बुन्देलखण्ड की महिमा (गीत)-मोतीलाल त्रिपाठी "अशांत"
बुन्देल भूमि पर चन्देलों ने अपना वैभव बिखराया। नृप धंग, गंड, परमाल वीर ने अपना झंडा फहराया।
जेजाक भुक्ति बुन्देलखण्ड को बुन्देलों ने अपनाया । अनगिन दूर्गों को निर्मित कर चहुं ओर कीति को छिटकाया।
चन्देलों की उज्ज्वल गाथा स्वर्णिम युग का अनमोल रतन । बुन्देलो का बलिदान हुआ पावन वसुधा है रण-आंगन ।।
सोलह सिंगार कर प्रकृति नटी कण-कण को करती रस रंजन। गिरि राज गुरू विन्ध्याचल का दर्शन पुनीत है मन भावन ।
बुन्देल भूमि है कीर्ति-स्थल ऋषियों का तप पुनीत पावन । आदर्शों की बलि वेदी पर तपता रहता जीवन कंचन ।
जगती के कोने-कोने में फैली है ज्योतित नई किरण । लहरों में सुधा-सुरभि सबको देता है नव-उन्मत्त पवन ।
निर्मल उज्ज्वल चम्बल धसान अमृत धारा बरसाती है। पल पल में पावन वेत्रवती मुख चूम-चूम लहराती है।
कण-कण को केन कलिंदजा सी शुचि प्रेम का पाठ पढ़ाती है। यमुना पहज नर्मदा सिन्धु बुन्देलों का यश गाती हैं।
मधुरिम स्वर्णिम सरिताओं की लहरों का अद्भुत है नर्तन । प्राकृतिक छटा के अंचल में आनन्दित हो जाता है मन ॥
विन्ध्याचल की पर्वत माला में तीर्थों के वरदान छिपे। खजुराहो के मधू मन्दिर में जीवन के बिखरे गान छिपे ।
सोनागिरि के शूभ आंगन में साधक ऋषियों के प्राण छिपे । कालिंजर गिरि की प्राभा में देवों के चिर सम्मान छिपे ।
पावन धरती पर तीर्थों का होता है अनुपम सम्मेलन । स्वगिक मधुमय उद्गारों का होता रहता नव अन्वेषण ।।
बुन्देलखण्ड दर्शन लहराते खेतों ने कैसा अपना अधिकार जमाया है। वन उपवन की हरियाली ने निज सुन्दर साज सजाया है।
चीतल, शुकर, सांभर भालू ने अनुपम रास रचाया है। स्वर्णिम मधुमय विहगों ने भी कोलाहल सरस मचाया है।
मृग सिंह आदि का इसी भूमि पर होता सुन्दर आलिंगन । महिमा-मंडित बुन्देलखण्ड भारत का अनुपम है आनन ।।
पन्ना माणिक हीरा मोती का अतुलनीय भंडार भरा। सोना चांदी ताँबा लोहा का विशद विपुल उपहार भरा।
गौरा अभ्रक संगमरमर पत्थर का अनगिन अंबार भरा। धरती के कण में खनिज सम्पदा का सुन्दर संसार भरा।
गिरि-रत्न समुन्नत विन्ध्याचल करता है सबका संरक्षण । भारत-हृदय बुन्देलखण्ड ! अभिनन्दन ! शत-शत है वन्दन ।।
आजादी के रण प्रांगण में आल्हा ऊदल की आन रही। बुन्देल केशरी छत्रसाल के पौरुष की नव शान रही।
महाराज प्रतापी वीरसिंह के जौहर की इक बान रही। स्वातंत्र्य-ज्योति रानी लक्ष्मी जगती में प्रबल महान रही।
रणचण्डी दर्गा की तलवारों का कैसा होता मर्दन । लहरों में नाचा करता था दुश्मन के हृदयों का क्रन्दन ।।
वीरों की वीर धरा से कितने वीर सितारे हैं चमके। हरदौल, पद्मिनी शौर्य-पराक्रम तेज संजोये हैं दमके।
बुन्देलों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिये हैं जम जम के । बुन्देल वीर हरदौल लला ने पिया हलाहल रम रम के ।
त्यागों की रक्तिम वेदी पर जनता करती उनका पूजन। बुन्देलखण्ड की जननी का अभिनन्दन करता है जन जन ॥
यवनों की भीषण सेना पर रेहली के विद्रोही छाये । मधुकर बुन्देला शूरवीर दुश्मन का मरदन कर आये।
चम्पत के शौर्य पराक्रम से यश के झण्डे हैं फहराये। रण-ज्योति रामगढ़ को रानी से दुश्मन के दिल दहलाये।
रण के कौशल की किरणों की ज्वाला का है नव उद्दीपन । विप्लवकारी अंगारों में था झुलस गया अरि का जीवन ॥ शासक सत्ता के शोषण पर विद्रोही ज्वाला भभक उठी। परमानन्द के आवाहन पर विप्लव की हाला धधक उठी। माहौर सदाशिव देशभक्त के मुख की आभा चमक उठी। आजादी के वरवीर चन्द्रशेखर की निष्ठा धधक उठी। बलिदानी ज्वाला की लहरों में कैसा भीषण परिवर्तन । बन्धन में पनपा करता था शासक सत्ता का जनशोषण ।। यश से सुरभित रससिद्ध कलावन्तों का जीवन है चन्दन । पथ से सुरक्षित रससिद्ध कलावन्तों का जीवन है वन्दन । संगीत क्षेत्र में तानसेन, गायक वैजू भरते जीवनः । आदिल, कुदऊ सुरलय में मिल आनन्दित करते हैं,जन जन। हाकी जादूगर ध्यान चन्द के कौशल का होना दर्शन। विजयी गामा के मलयुद्ध का होता था नव दिग्दर्शन। बुन्देलों की यश गाथा मे उद्वेलित होता है कण कण ॥ बुन्देली चित्रकलाओं में मानव जीवन का उद्घाटन। काली के मधुमय चित्रों में नव संघों का उद्बोधन । खजुराहो की प्रतिमाओं में जीवन तथ्यों का विश्लेषण । गुप्तों के युग में वास्तुवाला अरु मूर्तिकला का मूल्याकन । अन्वेषण के इस युग में वैभव का नूतन निखरापन । साधक की अनुपम साधों में रस सिद्ध कलों का है सिचन ॥ कविता के सुरभित कानन में कवि वाल्मीकि का स्वर जागा। मानस जीवन के उपवन में रामायण काव्य प्रचार जागा। जगनिक की वाणी में आल्हा ऊदल का शौर्य-समर जागा। भवभूति कलाधर वेद व्यास संस्कृति का काव्य भ्रमर जागा । गोस्वामी तुलसी का मानस नव आदशों का है मन्थन । जगती के जन मानस में प्रचलित रामायण का सम्बोधन।। साहित्य-भूमि की छाया में नवरस की कविता सुधा बही। केशव, भूषण, पद्माकर रसनिधि भी उपजे हैं सरस यही। कविता उपवन में चन्द्र सखी अरु राम प्रवीण की गूंज रही। रस-राज बिहारी की रसमय रचना से सिंचित मधुर मही। ईसुरी, प्रेम के गायक की, फागों का अनुपम है गुंजन । कमनीया-काव्य कला का जन जन करता रहता आस्वादन ।। चौहान सुमद्रा की वाणी में आजादी के गान जगे। मर्दानी झांसी की रानी के तेजोमय अरमान जगे। श्रद्धेय मैथिली, वर्मा की कृतियों में नव निर्माण जगे। माहर की मधुमय कविता में सौन्दर्य-सत्य के प्राण जगे । स्वर्गीय व्यास के हृदय पटल पर जन जीवन का उत्पीड़न । कविता के उजले धागों में मानव की आहो का कम्पन ।। बुन्देलों को तलवारों से यवनों की सेना थर्राती । समरांगण नेता वीरसिंह के रण कौशल से दहलाती। रण प्रांगण में बुन्देलो की तलवारें जौहर दिखलाती। अकबर के मंत्री अबुल फजल का शीश काटकर बलखाती। समरांगण को ज्वालाओं में धधका तलवारों का यौवन । वीरों के कौशल से सत्वर हो जाता है अरिदर्प दमन ॥ बुन्देला शासक वीर सिंह का तुलादान का दान अमर । इक्यासी मन का स्वर्ण दिया है शासक का अरमान अमर । मधुपुरी गवाही देती है वैभवशाली सम्मान अमर । धार्मिक शासक के कार्यों से बुन्देलखण्ड का नाम अमर । दानी के अनुपम वैभव में प्रेरक कार्यों का आवाहन । बुन्देल भूमि पर न्यौछावर करता है शासक तन मन धन ॥ बुन्देलखण्ड की वसुधा पर रस की धारायें सरस बहीं । फल, फूल, बूटियाँ वन उपवन में पैदा होती आज यहीं। अनगिन शोभा से वन वसुधा उन्मत्त धराधन धान्य रही। आयुर्वेदिक औषधियाँ भी बन की बूटी से बनी सही। उज्जवल वन उपवन के आनन में सुन्दर बूटी का उन्मन । बुन्देली भूमि के कानन में है प्रकृति नटी का अवगंठन ।। बाँदा जनपद के चित्रकूट पर्वत में पावन राम रमे। सीता लक्ष्मण विचरण करते वनवासी वैभवराम जमे । पग पग पर पावन राम चले मधूमय मग मग पर पैर थमे । आदर्शो की उन्मत्त धरा पर ज्ञानी मुनि कितने जन्मे। पर्वत के सुन्दर आँगन में था राम भरत का मधुर मिलन । धरती रजकण कानन उपवन, युग युग से हैं पुनीत पावन ।। श्री मोतीलाल त्रिपाठी "अशांत"