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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र टेस्ट के महासचिव चंपतराय ने आज दिगंबर अखाड़ा पहुंचकर श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे साकेत वासी महंत परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज को 22 जनवरी श्रीराम जन्मभूमि प्राणप्रतिष्ठा के लिये आमंत्रण दिया।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र महासचिव चम्पत राय सांयकाल दिगंबर अखाड़ा पहुंच कर महंत सुरेश दास के स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त की और फिर साकेतवासी प्रतिवाद भयंकर परमहंस रामचंद्र दास महाराज के चित्र पर निमंत्रण पत्र को समर्पित किया।
इस दौरान दिगंबर अखाड़ा के उत्तराधिकारी महंत रामलखन दास, दिगंबर अखाड़ा बड़ोदरा के महंत गंगा दास, शरद शर्मा आदि उपस्थित रहे।
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बुन्देली मातृभाषा की क्षमता मान कर अपनाये
आज
भी कई भाषाओं में प्रचलित बुन्देली मातृभाषा आज भी जीवंत समाज में
प्रचलित हैं। बुन्देली भाषा किसी तालाब तक सीमित नहीं है। यह उस नदी के
प्रवाह की तरह है जो समय के अनुसार उत्पन्न होने वाले नए ज्ञान, विचारों और
सूचनाओं को अवशोषित करके आगे बढ़ती है। यह अन्य उन्नत भाषाओं के संपर्क में
रहकर प्रगति कर सकता है।
जो भाषा पवित्रता के अनुष्ठान में डूबी रहती
है और उसके कारण आगे नहीं बढ़ पाती वह कैसे मृत अवस्था में दफन हो जाती है।
ऐसा इतिहास में देखने को मिलता है. बुन्देली भाषा ने अपनी 15 शताब्दियों की
यात्रा में इस बात का ध्यान रखा है। और इसीलिए संत कवि तुलसीदास,कवि
विहारी ने नए युग की चुनौतियों का सामना करते हुए नये नये बुन्देली शब्दों
को पहचान दी। आंटी बाई अब हमारी माँ के घर का खरहर फिर से हमारी माँ को दे,
बस इतनी सी हमारी माँग है। हमारे सामने सवाल हिन्दी अंग्रेजी के बहिष्कार
का नहीं बल्कि बुन्देली की सुरक्षा और संरक्षण का है।
भाषा का मतलब समझ
का संग्रह नहीं होता है। भाषा एक महाशक्ति है जो समाज के वैचारिक और संचित
ज्ञान को आगे बढ़ाती है और फलस्वरूप समाज के बदलते जीवन को अखंडता, आकार और
सामग्री प्रदान करती है। धागे में पिरोए मोतियों की तरह सामाजिक जीवन की
सारी धारणाएँ और विकास की प्रेरणा इसमें समाहित है। इसीलिए बुन्देली पर
संकट उसके शब्दकोष या उसके साहित्य पर संकट नहीं है. यह बुन्देलखंड की
पहचान, बुन्देलीपन और यहां के लोगों के भविष्य पर संकट है।रानी झांसी
महाराजा मर्दन सिंह ने अग्रेजी राज्य के से लोहा लेते समय बुन्देली में
सहायता के लिए खत लिखती है। क्रांतिकारियों के अग्रदूतों ने कहा है कि समाज
की उन्नति या क्रांति स्वभाषा की धार पर ही हो सकती है। आठ करोड़ लोगों की
मातृभाषा में शिक्षा सर्वाेत्तम है। यह हर आम आदमी का सवाल है।
इसे
ध्यान में रखते हुए सभी सहयोग करे तो इस संकट से उबरना कोई मुश्किल काम
नहीं है. मुझे भी ऐसा ही लगता है। बुन्देली वह भी कर सकती है जो दुनिया की
सभी गहन भाषाओं में सरल है। आपको बस विश्वास करना होगा. कठिन परिस्थितियों
से जीतने की क्षमता हमारी मातृभाषा में है।
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