एक
जबसे तुम्हें गीतों में आए ,
गीत बहुत हो गए नशीले!
जो सुनता है ,सुध बुध खोता,
और, तुम्हारा नाम पूछता;
मैं ना प्रकट करता हूं तो वह
अनुमानों से तुम्हें बूझता;
लोग तुम्हें रुसवा कर देंगे ,
वैसे ही तुम ही शर्मीले!
जब से तुम .........!!
दो
बहुत प्रयत्न किए हैं मैंने ,
भूलूं कब संबंध तुम्हारे;
याद नहीं आओ तुम मुझको,
लेकिन सब उपाय थक हारे ;
बाहर-भीतर रूप तुम्हारे
दोनों ही हैं बहुत हठीला!
जब से तुम............!!
तीन
पहले भी चोटें खाई थी,
ऐसी चोट नहीं खाई पर;
पहले भी पीड़ाएं पाई,
ऐसी भी पीर नहीं पाई पर ;
मैं कृतज्ञ हूं तुमने ऐसे
जख्म दिए मीठे दर्दीले !
जब से तुम.........!!
चार
पहली बार तुम्हें देखा जब,
बहुत- बहुत मासूम लगे थे;
सोचा था भोली चितवन है,
सह लूंगा विश्वास जगे थे;
नयन- बाण जब भीतर पहुंचे
पता चला तब बहुत नुकीले!
जब से तुम............!!
पांच
तुमसे सब पहचानें, अपना
तुम उपनाम बना लो मुझको,
तुम मेरी मदिरा बन जाओ
और खय्याम बना लो मुझको;
तुम में डूबा रहूं उम्र भर ,
अधर-नयन जीवन भर गीले!
जब से तुम.........!!
- तन्मय बुखारिया