निजी इस्लामी संस्थाओं को ‘हलाल प्रमाणपत्र’की अनुमति न दी जाए ! - रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
भारत में सरकार की ‘FSSAI’ एवं ‘FDA’ जैसे खाद्यपदार्थाें का प्रमाणीकरण करनेवाली सरकारी संस्थाओं के होते हुए हलाल के नाम पर समांतर इस्लाम धर्म पर आधारीत अर्थव्यवस्था निर्माण की जा रही है । इस अर्थव्यवस्था से मिले हुए धन का उपयोग आतंकवादियों को कानूनी सहायता उपलब्ध करवाने के लिए किया जाता है । भारत की सुरक्षा एवं अखंडता की दृष्टि से केंद्र सरकार द्वारा निजी इस्लामी संस्थाओं को हलाल प्रमाणपत्र देने की अनुमति न दी जाए, ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने की । वे रत्नागिरी में एक पत्रकार परिषद में बोल रहे थे । इस अवसर पर व्यासपीठ पर समिति के श्री. संजय जोशी भी उपस्थित थे ।
श्री. रमेश शिंदे आगे बोले, ‘जमियत-उलेमा-ए-हिंद’, ‘हलाल इंडिया प्रा. लि.’, आदि निजी इस्लामी संस्थाओं को हलाल प्रमाणित करने की मान्यता देने के स्थान पर, वह मान्यता देने का अधिकार केंद्र सरकार की ‘FSSAI’ इस शासकीय संस्था को दें, ऐसी हमारी आग्रही मांग है; इसके साथ ही इससे एकत्र होनेवाला करोडों रुपयों की निधि केंद्र सरकार को स्वयं एकत्र कर, उसे आतंकवादियों की सहायता के लिए, देशविरोधी कार्रवाईयों के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा, इसका नियोजन करे ।
आज केवल ‘मैकडोनाल्ड’, ‘के.एफ्.सी.’, ‘बर्गर किंग’ जैसे विदेशी कंपनीयां ही नहीं, अपितु हलदीराम, बिकानो जैसे शाकाहारी पदार्थ बनानेवाले अनेक भारतीय कंपनीयां मी हलाल प्रमाणित खाद्यपदार्थ ही सभी ग्राहकों को बेच रहे हैं । प्रत्येक उत्पादन के लिए 47 हजार रुपये शुल्क भर कर ‘हलाल प्रमाणपत्र’ और उसका ‘लोगो’ हिन्दू व्यापारियों को खरीदना पड रहा है । इसके साथ ही उसके नूतनीकरण के लिए प्रतिवर्ष 16 ते 20 हजार रुपये देने पड रहे हैं । ये पैसे अकारण ही निजी इस्लामी संस्थाओं को देने पड रहे हैं । हलाल के नए नियमानुसार तो अब ‘हलाल प्रमाणपत्र’ लेनेवालों को अपने निजी प्रतिष्ठान में 2 मुसलमानों को ‘हलाल निरीक्षक’ (हलाल इन्स्पेक्टर) के रूप में वेतन देकर काम पर रखना बंधनकारक किया गया है । इससे करोडों रुपए एकत्र किए जा रहे हैं ।
अंत में श्री. शिंदे ने बोले, ‘इस समय चातुर्मास चल रहा है और श्री गणेश चतुर्थी भी आने वाली है, इसलिए आपको सावधान रहना चाहिए कि आपके घर में हलाल प्रमाणित उत्पाद न आएं। कोई भी सिख भाई हलाल नहीं खा सकता। ये उनके धर्मग्रंथों में स्पष्ट है। देश के केवल 15 प्रतिशत मुसलमानों के लिए धर्माधारित ‘हलाल’ व्यवस्था शेष 85 प्रतिशत गैरइस्लामी जनता पर लादना, यह उनके संवैधानिक धार्मिक अधिकारों का एवं ग्राहक अधिकारों के विरुद्ध है । इसलिए सभी हिन्दुओं के साथ देने पर केंद्र सरकार को हिन्दुओं की भावनाओं का निश्चितरूप से विचार करना होगा !’