जेठ के दारुण आतप से, सूख गई है धरती
लोग हुए बेचैन बहुत, उन्हें राहत नहीं मिलती
उन्हें राहत नहीं मिलती,क्या जतन किया जाए
अंबर को सब देखें मानस,कोई बूँद आ जाए
कहे"उड़ता"कविराय ,सबका हुआ हाल बेहाल
और ऊपर से लूएँ चलती,करती लाख सवाल.
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर - 124103 (हरियाणा )