अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज,
कंठ रुंधा है..
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कोटि दीप जलाने वाली, महाज्योति क्यों आज नही है, जन जग पथ बतलाने वाली,
महाविभूति आज नहीं है.
कर के मंगल आशीष जाने,
कहाँ विलीन हुये पल भर में.
नयन निरझरित अमृत सरिता,
सूख गयी क्यों अब इस जग में.
कोटि मन व नयन हैं रोते,
उनके अपने नाथ कहाँ हैं?
वेद, शास्त्र, गीता प्रतीक जो,
विद्यासागर महाराज कहाँ हैं?
कंठ रुंधा है, नयन भरे हैं,
रोम रोम पीड़ा से व्याकुल,
सुख, शांति, आनंद देने वाले,
युगशिरोमणि महाराज कहाँ हैं?
अमर आत्मा यही सिखाया,
निश्चित यहीं कहीं तो होंगे.
सदचर्या पालन करते जो,
उनके निकट पूज्य श्री होंगे.
कोटि नमन, वंदन स्वीकारो,
श्री चरणों में सतत हमारे.
जब तक मोक्षमहल न पाऊं,
पद चिन्हो पर चलें तुम्हारे.
🙏🏻🙏🏻अरुण कुमार जैन
ललितपुर, भोपाल, फ़रीदाबाद.