सुशील सिद्धार्थ बहुमुखी प्रतिभावाले साहित्यकार थे
प्रो. अजहर हाशमी लेखक, कवि और समालोचक है
प्रसिद्ध साहित्यकार सुशील सिद्धार्थ (जन्म: 2 जुलाई 1958, सीतापुर- उ.प्र. निधन 17 मार्च 2018, दिल्ली) ने व्यंग्य से लेकर कविता तक और आलोचना से [संपादन] तक लेखनी चलाई हिन्दी अवधि और संस्कृत भाषा पर उनका समानाधिकार था. हिन्दी में गोल्ड मेडलिस्ट में सुशील सिद्धार्थ परंतु आजीविका के लिये उन्हें बहुत पाप बेलने पड़े. एक सम्मानजनक स्थायी
नौकरी की तलाश में भटकते हुए उन्हें कई अस्थायी और छोटी-छोटी नौकरियां के आत्मविश्वास को दिया देता है. किंतु करनी पड़ी, बेरोजगारी का बवंडर आदमी सुशील सिद्धार्थ का आत्मविश्वास डिगा नहीं, स्थायी आजीविका के अभाव में वे सुनाव में जरूर रहते थे परंतु अपनी लेखनी
से अपने तनाव को भी सृजन में बदल देते थे. यही कारण है कि सुशील सिद्धार्थ व्यंग्य लेखन में 'मालिश महापुराण', 'नारद की चिंता, "प्रीतिन करियो कोय',
मो सम कौन' जैसी कृतियां दे पाए तो अवधि कविता में 'बागन वागन कहँ विरैया' जैसा काव्य संग्रह आलोचना के साथ-साथ संपादन के क्षेत्र में सुशील सिद्धार्थ ने श्रीलाल शुक्त संचयिता दस प्रतिनिधि कहानियाँ उपा किरण खान', 'मेरे साक्षात्कार मन्नू भंडारी, दस प्रतिनिधि कहानियां चित्रा मुद्गल', "मैत्रेयी पुष्पा रचना संचयन शीर्षकों से संपादन किया.
मेरे मत में सुशील सिद्धार्थ की भाषा रत्नों का भंडार भी है तो शब्दों का शाखागार भी. इसका प्रमाण उनकी कविता/ व्यंग्य / आलोचना दृष्टि में परिलक्षित होता है. अवधि कविता में सुशील सिद्धार्थ की भाषा रसीली होती है / हिन्दी कविता में अलबेली होती है / व्यंग्य में चुटीली होती है / आलोचना में कसैली होती है. तात्पर्य यह है कि भाषा का प्रसंगानुकूल प्रयोग करने में सुशील सिद्धार्थ का जवाब नहीं.
सुशील सिद्धार्थ अद्भुत अध्येता थे भिन्न-भिन्न विषयों पर उनका अध्ययन. सुशील सिद्धार्थ की भाषा पर तो शोध प्रबंध ही लिखा जा सकता है. मेरे मत में सुशील सिद्धार्थ को भाषा रत्नों का भंडार भी है ती शब्दों का शाखागार भी इसका प्रमाण उनको कविता व्यंग्य आलोचना दृष्टि में परिलक्षित होता है,
अवधि कविता में सुशील सिद्धार्थ को भाषा रसीली होती है हिन्दी कविता में अलबेली होती है व्यंग्य में चुटीली होती है आलोचना में कसैली होती है. तात्पर्य यह है कि भाषा का प्रसंगानुकूल प्रयोग करने में सुशील सिद्धार्थ का जवाब नहीं
गहन था, इसीलिये पेड़-पौधों से लेकर रक्तदान तक ज्ञान से लेकर विज्ञान तक, योग से लेकर ध्यान तक और धरती से लेकर आसमान तक अर्थात् किसी भी विषय पर तत्काल तथा धाराप्रवाह बोल सकते थे, हस्तरेखा शास पर भी उनकी
गहरी पकड़ थी. यह अलग बात है कि हस्तरेखाओं को देखकर दूसरों के भविष्य का अनुमान लगाने वाले सुशील सिद्धार्थ स्वयं अपनी हस्तरेखाओं को 'जांचने और अपना भविष्य' 'बांचने से बचते थे. क्यों बचते थे, इसका उत्तर पाठकों को इसी संस्मरणात्मक आलेख के अंत में मिल जाएगा.
यही कारण था कि उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान ने व्यंग्य लेखन और अवधी कविता के लिए दो-दो बार पुरस्कार हेतु के (सुशील सिद्धार्थ) नामित किये गये. आलोचना विधा के लिए उन्हें "स्पंदन सम्मान' से सम्मानित भी किया गया.
सुशील सिद्धार्थ की सूजनधर्मिता में बेहद खरापन है. खरापन तभी आ सकता है जब नीयत में खोट नहीं होती. 'मालिश महापुराण' जैसे व्यंग्य संग्रह में सुशील सिद्धार्थ खरेपन के वाहक तो 'नारद को चिंता' और 'मो सम कौन' में बेबाक बेलीस उद्घोषक और स्पष्टवादी एंकरिंग के पोषक हैं.
और अब मैं आता हूँ साहित्यकार सुशील सिद्धार्थ से जुड़े मेरे संस्मरण पर सन् 1997 में दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कवि सम्मेलन में मेरी मुलाकात सुशील सिद्धार्थ से हुई थी. उक्त कवि सम्मेलन के संयोजक प्रसिद्ध व्यंग्य कवि गोविंद व्यास थे गोविंद व्यास अर्थात् पद्मश्री गोपालप्रसाद व्यास (हास्य रसाचार्य) के सुपुत्र दिल्ली को हिन्दी भवन श्री गोपाल प्रसाद व्यास के भगीरथ प्रयासों का ही सुफल है. दिल्ली का हिन्दी भवन, आज देश का यह प्रतिष्ठित संस्थान है जो हिन्दी भाषा की सेवा, प्रचार और प्रसार में सतत् सक्रिय है. कवि गोविंद व्यास इन दिनों हिन्दी भवन दिल्ली का कामकाज संभालते हैं. गोविंद व्यास जितने समर्थ कवि हैं उतने ही प्रभावी और सशक्त संचालक भी हैं. सीपीसी दिल्ली दूरदर्शन के वि सम्मेलनों के संचालक के रूप में उन्होंने बहुत लोकप्रियता अर्जित की है, मध्यप्रदेश के सतना जिले के नागोद में कॉलेज में अंग्रेजी के प्रो. मनोज वर्मा (जो प्रभावी वक्ता और स्वयं एक अच्छे संचालक तथा हिन्दी के कवि भी हैं) तो गोविंद व्यास के संचालन के बहुत प्रशंसक है.
अस्तु में, फिर लौटकर आता हूँ सुशील सिद्धार्थ पर बात चल रही थी कि दिल्ली में 1997 में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कवि सम्मेलन में मेरी मुलाकात हुई थी. कवि सम्मेलन समाप्ति के बाद ये मेरे साथ ही उस होटल
कवियों को ठहराया था. मेरे कमरे में ही सुशील सिद्धार्थ ने अपने हस्तरेखा शास्त्री होने का परिचय दिया. मैंने उनके ज्ञान से प्रभावित होकर पूछा था 'सुशील जी हस्तरेखा के आधार पर आपका भविष्य क्या है?' उनका उत्तर था 'हाशमी जी मैं हस्तरेखा में नहीं कर्म में विश्वास रखता 'यह उत्तर मेरा संस्मरण हो गया.