के गवर्नमेंट आर्टस कालेज में
¯हदी के प्रवक्ता रहे। तमिल और ¯हदी के काव्य शास्त्र
के तुलनात्मक अध्ययन पर आगरा विश्वविद्यालय ने
सन 1966 में आपको पी एच डी उपाध् िप्रदान की।
यह ग्रंथ सन 1969 में आर्य बुक डिपो नई दिल्ली द्वारा
प्रकाशित है। पूर्णम सोमवुन्दरम मौनवर्ती थे। आप
तमिल और ¯हदी के विद्वान थे। तमिल और उसका
साहित्य ग्रंथ ‘सरस्वती सहकार’ दिल्ली द्वारा प्रकाशित
हुआ है। ‘अनामिका’ काव्य कृति आपकी प्रतिभा को
प्रदर्शित करती है। आपकी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में
प्रकाशित हुआ करती थी।
श्रीमती तुलसी जयरामन लोकप्रिय कवयित्री थी।
मैं हूं ¯हदी की ¯बदी, प्रतीक्षा सागर की लहरें, आदि
कविताएं कवि सम्मेलनों में विशेष ख्याति प्राप्त कर
चुकी है। आपकी अनेक कविताएं ¯हदी की शीर्षस्थ
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थी। आकाशवाणी
मद्रास केन्द्र में रोचक ¯हदी कार्यक्रमों के द्वारा ¯हदी को
लोकप्रिय बनाने का श्रेय आपको है। आकाशवाणी मद्रास
केन्द्र के बाद मुबई केन्द्र में ¯हदी कार्यक्रमों से आप
सम्बद्ध रहीं। डाॅ॰ रांगेय राघव को तमिल और ¯हदी का
सम्यक ज्ञान था। वे ¯हदी के मूधर््न्य विद्वान एवं
प्रतिभाशाली साहित्यकार माने जाते थे। रागेंय राघव को
उनके ‘श्री गुरू गोरखनाथ और उनका युग’ शोध् प्रबंध्
पर सन 1948 में आगरा विश्वविद्यालय ने पी एच डी
की उपाध् िप्रदान की। आपकी रचनाएं प्रायः ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि पर आधारित हुआ करती थी ‘कब तक पुकारू’
आपका उल्लेखनीय ग्रंथ है।
डाॅ॰ शंकरराजु नायुडु को तमिल ¯हदी और अंग्रेजी
भाषाओं पर समानध्किार था। आप को कम्ब रामायणम
एवं तुलसी रामायण का तुलनात्मक अध्ययन विषय
पर सन 1959 में मद्रास विश्वविद्यालय से पी एच डी
की उपाध् िप्रदान की गई। यह ग्रंथ सन 1971 में मद्रास
विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित हुआ था। यह शोध् प्रबंध्
अंग्रेजी भाषा में लिखा गया है। लेखक स्वयं इसका
¯हदी में अनुवाद प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे थे।
डाॅ॰ शंकरराजु नायडु ¯हदी कवि भी थे। उनकी कविताओं
का संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। वे मद्रास विश्वविद्यालय
में ¯हदी के विभागाध्यक्ष थे।
डाॅ॰ मल्लिक मोहम्मद को ‘आलवार भक्तों का
तमिल प्रबंध्म और ¯हदी के कृष्ण काव्य शोध् प्रबंध्
पर सन 1964 में अलीगढ विश्वविद्यालय ने पी एच
डी की उपाध् िप्रदान की। आपको वैष्णव भक्ति
आंदोलन के अध्ययन पर सन 1970 में आगरा
विश्वविद्यालय ने डी लिट की उपाध् िप्रदान की। आप
तमिल ¯हदी मलयालम एवं अंग्रेजी के विद्वान हैं। आप
कालीकट केरल विश्वविद्यालय में ¯हदी विभागाध्यक्ष
रहे। साहित्यिक सेवा के लिए आपको उत्तर प्रदेश
सरकार राष्ट्रभाषा परिषद तथा तमिल लेखक संघ ने
पुरस्कृत एवं सम्मानित भी किया। आप नागरी लिपि
परिषद नई दिल्ली के कई वर्षों तक अध्यक्ष भी रहे।
डाॅ॰ के आर नंजुण्डन तमिल और ¯हदी के लब्ध् प्रतिष्ठ
लेखक माने जाते थे। आपको ‘तिरूमूलर और
गोरखनाथ’’ शोध् प्रबंध् पर सन 1963 में मेरठ
विश्वविद्यालय ने पीएच डी की उपाध् िप्रदान की।
अक्तूबर-दिसंबर , 2016 राजभाषा भारती 41
डाॅ॰ नागलक्ष्मी को सन 1964 में मैथिली शरण
गुप्त और भारती का तुलनात्मक अध्ययन पर मद्रास
विश्वविद्यालय ने पी एच डी की उपाध् िप्रदान की।
डाॅ॰ जे॰ पार्थसाथी को सन 1966 में ‘¯हदी एवं तमिल के
वाक्य विन्यास का तुलानात्मक’ प्रकार पर आगरा
विश्वविद्यालय ने पी एच डी की उपाध् िप्रदान की। इसी
प्रकार डाॅ सुदेरवल्ली को सन 1968 में ¯हदी और तमिल
के गद्य का विकास पर सागर विश्वविद्यालय ने पीएच
डी को उपाध् िप्रदान की। डाॅ॰ वी आर जगन्नाथ को
1968 में ‘सूर और पेरियालवार की कृतियों का
तुलानात्मक अध्ययन पर प्रयाग विश्वविद्यालय ने पीएच
डी की उपाध् िप्रदान की। इसी क्रम में डाॅ॰एस वसन्ता
को 1969 में आध्ुनिक ¯हदी कविता में दुरुहता पर
तिरूपति विश्वविद्यालय ने पी एच डी की उपाध् िप्रदान
की। डाॅ॰ सुब्बुलक्ष्मी को सन 1973 में ‘तमिल और ¯हदी
साहित्य में राष्ट्रीय चेतना पर सागर विश्वविद्यालय ने पी
एच डी की उपाध् िप्रदान की। डाॅ॰ के आर विठ्ठलदास
को सन 1979 में ‘सूरदास और संतकवि श्रीमान मदन
गोपाल नायकी स्वामीगल’ के काव्य का तुलनात्मक
अध्ययन पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने पी एच डी की
उपाध् िप्रदान की। डाॅ के ए जमुना को ‘नालायिर दिव्य
प्रबंध्न और सूरसागर में कृष्ण कथा का स्वरूप पर
पीएचडी की उपाध् िप्रदान की।
इसके अतिरिक्त का॰ श्री श्रीनिवासाचार्य का तमिल
के प्राचीन महाकाव्य शैव सिद्धांत की परम्परा’ पूर्णम
रामचंद्रन का तमिल का आध्ुनिक काव्य साहित्य।
रा॰ विलियनायान का तमिल साहित्य पर हिंदी का प्रभाव,
तमिल काव्य रामकाव्य, तमिल साहित्य पर गांध्ीजी का
प्रभाव, तमिल का नाटक साहित्य, पर पीएच डी प्रदान
की गयी। श्री एस ध्र्मराजन का तमिल और हिंदी का
तुलनात्मक व्याकरण, श्री रा॰ वेंकटकृष्णन का वैष्णव
संत कवि आलवारों का जीवन और साहित्य आदि ग्रंथ
प्रकाशित हुए।
इसके अतिरिक्त वर्तमान में डा॰ एस विजया ने
‘हरिवंशराय बच्चन और तमिल कवि कण्णदासन का
तुलनात्मक अध्ययन पर शोध प्रबंध् प्रस्तुत कर पी एच
डी उपाध् िप्राप्त की। डाॅ॰ आर एम श्रीनिवासन जी ने
रामानुजाचार्य वैभव ग्रंथ, बीसवीं शताब्दी का तमिल
साहित्य गं्रथ प्रकाशित किया। डाॅ॰ ए॰ भवानी ने कई
हिंदी कहानियों को तमिल में अनूदित किया।
डाॅ॰ जयलक्ष्मी सुब्रमणियम ने 21 हिंदी कहानियों का
तमिल में अनुवाद प्रस्तुत किया। डा॰ कमला विश्वनाथन
ने सुप्रसिद्ध तमिल कहानीकार शिवशंकरी की तमिल
कहानियों को हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया। हाल ही
में डाॅ॰ आर वी पद्मावती जी ने तमिल के कहानीकारों
का हिंदी में अनुवाद बीसवीं सदी के तमिल कहानियां
प्रकाशित किया। डाॅ चित्रा अवस्थी अय्यर ने हिंदी
और तमिल में परिभाषिक शब्दावली प्रकाशित किया।
डाॅ॰ राजलक्ष्मी कृष्णन ने दक्षिण के तट से, एवं शम्बुक
की हत्या गं्रथ प्रकाशित किया। डाॅ एम॰ कलारानी ने
तमिल की कविताओं का हिंदी रूपांतरण प्रस्तुत किया।
डाॅ॰ जमुना कृष्णराज ने तमिल से हिंदी में कविताएं
अनूदित की इन्होंने मन्नु भंडारी और शिवशंकरी की
कहानियां में स्त्री विमर्श पर शोध् प्रबंध् प्रस्तुत कर
मद्रास विश्वविद्यालय से पी एच डी की उपाध् िभी
प्राप्त की। डाॅ पी आर वासुदेवन शेष ने हिंदी और
तमिल कहानियों में विभिन्न परिपे्रक्ष्य पर डी लिट शोध्
प्रबंध् प्रस्तुत किया। इन्होंने कई हिंदी लघु कथाओं का
तमिल में अनुवाद किया है।
हिंदी साहित्य एवं हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने
की दिशा में तथा पाठ पुस्तक को तैयार करने वालांे में
श्रीमती आर चेल्ला, श्री वी॰ बालकृष्णा, श्री
अनंतरामकृष्णन, डाॅ के चेल्लम, श्रीमती के सुलोचना
आदि तमिल भाषी लेखकों ने हिंदी साहित्य में सक्रियता
से योगदान दिया है।
यह कहने में मुझे कतई संकोच नहीं है कि
तमिलभाषी रचनाकारों ने हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि
एवं संवधर््न में निष्ठा से कार्य किया है और निरंतर
कार्यशील है।
( राजभाषा भारती ),
कार्यालय महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी),
361, अन्नासलाई,
तमिलनाडु, चेन्नई-6000