लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी छवि आम आदमी के मन-मस्तिष्क में एक शान्त, सौम्य, सरल निर्विवाद, राष्ट्रभक्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्षमय आदर्श जीवन का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सीधे-सादे राजनेता, वाली है। जो शास्त्री जी के बारे में कम जानते हैं उन्हें शायद यह जानकर अचम्भा हो सकता है कि शास्त्री जी, जितने सीधे-सादे व सरल व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे, शासन-प्रशासन और अनुशासन में उतने ही दृढ़ निश्चयी और सख्त निर्णय लेने वाले व्यक्ति भी थे। 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) की पुलिस व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार करते हुए जब उन्होंने प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल (प्राविंसियल अम्ड कांस्टेबुलेरी) पी०ए०सी० की स्थापना की तो उनके सख्त कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के मामलों में रूचि लेने वाला अन्दर से सख्त अनुशासित किन्तु बाहर से सदैव सौम्य व सरल व्यक्तित्व सामने आया ।
16 वर्ष की आयु में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े शास्त्री जी सविनय अवज्ञा आन्दोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन में जहां सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी हैं वहीं प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) नगर पालिका के सभासद (1936) फूलपुर - सोरांव क्षेत्र से विधायक (1937) तथा 1946 में संयुक्त प्रांत की सरकार के संसदीय कार्य सचिव जैसे शासन-प्रशासन के पदों पर भी रहे तथा स्वतंत्रता के पश्चात् 1947 में संयुक्त प्रांत की पं० गोविन्दबल्लभ पंत सरकार में आप गृहमंत्री / पुलिस मंत्री व परिवहन मंत्री जैसे जिम्मेदार पदों पर थे।
15 अगस्त 1947 के बाद का समय न केवल उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत जो 24 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश घोषित हुआ) बल्कि संम्पूर्ण
भारत वर्ष के लिये अत्यधिक चुनौतीपूर्ण समय था क्योंकि सर्वप्रथम अंग्रेज पुलिस अधिकारियों के भारत से चले जाने पर पुलिस अधिकारियों की संख्या में बहुत कमी हो गई थी तथा भारत-पाकिस्तान प्रकरण के कारण अशांति, उपद्रव और कई जगहों पर गृहयुद्धों जैसी स्थिति थी तथा पाकिस्तान से होने वाले पलायन के कारण शरणार्थियों की समस्या भी शान्ति एवं कानून-व्यवस्था के लिये बड़ी चुनौती थीं। तब लाल बहादुर शास्त्री की शान्त, सूझबूझ और प्रशासनिक बौद्धिक क्षमता ने उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) के पुलिस बल को नया सशस्त्र पुलिस बल प्रदान किया, वस्तुतः लाल बहादुर शास्त्री प्रदेश में होने वाले उपद्रवों और अशांति के मामलों में बार-बार सेना के प्रयोग को कम करने के उद्देश्य से एक ऐसा पुलिस बल चाहते थे जो सेना के समान ही सशस्त्र और निर्णायक व प्रभावशाली हो अतः शास्त्री जी ने 1937 में कर्नल थाम्पसन द्वारा गठित भारतीय जमींदारों के सैन्य बलों तथा संयुक्त प्रांत के सैन्य बलों का विलय करके नये सशस्त्र पुलिस को जन्म दिया जिसे प्रादेशिक सशस्त्र कांस्टेबुलरी अर्थात् प्रांविंसियल अम्ड कांस्टेबुलरी (पी०ए०सी०) कहा गया। आज पी०ए०सी० न केवल उत्तर प्रदेश का बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष का महत्वपूर्ण प्रादेशिक सशस्त्र पुलिस बल है।
पी0ए0सी0 का गठन लाल बहादुर शास्त्री के शान्तिप्रिय अनुशासन प्रिय उचित कानून व्यवस्था प्रिय सफल प्रशासनिक क्षमताओं वाले व्यक्तित्व का परिचायक है। ठीक इसी प्रकार का उनका दूसरा महत्वपूर्ण पुलिस से जुड़ा कार्य तब सामने आता है जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे और पाकिस्तान ने शास्त्री जी को कमजोर समझते हुए युद्ध छेड़ दिया था किन्तु उन्होंने अपने धैर्य और संयम को बनाये रखते हुए दुश्मन की चाल को समझा और अपने पुलिस सुधार के अगले चरण में सीमा सुरक्षा बल (बी०एस०एफ०) की स्थापना कर पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की और भारत की राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा की।
बी0एस0एफ0 की स्थापना भारत - पाकिस्तान युद्ध की उस पृष्ठभूमि में हुई जब पाकिस्तानी सेना भारत की सीमा में घुसने पर आमादा थी और युद्ध पर उतारू थी और भारतीय सेना भी हर मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दे रही थी तब शास्त्री जी ने यह महसूस किया कि आखिर क्यों न ऐसा बल तैयार किया जाये जो देश की सीमाओं की रक्षा के लिये ही प्रतिबद्ध हो, तब उन्होंने 1 दिसम्बर 1965 को केन्द्रीय पुलिस के एक अर्द्ध सैनिक बल की स्थापना की जिसे सीमा सुरक्षा बल (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स - बी०एस०एफ०) कहा गया यह भारत का केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल है। यह पुलिस सुधार शास्त्री जी की योजना को सफल बनाने में और भारतीय सेना को मजबूती प्रदान करने में, उसके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने में पूर्णता सक्षम और सफल सिद्ध हुआ। बी०एस०एफ० दुनिया का पहला ऐसा सशस्त्र बल है जिसके पास वायु, जल और थल तीनों प्रकार की सैन्य उपकरण व क्षमताएं हैं।
निःसन्देह शास्त्री जी के पुलिस सुधार कार्यों ने देश को शांति और सुरक्षा के विषय में महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान की है उनके द्वारा किये गये पुलिस सुधार कार्यों के फलस्वरूप स्थापित दोनों सशस्त्र बल (पी०ए०सी० और बी०एस०एफ०) अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में निभाये जाने वाले दायित्वों से देश को गौरव प्रदान कर रहे हैं और शास्त्री जी की दूरदृष्टि के साथ-साथ अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर रहे हैं।
जागेश्वर प्रसाद सिंह
असि० प्रोफेसर इतिहास विभाग
अटल बिहारी वाजपेयी नगर निगम डिग्री कालेज लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ