बादल गरजे, बादल बरसे,
मेघ गगन से झरझर बरसे।
पवन हठीला सन-सन बहता,
सारा तन-मन गीला कर जाता।
साजन बिन तो जियरा तरसे,
बादल गरजे, बादल बरसे।
बहता पानी थम नहीं पाता,
एकाकी मन ठहर न पाता।
छलक रहा जल दृग-अम्बर से,
मेघ गगन से झरझर बरसे।
पाती साजन की ना आई
आंखें बिरहन की पथराई,
छूटा जाता प्राण भी तन से,
मेघ गगन से झरझर बरसे ।
कौन बंटाए भाव वेदना के,
कौन सहलाये घाव हृदय के।
भाग्य गया है रूठ अपने से,
मेघ गगन से झरझर बरसे।
ताजे हुए हृदय के छाले,
दर्द इतना कि नैन भर आये।
नयना प्रिय की आस में तरसे,
बादल बरसे नील गगन से।
कामना के मेघ मंडराये,
बरखा आई, प्रिय नहीं आये।
यह दुखड़ा रोयें किस-किस से
मेघ गगन से झरझर बरसे।
भीगा मौसम आंखें पथराई,
विरहन पर यह पीड़ा छाई।
किसे दुलरायें, जूझें किस-किस से
बादल बरसे नील गगन से ।
ऋतु वर्षा की कैसी आई,
ठंडी हवा पर अगन है लाई।
मन के भाव कहें अब किससे,
मेघ गगन से झरझर बरसे।
कैसा यह पावस है रसीला,
मेदनी का गात है गीला।
दाह थमी ना बरखा ऋतु से,
बादल गरजे, बादल बरसे।
मेघ गगन से झरझर बरसे।
नील गगन से झरझर बरसे।
बादल बरसे,बादल गरजे,बादल बरसे।
-कौस्तुभ आनंद चंदोला
साहित्यकार एवं स्वतंत्र पत्रकार