हम आपातकाल के समर्थन में हैं -डॉक्टर संदीप अवस्थी
जी हां,ऐसे लोग ,फिल्म,बुद्धिजीवी,पत्रकार,साहित्यकार से लेकर अफसरशाह तक बहुत थे जो यह कहते थे की हम आपातकाल के समर्थन में हैं। और आज वह रंगे सियार की तरह उधर से इधर आने की कोशिश है और कुछ तो आ भी गए। एक शर्मनाक,स्वार्थपरक राजनीति की पराकाष्ठा का वह काला दौर ,जिसकी घोर निन्दा की जानी चाहिए,यह उसके समर्थन में थे। उनके बारे में आगे जानेगी भावी पीढ़ी। क्योंकि उन्ही के चमचे आदि और वह भी आज सोशल साइट्स पर अधिक ही सक्रिय हैं।और युवाओं को गुमराह कर रहे देश की संस्कृति और प्रकृति के खिलाफ। यह वह दौर था जब राजनेतिक उठापटक चरम पर थी। कांग्रेस के दो टुकड़े हो चुके थे और वंशवाद को आगे बढ़ाने के लिए इंदिरा गांधी थी तो वहीं कुछ पुराने कांग्रेसी ,गांधी युगीन सोच रखते थे की जो अच्छा,बेहतर जननेता हो वही आगे आए के साथ अलग थलग पड़े थे। इस सबके बीच लोहिया और उनकी जनवादी सोच से उनके अपार समर्थक खासकर युवा लोग लालू,नीतीश से लेकर मुलायम सिंह ,तो जॉर्ज फर्नांडिस से लेकर मधु दंडवते तक उनके साथ थे। जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति के आव्हान पर पटना के गांधी चौक पर हुई ऐतिहासिक रैली कौन भूल सकता है। बीजेपी तब जनसंघ थी और अपने अस्तित्व को बना रही थी,वह भी अपने कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ कांग्रेस के कुशासन के विरोध में थी। तो सब तरफ से ऐसे हालात थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सलाहकार विद्याचरण शुकुल,श्यामचरण शुकुल,मोतीलाल वोरा,केसरी,कामराज,माधवराव,अर्जुन सिंह,शरद पंवार,अंबिका सोनी और संजय गांधी आदि ने न जाने क्या देखा,क्या सोचा और सबने मिलकर आपातकाल की सोच को बढ़ाया। विपक्ष था,लोकसभा राज्यसभा थी पंरतु किसी को भी विश्वास में नही लिया गया । तानाशाही तरीके से पच्चीस जून उन्नीस सौ पिचेतर को आपातकाल लगा दिया गया। जो इक्कीस मार्च उन्नीस सौ सतेहतर (25 जून 7521मार्च 1977)तक अनवरत जारी रहा। आजादी के मात्र अट्टाइस वर्षों बाद ही देश के इतिहास में यह काला अध्याय लिख दिया गया कांग्रेस पार्टी और उसके समर्थक वाम दलों के द्वारा,जो मार्क्स,लेनिन के समर्थक होते हुए भी आपातकाल के समर्थन में थे। कब, क्यों होता है आपातकाल ? _________ संविधान में प्रावधान है की जब देश पर आक्रमण हो,देश में दंगे फसाद हों,प्राकृतिक आपदा आदि हो तब आपातकाल लगाया जा सकता है। लेकिन यह कहीं नहीं था जब देश के प्रधानमंत्री,उसके पुत्र और मंत्रियों की तानाशाही से त्रस्त लोग एकजुट हो आवाज उठाएं तो अपने विरोध की बात सुनने की जगह आपातकाल लगा दो। पर यह हुआ और वह भी अधिकतम छह महीने की जगह लगभग दो वर्ष तक। और ऐसा आपातकाल जिसमें आप कल्पना करें कि प्रेस,टीवी,फिल्म से लेकर सभी अभिव्यक्ति के माध्यमों पर बैन,सेंसर। हर चिट्ठी पत्री,डाक,अखबार बिना सरकारी अनुमति के कुछ भी नही लिख सकता। और जो लिखा सरकार के खिलाफ तो वहीं आप पर मुकदमा और जेल। सारे विरोधी नेता अटल बिहारी वाजपई,आडवाणी से लेकर लोहिया,जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस जिन्होंने उन्नीस सौ चोहतर की रेल स्ट्राइक का सफल नेतृत्व किया था,सभी जेल में भर दिए गए। ज्यादातर अखबार कागज कोटा (तब न्यूज प्रिंट सरकारी अनुमति से मिलता था),सरकारी विज्ञापनों के मोहताज से चुप्पी साधे रहे। इंडियन एक्सप्रेस के रामनाथ गोयनका, माथुर मध्य प्रदेश के, आदि ने विरोध किया और खुलकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस काले कानून का विरोध किया। पूरा फ्रंट पेज अगले ही दिन खाली रखकर देश भर में विरोध किया इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप ने। हम समर्थन में हैं : _____ अब सुनिए किस तरह एक बड़ा बुद्धिजीवी,प्रेस और फिल्म वालों का तबका "इंदिरा जी" के समर्थन में आकर खड़ा हो गया।बाकायदा लिखित बयान जारी किया वामपंथी लेखक संगठनों, फिल्मकारों ने की हम इस आपातकाल का स्वागत करते हैं। लंबी फेहरिस्त है गिनें और याद रखें ,सारे प्रगतिशील संगठनों के पदाधिकारी लेखक धर्मवीर भारती से कमलेश्वर, राही मासूम रजा,नामवर सिंह,कृष्णा सोबती,शिवमंगल सिंह सुमन,श्रीकांत वर्मा, अगेय,जैनेंद्र,परसाई ,राजकपूर से लेकर दिलीप कुमार,तमाम उर्दू मंच,लेखक,आज के अग्रवाल से लेकर तमाम जनवादी इसके पक्ष में खड़े थे। अफसरशाही,कांग्रेस कैडर तो था ही साथ। इन पोने दो सालों में देश में क्या हुआ? यह इस बात से समझा जा सकता है की सभी इंदिरा विरोधी जेल में बंद। लोहिया, जेपी, जॉर्ज,अटल बिहारी वाजपई आदि को जेल में प्रताड़ित किया गया। लोहिया,राजनारायण के साथ तो मारपीट भी हुई। इन्ही ने इंदिरा गांधी की जीत को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी की यह जीत गड़बड़ी करके हुई है। और कोर्ट के ऑर्डर से जांच हुई और सिटिंग प्रधानमंत्री,जो इसी फर्जी चुनावी जीत से बनी थी,वह राजनरायण से चुनाव हार गईं। तो समझें की प्रधानमंत्री ने ही सरकार गठन किया और सरकार चलाई पर वही अवैध निकला और चुनाव हारी हुई थीं। तो कायदे से इस्तीफा देकर अपनी गलती माननी चाहिए थी। परंतु न्यायपालिका में कांग्रेस की आस्था कभी नही रही और उसी के परिणामस्वरूप यह आपातकाल लगा। हजारों आम नागरिक जेल में बन्द। सब तरफ मनमानी और गुंडागर्दी,लूटपाट । संजय गांधी और उसकी टीम निरंकुश। देवानंद,मनोजकुमार फिल्म वालों का एक शिष्ट मंडल लेकर, जिसमें सारे बड़े स्टार शामिल नही थे, विद्याचरण शुकुल ,मंत्री सूचना और प्रसारण से मिलकर विरोध दर्ज कराए। परंतु उल्टे यही बैन हो गए। किशोर कुमार को संजय गांधी ने यूथ कांग्रेस के सम्मेलन में गाने से इंकार करने पर बैन कर दिया। कई वर्षों तक किशोर के गाने आकाशवाणी पर नही आए। परंतु विडंबना कहें या अवसरवाद का उद्धरण की सारे प्रगतिशील ,जिनके अनुयायी आज सोशल साइट्स पर देश के खिलाफ युवाओं को भड़काते रहते हैं,वह सभी आपातकाल का जोरशोर से समर्थन और इंदिरा गांधी की चापलूसी कर रहे थे। जिनमे से कइयों को आगे राज्यसभा,दूरदर्शन के महानिदेशक आदि पदों से नवाजा गया। पर कुछ रीढ़ की हड्डी वाले भी थे जो विरोध में खुलकर सामने रहे जिनमें राजेंद्र यादव,मन्नू,भीमसेन,विजेंद्र,दिनकर,अश्क,और आरएसएस ,जनसंघ के सभी कार्यकर्ता । आरएसएस की भूमिका _______वास्तव में यह ऐसा काला अध्याय रहा भारतीय लोकतंत्र और कांग्रेस का की इसकी जितनी निंदा की जाए वह कम है।और आज जब सभी तथ्य और रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में हैं तो यह स्पष्ट है की सामाजिक , गैर राजनेतिक संगठन आरएसएस ने अपना पूर्ण योगदान इस देश में लोकतंत्र की रक्षा हेतु पूरे देश में दिया।युवा पीढ़ी ही नही असंख्य लेखकों और पाठकों को जानकर खुशी होगी की संघ ने बिना किसी स्वार्थ के देश भर में गिरफ्तारियां दी और सम्पूर्ण क्रांति के जयप्रकाश जी ने संघ कार्यकर्ता नानाजी देशमुख को अपनी गिरफ्तारी के बाद नेतृत्व का दायित्व दिया। उनके बाद सुंदर सिंह भंडारी ने लोकतंत्र की बहाली और तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ नेतृत्व संभाला। समझ सकते हैं की तानाशाह इंदिरा गांधी,उनके पुत्र संजय गांधी और टीम के खिलाफ लोहा लेना कितना मुश्किल रहा होगा। पर देश और उसकी परंपरा को बचाने के लिए संघ के स्वयंसेवक सदेव जान न्योछावर करते हैं।यही वजह है की कांग्रेस आज तक आरएसएस से मिली वह कड़ी चुनौती और हार नही भूली है और हर मौके पर झूट फैलाकर संघ को बदनाम करने की असफल कोशिश करती है। उसी वक्त सभी प्रगतिशील लेखक,विचारक और संगठन आपातकाल का बेशर्मी से समर्थन ही नही बल्कि अपने लिए कई सुविधाएं भी ले रहे थे । आरएसएस के तत्कालीन सर संघचालक बाला साहेब देवरस को नागपुर स्टेशन से गिरफ्तार किया गया तब सह कार्यवाहक माधवराव मुले ने मोर्चा लिया। अच्युत पटवर्धन लिखते हैं की ,"देश भर में लगभग सवा लाख लोग आंदोलन से जुड़े उनमें से एक लाख संघ के स्वमसेवक थे। मीसा के तहत चालीस हजार गिरफ्तार हुए उनमें से तीस हजार संघ के लोग थे । सौ से अधिक स्वयंसेवक की जाने गईं । शिवसेना के बाला साहेब ठाकरे भी विरोध कर रहे थे हालांकि तब यह बहुत ही छोटा संगठन था। रज्जू भईया,कुशाभाऊ ठाकरे ,मोरारजी भाई,चरणसिंह,भेरों सिंह शेखावत,सुंदरलाल पटवा आदि अनेक नेता रहे जिन्होंने पुरजोर विरोध किया। यह काला अध्याय जिसने न्यायपालिका के अधिकार भी फ्रीज कर दिए थे आखिरकार इंदिरा गांधी की हटधर्मिता और जिद के साथ इक्कीस मार्च उन्नीस सौ सत्तेहतर को खत्म हुआ और चुनाव की घोषणा हुई। जिसमें देश की जनता ने अपना मत दिया और आजादी के बाद पहली बार जनसंघ और जनता पार्टी की सरकार बनी। लोकतंत्र की जीत हुई और काला अध्याय हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज होकर बंद हुआ। उसे भावी पीढ़ी और बाकी तथ्यों से बेखबर लोगों की बताने का उद्देश्य यह है की हम यह याद रखें की लोकतंत्र और राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्र है तो हम,परिवार,नोकरी सब हैं। राष्ट्र और स्वाभिमान नही तो कुछ भी नहीं। साथ ही लगातार सोशल साइट्स पर जहर उगल रहे वाम और अन्य लोग जो देश की सभ्यता,संस्कृति का मजाक उड़ा रहे,मिथ्या प्रचार कर रहे , उन्ही लोगों के वंशज हैं जो आपातकाल के पक्ष में खड़े थे। तो इनसे सावधान रहने की जरूरत तो है ही साथ ही निर्भीकता से सवाल भी पूछना है की क्या आप आपातकाल के समर्थन में हो? डॉक्टर संदीप अवस्थी,
चर्चित लेखक और वेदांत विचारक, आठ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित पुरस्कृत,