किसका-किसका दुःख हम पालें
किसको-किसको दें निवाले
जिस मटके में छेद बहुत हैं
कब तक उसमें पानी डालें
आम आए और हो गए
कोयल के मुँह में छाले
जग हँसाई हो जिस काम में
ऐसे काम सदा ही टालें
हो नहीं सकता छेद गगन में
नाहक क्यों पत्थर उछालें
सच्चाई की बात करो तो
लग जाते हैं मुँह पर ताले
कभी न जाल में फँसे परिंदा
अब तू अपना जाल हटा ले ।
राम शर्मा परिंदा