डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ की 105वीं जयन्ती के अवसर पर आयोजित सम्मान समारोह-2023
लखनऊ। आज दिनांक 29 अक्टूबर, 2023 को डॉ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ की 105वीं जयन्ती के शुभ अवसर पर निराला सभागार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सभागार में वरिष्ठ कवि श्री उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता एवं मुख्य अतिथि डॉ. सुधाकर अदीब की उपस्थिति में डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ साहित्य सम्मान-2023’ से सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. ओम निश्चल, नई दिल्ली को तथा ‘विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान-2023’ से पद्मश्री डॉ. विद्या विन्दु सिंह, लखनऊ को सम्मानित करते हुए प्रत्येक को ग्यारह-ग्यारह हजार रुपये की धनराशि, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न व प्रशस्ति-पत्र भेंट किया गया। इस अवसर पर श्रीमती नीलम चतुर्वेदी एवं सुश्री दिशा जगूड़ी द्वारा निर्मित (डॉ. निशंक पर केन्द्रित) वृत्तचित्र की प्रस्तुति की गयी। वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्रीमती मीनाक्षी शुक्ला द्वारा की गयी।
सभाअध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि का उत्तरीय एवं स्मृति चिह्न द्वारा स्वागत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कमलाशंकर त्रिपाठी एवं श्री योगीन्द्र द्विवेदी द्वारा किया गया। अभ्यागतों का स्वागत डॉ. निशंक संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कमलाशंकर त्रिपाठी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर सम्मानित डॉ. ओम निश्चल ने कहा - कविता के प्रति उन्माद और साहित्य के प्रति जुनून था, निश्ंाक जी में। ठाकुर प्रसाद सिंह उन कवियों को चुनने थे, जो कही खो गये थे। किसी भी कवि या गीतकार को पनवाड़ी की तरह होना चाहिए। छन्द और परम्परा को छोड़कर कविता सदैव घाटे में रहेगी। इस दौर में भी कविता को पुराने दौर के हिसाब से चलनी चाहिए। कविता और साहित्य आत्मा का उपचार है। निशंक जी के पद आशा और उम्मीद को जगाते हेै। कविता की पंक्तियां - ‘बात की बात में दो क्षणों में, उर में चुपके से समा गया कोई। दो ढुलके हुए आंसुओं में क्या व्यथा पहचान सकोगे। निश्ंाक जी को समर्पित करता हूँ। डॉ. ओम निश्चल की कविता - अपनी शदाकतों की कोई मिसाल दे दे, मेरा ख्याल ले ले अपना ख्याल देदे। गीत- बीज से वृक्ष बन रहा हूँ मैं/वश में जो होता ये मन.... का पाठ किया।
विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान से सम्मानित पद्मश्री डॉ. विद्याविन्दु सिंह ने कहा - पहले रचनाकार लिखेन के साथ परिवार बनाता था। ऐसे ही डॉ. निशंक। शुरू में मैं गीत लिखती थी, किन्तु बाद में अतुकान्त कविताएँ लिखने लगी थी, तो दादा ने कहा अब तुम जीवन की ओर लौट रही हो गीत लिखकर। विद्या मिश्र जी पूरी विद्या थी, मैं सिर्फ एक विन्दु हूँ। मेरी कई पुस्तकों में उनके चित्र छपे हैं। वे लोक सम्पदा की धरोहर थी। आज मैं गौरवान्वित हूँ कि इस माँ का सम्मान मिल रहा है। हर पर्व और त्योहार पर मैं उनसे मिलती थी, दिवाली से पहले मिलने वाला हय सम्मान भी उनका आशीर्वाद है। रामलला की किलकारी में सूर का वात्सल्य दिखता है। सुमित्रा पर पहली बार ऐसी रचना लिखी गई जो देने में विश्वास करे वह सुमित्रा है। डॉ. विद्याविन्दु सिंह ने लोकगीत का पाठ किया - ‘फतवा के जनमे कौन फल हे मोरे साहब हो/मइया देव भगीरथ जैसे पुत्र सवई जग गावई हो।’
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. सुधाकर अदीब ने कहा - ओम निश्चल कवि और आलोचक हैं। शब्द सक्रिय हैं। विद्याविन्दु जी लोक साहित्य और संस्कृति मर्मज्ञ हैं। निशंक जी का सारा जीवन काव्यमय था, वे ऋषि परम्परा के कवि थे। उन्होंने कविता के भीतर आस्था रखने वालों को सही और सच्ची राह दिखायी।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री उदय प्रताप सिंह ने कहा - निशंक जी से दो बार मिला। निशंक जी का जीवन उस पहाड़ पर रखी मशाल की तरह है जो आते-जाते को राह दिखाती है। राजा, मंत्री सभी भूतपूर्व हो सकते हैं, पर कवि कभी भूतपूर्व नहीं होता। एक छन्द - ऊँचे शिखरों के ऊँचे-ऊँचे देवदार। दूसरा छन्द - ‘हाथ फैलाये उदय मजबूरियों के मायना, उम्र से पहले कारवां अपना ले जायेगा।’ से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया।
इस अवसर पर डॉॅ. निशंक अध्ययन संस्थान की वार्षिक पत्रिका ‘निशंक सुरभि’ तथा श्री केशव प्रसाद बाजपेयी की पुस्तक ‘मौन छोड ़कर’ का मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। समारोह का संचालन श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात’ ने किया। धन्यवाद प्रो. उषा सिन्हा ने दिया।