पत्रकार राजनेता प0 कृष्ण चन्द्र शर्मा
1857 की क्रान्ति का शंखनाद करने वाली वीर भूमि बुन्देलखण्ड के झांसी में 4 अगस्त 1914 को क्रान्तिकारी लक्ष्मीनारायण शर्मा के घर जन्में कृष्ण चन्द्र शर्मा को राष्ट्रीय विचार धारा का पाठ अपने पिता से मिला था। जिसके कारण बचपन से ही अंग्रेजी राज के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए जनता में जनजागरण की गरज से जब उन्हें स्कूल जाने का समय था उस समय से ही देशप्रेम और आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े। गांधीवादी मार्ग के द्वारा स्वतंत्रता अन्दोलन को जनजन तक पहुँचाने के लिए जनजीवन में शैक्षणिक सामाजिक आर्थिक और राष्ट्री गतिविधियों के प्रचार प्रसार के लिए समाचार पत्रो ंको सर्वोत्तम माध्यम मानने वाले प. कृष्ण शर्मा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। एसोसिएट प्रेस तथा टाइम्स ऑफ इंडिया, जागरण के प्रतिनिधि के साथ-साथ वर्षो तक साप्ताहिक स्वतंत्र प्रवाह का सम्पादन किया। 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बुन्देलखण्ड के आंचलों से जो पत्र निकलते थे उन पत्रों में गौरांगशाही के प्रति आवेश आवेग दर्शन होते थे। इस आग को और तेज जलाने के लिए आपने अनेक प्रयास किये। असहयोग आन्दोलन में सीधी भागीदारी करके संघर्ष किया। प0 कृष्ण शर्मा रेलवे में स्टेशन मास्टर के तौर पर कार्य करते थे। उन्होंने 1924 में झांसी से बल्लमगढ़ के मध्य वायसराय की स्पेशल ट्रेन पहुँची तो स्टेशन मास्टर लक्ष्मी नारायण ने लाल झण्डी दिखाकर रोक दी। जब उनसे इसका जवाब माँगा गया तो उन्होंने कहा कि ‘‘वह वायसराय है,तो मैं इस स्टेशन का वायसराय हूँ। इस देश को अंग्रेजों की गुलामी मंजूर नहीं। उनके इस निर्भीक बयान के कारण शारीरिक पीड़ा झेलने के साथ उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद वे परिवार समेत बल्लमगढ़ से झांसी आ गये। इस घटना के बाद उनके साथ उनके परिवार में आजादी का ऐसा जज़्बा पैदा हुआ कि देश को आजाद कराने में पूरा परिवार सहर्ष जेल जाने से भी नही कतराया। उस समय पण्डित कृष्ण चन्द्र शर्मा जीआईसी (राजकीय इण्टर कॉलेज) के छात्र थे और जार पहाड़ के पीछे क्रान्तिाकरियों के साथ बम बनाने लगे। उनकी पुत्री स्व. आशा शर्मा द्वारा लिखे पत्रों में उनके प्रयासों का वर्णन मिलता है। झॉसी में ख्याति प्राप्त सेनानी कॉमरेड रूस्तम लैटिन के साथ मिलकर सिग्नल के तार काटना, प्रभातफेरी निकालना, घोड़े पर बैठकर आजादी के लिये प्रचार करना आदि उनके प्रमुख कार्य हो गये। शेरो की तरह बन्दूक के बल पर अंग्रेजों को खदेड़ने का मंसूबा मन में पाले कृष्ण चन्द्र शर्मा की 1930 मंे विचारधारा मेंे परिवर्तन आ गया। पण्डित नेहरू के विचारों से प्रभावित होकर वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गये और अन्त तक पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे। इस दौरान उन्हे कई बार शारीरिक आर्थिक दण्ड के साथ जेल जाना पड़ा। 1942 मे जब देश करो या मरो के नारे के साथ पूरे देश में आन्दोलन कर रहा था तब कृष्ण चन्द्र शर्मा झांसी के बाजारों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध गरज रहे थे। उनकी आवाज की बुलन्दी और वाकपटुता के कारण बड़ी संख्या में लोग इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए प्राण प्रण से जुट जाते थे। आजादी के बाद 1949 से 52 के बीच संविधान सभा के सदस्य तौर पर संविधान निर्माण में महती भूमिका अदा की। झांसी जनपद के ललितपुर तथा महरौनी तहसील जो कि सीमावर्ती मध्यप्रदेश से लगती थी इस पिछड़े क्षेत्र से विशेष स्नेह के कारण उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। 1968 को पहली बार विधानसभा के सदस्य चुने गये। अनेक बार विधायक रहने के साथ प्रदेश सरकार में पंचायत राज उप मंत्री भी रहे। बुन्देलखण्ड की दस्यू समस्या के निवारण के लिए अनेक प्रयास किये जिसके कारण बड़ी संख्या में डाकूओं ने आत्मसमर्पण किया।