खेत-किसान और कारपोरेट
क्या आप जानते हैं कि किसान क्यों छला जाता है इस सवाल पर चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार यादव से बात करने का अवसर मिला। मेरा ये मानना था कि किसान इसलिए छला जाता है क्योंकि उसे गणित नहीं आती। उसे अपनी उपज की लागत का आकलन करना नहीं आता। इसके अलावा फसल के सीजन के समय प्रोडक्ट की कीमतें गिर जाती हैं और उसके छह महीने बाद दोगुनी तक पहुंच जाती हैं। जिस आलू टमाटर की फसल को वह बोता है उसकी लागत भी नहीं निकलती एक दो रुपये किलो के भाव से मंडियों में ढेर हो जाते हैं। कई बार तो मंडी तक लाने की लागत भी किसान नहीं निकाल पाता। हालांकि जब फसल कटाई का समय आता है तो वह अपनी लहलहाती फसल देखकर इस तरह खुश होता है जैसे कोई व्यक्ति अपनी संतान की उन्नति देखकर खुश होता है। हम लोग कृषि पत्रकारिता और विज्ञान संचार के महत्व पर चर्चा कर रहे थे। काफी समय पहले मुझसे एक चर्चा में दूरदर्शन में न्यूजरीडर और वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ डा. अशोक कुमार यादव ने भी यही बात कही थी लेकिन उनका ये मानना था कि किसान खेती इसलिए करता है क्योंकि वह नौकरी कर नहीं सकता। हमारे यहां कहा भी गया है उत्तम खेती मध्यम बान निशिथ चाकरी भीख निदान। यानी सबसे उत्तम कार्य है अन्न को उपजाना। दूसरे नंबर पर है व्यापार करना और तीसरी नंबर पर थोड़ा निष्क्रट काम कहा जाता है दूसरे की गुलामी करना अर्थात नौकरी करना। और जो ये तीनों काम न कर पाए उसके लिए सिर्फ भीख मांगने का विकल्प खुला रहता है। किसान को खेती के काम में लगता है कि वह चौधरी है। कुछ लोग किसान को स्वार्थी भी मानते हैं क्योंकि उसकी दुनिया केवल गांव में घर से खेत तक सिमटी होती है वह गांव से निकलना नहीं चाहता। कृषि उपज की मार्केटिंग के समय भी यही बात दिखायी देती है जब किसान अपनी लागत का आकलन नहीं कर पाता। उस समय उसे सिर्फ अपनी जरूरत दिखायी देती है। वह देखता है अपने घर का साल भर का राशन निकल आया है। बीज के लिए बच गया है। उसके बाद उसे अपने बेटे, अपनी बेटी की शादी या पढ़ाई के खर्चों को निकालना होता यदि वह निकल रहा है तो उसे मुनाफे या घाटे की चिंता नहीं होती। जबकि अगर वह जोड़े कि सरकार के न्यूनतम मजदूरी कानून के हिसाब से उसके परिवार के सभी सदस्यों ने कितने दिन खेत में मजदूरी की है उनका मेहनताना कितना हुआ बिजली का खर्च या सिंचाई का खर्च कितना हुआ। बीज खाद का खर्च कितना हुआ फसल की कटाई पर कितना खर्च हुआ... डाक्टर अशोक यादव कहते हैं अगर वह अपनी लागत जोड़ ले तो उसका कलेजा फट जाएगा। फिर वह खेती नहीं कर पाएगा। आजादी के इतने साल बाद भी किसान गरीब क्यों है क्यों अपना खेत सात- आठ हजार रुपये बीघा पर दूसरों को दे देता है। दूसरे लोग उसी खेत से मुनाफा कमा लेते हैं क्योंकि वह कामर्शियल ढंग से खेती कर रहे हैं जबकि किसान को शिक्षित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ। गांव से शहर निकल कर लोग बन जाते हैं लेकिन उनमें कोई गांव जाकर एग्रीकल्चर कम्युनिकेटर नहीं बनना चाहता साइंस कम्युनिकेटर नहीं बनना चाहता। लेकिन जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मॉस कम्युनिकेशन के डायरेक्टर डॉ उपेंद्र अयोध्या इस बात से सहमत नहीं हैं उनका कहना है कि किसान इसलिए घाटा उठा रहा है क्योंकि वह उपज बढ़ाने के लिए घातक रासायनिक खाद बनाने वाली कंपनियों के भ्रमजाल का शिकार हो जा रहा है। उसके आसपास के छोटे दुकानदार भी रासायनिक खाद कंपनियों से होने वाले बड़े मुनाफे के लिए किसान को भ्रमित करने का काम करके उसकी लागत बढ़ा दे रहे हैं। डा. उपेंद्र का कहना है कि अब समय बदल गया है खेती भी अब फायदे का सौदा हो गई है। आप पंजाब और हरियाणा के किसानों को देखिये किस तरह मुनाफा कमा रहे हैं। इसके अलावा वाराणसी के चंद्रशेखर मिश्र किसानों की कंपनी बनवाकर मेडिसिनल क्राप की खेती करवा रहे हैं जिसमें किसान सीधे शेयर होल्डर है। इसी तरह लखनऊ के पास रायबरेली में शैलेंद्र मौर्य अपनी मीडिया की नौकरी छोड़कर खेती के क्षेत्र में उतरे हैं और दो साल के अंदर उन्होंने उल्लेखनीय प्रगति की है। अब समय बदल गया है। कारपोरेट घरानों को कृषि उपज का विशाल मार्केट दिखायी देने लगा है। खेती में लागत कम करने के लिए ड्रोन से खेती, सिंचाई और खाद के छिड़काव के साथ निगरानी का चलन आ रहा है। ऐसे में जबकि शहरों में नौकरी के अवसर सीमित हो रहे हैं हमारे कृषि प्रधान देश में नौकरी की अपार संभावनाएं पैदा हो रही हैं। जिसमें कृषि पत्रकारों और विज्ञान संचारकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि कारपोरेट को किसान और कारपोरेट के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए युवाओं की बड़ी टीम की जरूरत है जिसमें गांव में काम करने के लिए शहरों से अधिक पैसा भी है। इस फील्ड में कुशल और दक्ष युवाओं की मांग बढ़ रही है। चाहे वह मीडिया के विभिन्न माध्यम हों मल्टीनेशनल कंपनी हों या कारपोरेट हों। कानपुर में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय ने जागरण समूह के जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन के साथ मिलकर देश में पहली बार कृषि पत्रकारिता और विज्ञान संचार पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम की शुरुआत की है ताकि आने वाले समय में जरूरत के अनुरूप युवाओं की प्रशिक्षित और दक्ष टीम तैयार की जा सके। रामकृष्ण वाजपेयी
एसोसिएट प्रोफेसर
जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मॉस कम्युनिकेशन