यूं ही तो नहीं काटी होंगी तुम्हारी गर्दनें !

 यूं ही तो नहीं काटी होंगी तुम्हारी गर्दनें !

यूं ही तो नहीं काटे होंगें तुम्हारे अंगूठे !

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यूं ही तो नहीं मार दिया गया था पाश अपने ही घर में !
यूं तो नहीं मारा गया होगा गौरी लंकेश को !
यूं ही तो नहीं हुआ होगा घर से लापता स्वदेश दीपक !
वे सारे लोग जरूर कुछ सपने देखे होंगें !

यूं ही तो नहीं चले होंगे 
वॉटर टैंक ! 
आँसू गैस !
लाठियां, गोलियां और बंदूक

यूं ही नहीं पसरा होगा सन्नाटा शहर में !
तुमने इंकलाबी नारे जरूर लगाए होंगे !


यूं ही तो नहीं फूंकी होंगी तुम्हारी बस्तियां !
यूं ही तो नहीं उजाड़े होंगे तुम्हारे गांव !
तुमने उनके जैसे कपड़े पहनना,खाना और रहना जरूर शुरू किया होगा !

यूं ही तो नहीं काटी होंगी तुम्हारी गर्दनें !
यूं ही तो नहीं काटे होंगें तुम्हारे अंगूठे !
यूं तो नहीं कटती होंगी अम्बेडकर की उंगलियां !
तुमने पढ़ने का प्रयास जरूर किया होगा !   


     साभार-डाक्टर ईशम सिंह ''ईशू '',कैथल, हरियाणा, संपर्क-अनुपलब्ध

               संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षक,