गाँधी जी की प्रतिमा पर कबूतरों ने चेहरे पर अटखेलियां करते हुए गाँधी जी के चश्मे को गंदा कर दिया था । इस वज़ह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कल तक एक तरफ से दिखाई दे रहा था आज वो भी इन कबूतर महाशय की मेहरबानी से दिखाई देना बंद हो गया ।
हे भगवान ये क्या मुसीबत है ? शरीर मलिन हो गया है और चश्मा धुमिल हो गया है ।इन कबूतरों का क्या इलाज करु ? ये भी उन ढ़ीट लोगों में से हैं जिनकी फितरत ही परेशान करने की होती है।
लगता है ! शायद मेरे बचे हुए कर्मों का फल जो मुझे अब भी भुगतना पड़ रहा है। जिसका जी चाहता है वहीं हमारा दुरुपयोग कर रहा है, कोई नोट पर कोई वोट पर और हम खड़े खड़े देख रहे हैं। खुद कुछ कर नहीं कर नहीं पा रहे पहले जैसा समय होता तो उपवास कर लेता अपना शुद्धिकरण कर लेता लेकिन हमारी मूर्ती बना कर इन नेता लोगो ने अपनी समृद्धि और हमारी भद्द पीट रहे हैं। एक भूल तो बड़ी भारी हम से भी हो गई जो अपना नाम हमनें दान दें दिया अब ये गल्ती भारी पड़ गई है।
इतना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा कभी सपने में भी सोचा न था । नाम भी मजाक बन कर रह गया है । अब पता थोड़े ही था ,वरना सोच समझकर देते ।नाम भी सुपात्र को ही देना चाहिए था , लेकिन "अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत "और हमारी दशा ऐसी लग रही जैसे खेत में खड़ा बिजूका ।झाडू की आवाज से ध्यान भंग हुआ सामने से गुजरते हुए सफाई वाले को देखा तो पुकारा ओ भईया मेरा जन्मदिन आरहा है मुझे भी नहला धुला कर साफ़ कर दो सफाई वाले ने एक तिरछी नजर हम पर डाली और झाड़ू लिए आगे बढ़ गया । धुंधलाए चश्में से देखने का प्रयास किया तो देखा हमारे पैरों के पास ढ़ेर सारा कचरा पड़ा है। धूप निकलने से उसमें से दुर्गंध आने लगी है । सांस लेना मुश्किल हो गया है। सफाई वाले ने गाँधी प्रतिमा को इग्नोर कर एकहाथ में झाड़ू पकड़ कर चाय की चुस्की लेने लगा । गांधी जी हताश हो देखने लगे ।
हे भगवान मेने इनके लिए टायलेट बनाएं घर घर जा जा कर हिंदुस्तान से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक सालों साल साफ किए और इनको मुझे साफ़ करना भी बोझ लग रहा है ।मेने इनके लिए क्या क्या नहीं किया सर पर मेला ढोना बंद कराया ? इन की वजह से तो मेरा परिवार मुझसे दूर हो गया था , मेरे त्याग का ये सिला मिला ऐसा दिन किसी को ना दिखाए । पूरा जीवन उपवास में बीत गया मरने के बाद भी किसीने एक कोर मेरे नाम का कउऐ को भी नहीं खिलाया खुद मेरे नाम पे तर माल खा रहे हैं । चुनाव पे चुनाव जीत रहे थे । धुंधले चश्मे से कुछ आकृतियां अपनी तरफ आती दिखाई दी।
वेशभूषा से स्कूली छात्राएं लग रही थी ।
उन्होंने सफाई के लिए झाड़ू और कपड़ा ले रखा था ।एक लड़की के हाथ में बाल्टी मग और साबुन था वो जल्दी से ऊपर चबूतरे पर चढ़ी उसका साथ बाकी लड़कियों ने दिया देखते-ही-देखते उन्होंने हमारी और चबूतरे की सफाई कर दी वाह बड़ा ही तरोताजा महसूस हो रहा है। तभी एक लड़की आई और हमारे कान में हेप्पी बर्थडे बापू जी कहा तो हमारा दिल खुश हो गया । कुछ देर बाद गाडियां आकर खड़ी हो गई उसमें से सफेद कुर्ता धारी निकले और आगे बढ़ कर हमारे गले में माला डाली कुछ लोगों ने चंद फूल हमारी तरफ़ उछाले और द्रुतगति से गाड़ियों में बैठ कर चले गए । शाम तक मालाएं मुरझा गई ।
आस पास के कुछ गरीब बच्चों ने मालाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया और उससे खेलने लगे । कुछ कागज के टुकड़े जली अगरबत्ती के टुकड़े मेरे कदमों के चारों ओर बिखर गए । मेरे सपनों के भारत की तरह।
आशा के अंकुर
भारती अब तो शादी कर ले एक एक कर सभी बहनें विदा हो गई । भारती अपना बैग उठा कर अनमनीसी बोली स्नेहा चल देर हो रही है बस निकल जायेगी ।
भारती सुनो ! तुम मेरी बात को आज कल अनसुना कर देती हो ।
भारती सुना नहीं क्या ?
तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।
स्नेहा तुम तो सब कुछ जानती हो फिर भी पूछ रही हो मेरे लिए अब इस उम्र में शादी करना असंभव है ।
भाई की शादी करनी है ।
साथ ही माँ की देखभाल का जिम्मा भी है।
निभाती रहो जिम्मेदारी तुम, मैं कब मना कर रही हूँ ,मैं तो बस याद दिला रही थी ।
तुम्हारी सब बहने तो जिम्मेदारी से बच कर निकल गई और अपनी अपनी ग्रहस्थी बसा ली तुम्हारे लिए किसी ने नहीं सोचा ।
स्नेहा शायद भगवान की यही मर्जी है ।
भारती तुम्हारी भी तो कुछ मर्जी है जिसे तुम शायद इग्नोर कर रही हो ।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है चाहो तो सब संभव हो जायेगा ।
मेरी बात मानो वरना पछताओगी जीवन संध्या में किसी के पास वक्त नहीं होगा जो तुम्हारा ख्याल रखे ।
पति पत्नी ही एक दूसरे के पूरक होते हैं ।
मेरी मान संजीव जी को हाँ करदे भाई की शादी करले उसके बाद अपनी ।
संजीव जी भी परिस्थिति वश अभी तक कुआंरे हैं , तुम कहो तो मैं मिटिंग फिक्स करु ।
स्नेहा जीवन से सारे रंग उड़ गए तुम पुराने कैनवास पर नया रंग भरना चाहती हो । जी हां ! शुभस्त शीघ्रम ।
स्नेहा जैसी तुम्हारी मर्जी भारती तो तुम्हारी बात अब और टाल नहीं सकती ।
स्नेहा तुम ना .............. पीछे ही पड़ जाती हो स्नेहा ने कंधों को उचकाया आखिर सहेली किसकी हूंँ। भारती अभी तक तुमने जमीन को बंजर बना लिया था । अब इसमें कोंपले फूटेंगी ।
भारती के दिल में एक नई आशा के अंकुर ने जन्म ले लिया । बस का हार्न बजा तो दोनों मुस्कुराते हुए बस में सवार हो गई ।
विपरीत
दो पड़ोसिनों शाम के समय लान में बैठ कर बातें कर रही थी । उनके बच्चे भी लान में खेल रहे थे। कहीं से एक कबूतर बालकनी पर आकर बैठ गया ।
दोनों के बच्चों ने कबूतर को देखा तो अपनी अपनी मम्मी के पास गए और एक ने कहा मम्मी इसे पाल लो कितना प्यारा है ।
लेकिन दूसरे ने कहा मम्मी चलो ना इस कबूतर पकड़ कर गर्दन मरोड़ देते हैं । इसे पका दो खाना है । दोनों बच्चे जिद पर अड़े थे कोई भी झुकना नहीं चाहता था । एक दूसरे को दुश्मनों की तरह देख रहे थे। पड़ोसिनों में अपने अपने खान पान को लेकर महाभारत छिड़ गया।
कबूतर ने मन ही मन सोचा ये शाकाहारी और मांसाहार के बीच तनातनी हो उससे पहले ऊची उड़ान भरी और एक पुरानी हवेली की पनाह ले ली ।
बच्चे जो अभी कुछ देर तक कबूतर पर अपना अपना हक जमा रहे थे ।कबूतर के चले जाने पर कुछ देर उसके चले जाने का दुःख मनाया और जल्द फिर खेलने लगे । लेकिन पड़ोसिनों का महाभारत इतना बढ़ गया कि दोनों ने अपने अपने बच्चों को हाथ पकड़कर खिंचती हुई बोली अब इसके साथ नहीं खेलेगा खेला तो तेरी टांगें तोड़ दूंगी और घर के अंदर ले जाने लगीं तो बच्चे समझ नहीं पाए ऐसा क्या हुआ जो अब हम साथ में नहीं खेल पाएंगे।
चुनावी मुनादी
रामरती जल्दी चल बाहर पार्टी वाले साड़ी बांटने आए हैं।
रामरती हल्दी मसाले के सने हाथ साड़ी के पल्लू से पोछती हुई दशरथ के पीछे हो ली बड़ी भीड़ जुटी हुई थी स्त्री पुरुष भागम भाग से धूल ऊपर छा रही थी।
क्योजी हमारा नंबर आयेगा ?
आप भी साथ में रहें ऐसा न हो कोई हमारे हाथ से साड़ी पिछली बार की तरह छीन कर भाग ना जाए।
अरे रामरती ! डरो नहीं देखो दूरदर्शन पर समाचार में जो दिखाई देते हैं वो भी सूंघते हुए आते ही होंगे इसबार ऐसा कुछ हुआ तो उन्हीं के पास पहुंच जायेंगे । सब बता देना की इधर साड़ी बाँटते हैं और उधर गुंडों से छिनवा लेते हैं।
ऐ जी सुनो साड़ी ले तो ली हैं, लेकिन पार्टी वाले वोट के लिए भी बोल रहे हैं हमे किसे देना चाहिए ? पिछले दिनों साईकिल बटी थी आज साड़ी बटी रही हैं। परसों कुछ और बटेगा किस किस को वोट देंगे ।
तुम बुरवक चुप रहो अभी मुंह मत खोलो नहीं तो समझो साड़ी हाथ से गई ।
वोट का समय आयेगा तब सोचेंगे किसे दे किसे ना दे दें ।
हमारी जिंदगी में तो इलेक्शन ही त्योहार है इसी समय कुछ मिल जाता है वर्ना कोई नहीं पूछता पांच साल तक मध्यावधी चुनाव हो जाए तो समझो बोनस मिल गया हम मर्द लोगों थोड़ा पीने पिलाने को साथ में सभा में ताली बजाने का और माला पहनाने का पैमेंट मिल जाता है ।
माईक वाले से दूर ही रहना मीठा मीठा बोल कर
ना जाने टी वी पर क्या क्या चला देता है ?
रामरती हमरी प्यारी हमे तो आप ने काम से काम रखना है , आँख से न देखो ना कान से सुनों न मुंह से कुछ बोलो अपने राम की
ना काऊ से दोस्ती ना काऊ से बैर।
अर्विना गहलोत