ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे

 ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे।

 मेरे तन में ललितपुर का
 कोई कण डोला करता है
 और कहीं पर मेरे स्वर में
उसका स्वर बोला करता है।
मिट्टी इतनी दीन नहीं है
जितनी कवि की आह बताती
सात पीढ़ियों तक यह मिट्टी
अपना असर दिखाती जाती
इसलिए तो आज कि जब मैं
अपने पूरे पन को वाणी
 देने का कर यत्न चला हूं।
याद मुझे आई अंनजानी
 ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे
सुना, जेल के दरोगा बन
 मेरी बाबा वहां गए थे
मेल-जोल हो गया सभी से
 जल्दी गो वे नए-नए थे
थोड़ी दिन के बाद नौकरी
जबकि हो गई उनकी पक्की
दादी पहुंची बांधे वगचा
बर्तन चर्खा चूल्हा चक्की
वही पिताजी हुए वहीं का
अपना मधुर लड़कपन जाना
पर प्रयाग में ललितपुर में
अक्सर होता आना जाना।
वही पिताजी हुए वहीं का
 अपना मधुर लड़कपन जाना
 पर प्रयाग में ललितपुर में
अक्सर होता आना जाना।
 शिकरम के दिलचस्प सफर थे याद पिताजी को बहुतेरे
 ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे।
सुनिए उन्हीं से थी मैंने
 जुड़ी जन्म के साथ कहानी
उसी राह में किसी जगह पर
 एक तीर्थ है भैया रानी।
 पूजा करते समय वही पर
वाम अंग दादी का फरका
मन्नत मानी सात चुनर की
जो घर में खेलेगा लड़का
आते-जाते हटकर दादी
मैया रानी को जाती थी
वह हर बार वहां देवी को
 पीली चुनरी पहन आती थी।
 भैया रानी नाम सोच कर म
ैं विभोर अब हो जाता हूं
ना मांग करण करने वाले
की सूची व्यस्को के तीसरा हूं।
 मुझे कभी जाकर करने हैं उस कविताएं पल पल के फेरे।
ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे।

हरिवंश राय बच्चन



हरिवंश राय बच्चन हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध कवि हैं जिनका जन्म प्रतापगड़ जिले के एक छोटे से गांव बाबूपट्टी में हुआ था। वह मधुशाला लिखकर हालावाद के प्रवर्तक कहलाए साथ ही वह छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। बच्चन जी ने एक बहुत बड़ी विरासत खड़ी की और आज उनके पुत्र अमिताभ बच्चन उसे बहुत करीने से संभाले हुए हैं। बच्चन जी की कविताओं और उनके आगे की पीढ़ियों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन विरले ही कोई उनकी पिछली पीढ़ी और उनसे बच्चन जी के लगाव के बारे में जानता होगा।

इसलिए आज हम एक ऐसा वाक़या यहां बताने जा रहे हैं जब बच्चन जी ने अपने बाबा को आदर देते दुए ललितपुर जेल की मिट्टी को माथे से लगाया। इस वाक़ये को पुष्पा भारती जी ने भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित किताब 'कविताएं बच्चन की चयन अमिताभ बच्चन का' में लिखा है।

पढ़ें पूरी बात...

खालिकबारी नाम का एक हिन्दी-फ़ारसी कोष है जिसकी नकल बड़े मोतियों जैसे अक्षरों में बच्चन जी के बाबा ने की थी। पुस्तक प्रेम और कलापूर्ण लेखन का शौक तो था, पर बाबा को नौकरी पुलिसिया ही मिली थी। वे ललितपुर जेल के दरोगा नियुक्त हुए।
बच्चन जी जब ललितपुर की वह जेल देखने गए थे तो उन्होंने वहां की मिट्टी माथे लगायी थी। उन्होंने लिखा है- “उस जगह के लिए अपरिचित और अजनबी होने का भाव मेरे मन में न उठा। लगा मैं बहुत बार आया-गया हूं- कभी अपने बाबा के रूप में कभी अपने पिता के रूप में।”
ललितपुर बच्चन जी के लिए तीर्थ समान था क्योंकि वहां उनके पिता जन्मे थे। ‘ललितपुर को नमस्कार है जहां पिता जन्मे थे मेरे’ पिता को भी अपना जन्मस्थान देखने की बड़ी इच्छा थी पर कभी जा नहीं सके थे।


- पुष्पा भारती
साभार- 'कविताएं बच्चन की चयन अमिताभ बच्चन का'
भारतीय ज्ञानपीठ