यू. पी. में बाबा हैं , यू. पी. में बाबा ।

 उत्तर मीमांसा -------------

दशकों तक सपा और बसपा की जातिवादी राजनीति को झेलने वाले उत्तर प्रदेश में अब राजनैतिक परिदृश्य बदल चुका है और एक लोकोत्तर चरित्र वाले संन्यासी ने ऐतिहासिक कीर्तिमान रचा है । अतीतवादी भाजपा के स्वर्णिम दौर में कांग्रेस और बसपा अतीत की वस्तु बन गए हैं । जनता ने यह भी नैरेटिव खड़ा किया है कि अब धर्म या राष्ट्रवाद को भी विकास की चाशनी में पगा हुआ होना चाहिए । इस मठाधीश की विजय में शासन , राशन और महिला सुरक्षा की बड़ी भूमिका रही और लाख छवि सुधार की कोशिशों के बावजूद अखिलेश सरकार की अराजकता या गुंडई हैशटैग की तरह संलग्न रही । वे अपनी सार्वजनिक अनाचार की परछाइयों से बाहर निकल नहीं पाए । साथ ही निजीकरण , बेरोजगारी , किसान आन्दोलन और कर्मचारियों के पुरानी पेन्शन योजना की मांग और कुछ ब्राह्मणों की नाराजगी के बावजूद यदि राशन वितरण प्रणाली की जीत में मुख्य भूमिका रही तो इसका फलादेश यह भी है कि आज भी हमारे देश में बहुत गरीबी है और "गरीबी हटाओ" सिर्फ एक नारा बनकर रह गया है । यादविस्तान के हाथ आज भी मानवता के खून से लाल हैं तो इस संदर्भ में मुझे शेक्सपीयर के 'मैकवेथ' नाटक का वह दृश्य याद आ रहा है , जब चीफ गेस्ट डंकन की हत्या के बाद वह मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर कहता है कि लाख धोने पर भी हाथ साफ नहीं हो पा रहा है और इस खून से तो पूरा समुद्र लाल हो जाएगा । इधर गुलाल के उड़ने से अम्बर लाल हो गया है और होली का रंग कुछ ज्यादा ही गाढ़ा हो गया है । नेहा राठौर के " यू. पी. में का बा ? " का उत्तर अनामिका जैन 'अम्बर' ने दे दिया है ------

यू. पी. में बाबा हैं , यू. पी. में बाबा ।

काशी - काशी वे भी करते , जे करते थे काबा - काबा ।

तो आ ही गए बुलडोजर बाबा । किन्तु उन्हें सामाजिक समस्याओं को सम्बोधित करना होगा । केवल अस्मितामूलक विमर्शों से अब काम चलने वाला नहीं है । वैसे तो मैं निजीकरण का घोर विरोधी रहा हूँ किन्तु आज के अधिकांश कर्त्तव्यभ्रष्ट शिक्षकों को देखकर कई बार लगता है कि इन्हें तो पुरानी पेंशन क्या , वेतन भी नहीं मिलना चाहिए । इनकी उत्पादकता क्षरित होती गई है और यही कर्म - विमुखता सत्ता को निजीकरण को न्याय सम्मत ठहराने का आधार प्रदान करती है । साँड़ बनाम साँड़ के द्वंद्व में लोगों ने खेत चरवा लेना ही उचित समझा । बहरहाल अब हम खुलकर वन्देमातरम् गा सकेंगे और खुशी के मौके पर कह सकते हैं 

- अजित कुमार