है बस यही 'मलाल'
क्या होगा इस देश का, कोई न जाने हाल
सब की अपनी डफ़ली,अपनी अपनी ताल।
"मंदिर-मस्जिद" भिड़ गए, धर्म हुए 'हलाल'
मानवता 'छलनी' हुई, लहू से लथपथ लाल।
'कनखी नज़र' दाग रही "एक आशंकित सवाल"
इंसानियत क्यों जलील हुई, बंदे भए दलाल!
'सुथरे' जिनके चेहरे ... 'घिनौनी' उनकी खाल
लहू ने लहू का 'खून' किया, "है बस यही मलाल।"
'सियासत' का सर्वत्र बिछा 'साज़िशों का जाल'
पुरखों की कमाई 'इज्ज़त' क्या खूब रहे उछाल!
आशाएं हताश हुईं ... सपने हुए निढाल
'भ्रम सुनहरे कल का'अब न मन में पाल।
पल पल 'जीवन' घुट रहा, सच्चाई तू न टाल
"रामराज्य "आएगा!, निकाल फेंक ये ख़्याल।
कुआं 'प्यास' बढ़ा रहा ... सागर में बवाल
शराफत की 'त्रिलोचन' अब न गली दाल।
त्रिलोचन सिंह'अरोरा'✍️• नई मुंबई