शिव अर्धनारीश्वर, कृष्ण की रासलीला से मंत्रमुग्ध हुए कलाप्रेमी
निर्णय तिवारी/संतोष अनुरागी
खजुराहो/ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन व धार्मिक नगरी खजुराहो अपनी वास्तु कला, संस्कृति, व अध्यात्म के लिए प्रसिद्ध है। संधार प्रसाद शैली में निर्मित यह मंदिर अपनी भव्यता और संगीत मेहता के लिए जाने जाते है। इन विशाल मंदिर का निर्माण चंदेल राजाओ के द्वारा लगभग 1100 ईस्वी में करवाया गया था। जहां मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग और अलाउद्दीन का संगीत एवं कला एकेडमी के द्वारा बरसों से लगातार भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों पर आधारित महोत्सव का अनवरत रूप से आयोजन किया जाता रहा है। कंदारिया महादेव व जगदंबी मंदिर के आंगन में सज रहे। महोत्सव में देश के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यक - नर्तकियों द्वारा जो प्रस्तुतियां दी जा रही है। आम दर्शकों के लिए समझ से परे है। पश्चिम मंदिर समूह प्रांगण के मंदिरों में सबसे विशाल मंदिर के सौंदर्य व आभा के बीच बनाये गए। भव्य मंच पर देश के जाने माने नर्तक और नर्तकियों के द्वारा जो प्रस्तुतिया दी जाती है।वे इसकी शोभा को अधिक बड़ा देती है। जिसकी शोभा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। प्रतिदिन 7:00 बजे आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव की चौथी शाम कत्थक, भरतनाट्यम व कथकली के नाम रही।
48वे अन्तर्राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव की चौथे दिवस की प्रथम प्रस्तुति श्रीमती पूनम मुर्देश्वर के मार्गदर्शन से 6 बर्ष की आयु से कथक नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाली कथक नृत्यांगना सोनिया परचुरे के रही। जिसमें उन्होंने नृत्य की सुरुआत भगवान शिव के अर्धनारीश्वर नटेश्वर स्त्रोत से की। आदि शंकराचार्य कि इस रचना में भगवान शिव और माता पार्वती के अलौकिक स्वरूप का वर्णन है। जिसमे माँ पार्वती जी शिव से कहती है कि आप मुझे आपके द्वारा रचित संसार के बारे में बताइए, तब शिव कहते है कि मैं तुम्हें अपने आप में समा लूंगा ये रचना प्रकृति और पुरुष के मिलन की भी बयानगी है। नृत भावों से शिव और पार्वती को बखूबी साकार किया।
अगली प्रस्तुति में तीनताल में ठाट , आमद तत्कार की पारंपरिक प्रस्तुति दी। जिसमे आंखों की चाल और तत्कार में पैरों की तैयारी को दिखाया गया अपने अंतिम प्रस्तुति में कृष्ण की लीलाओ पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया गया। नंदन मनमोहन श्यामसुंदर पर आपने कृष्ण को साकार करने की कोशिश की। सोनिया परचुरे देश-विदेश के कई प्रसिद्ध मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं जिनमें मुख्य रुप से पुणे महोत्सव 2008, गोपी-कृष्ण संगीत महोत्सव 2005, हरदास नृत्य महोत्सव के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया अमेरिका जैसे देशों में भी आपने अपनी प्रस्तुति दी और प्रसिद्धि पाई
आज की दूसरी प्रस्तुति कथकली और भरतनाट्यम की रही।कोट्टायम केरल से कलामंडलम सुनील एवं पेरिस लक्ष्मी की जुगलबंदी ने कथकली एवं भरतनाट्यम की सौंदर्य से पूर्ण अचंभित कर देने वाली प्रस्तुति प्रस्तुत की। जिसमे भगवान कृष्ण महिमा पर आधारित रचना पर दोनों ने श्रंगार रहित नृत्य प्रस्तुति किया। उपरांत उनके द्वारा कृष्ण और गोपियों की दिव्य रासलीला का वर्णन किया गया। 12 वर्षों के बनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों के वापस आने पर, कृष्ण युद्ध रोकने के लिए कौरवों को समझाने का प्रयास करते हैं ऐसे में द्रोपती कृष्ण को उनका वचन याद दिलाती हैं कहती हैं आपने मुझे वचन दिया था। कि जिसने तुम्हारा अपमान किया है वह तो युद्ध भूमि में खून से लथपथ मिलेगे। आप अपना वचन ना भूलना मुझे यह केश दुर्योधन के लहू से धोना है तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी से कहा ऐसा ही होगा क्योंकि मैं धर्म के साथ ही रहूंगा। कथा बड़े ही ओजपूर्ण ढंग से नृत्य मुद्राओं में पिरोते हुए पेश किया। तो वही अंतिम प्रस्तुति में' गीतोपदेशम के माध्यम सेत् कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों को अपने दुश्मन के रूप में खड़ा देखकर शस्त्र नहीं उठा पाते, तब कृष्णा अपने अलौकिक दिव्य स्वरूप को धारण कर गीता का ज्ञान प्रदान करते हुए कथा को बड़े ही भावनात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के अंतिम प्रस्तुति दिल्ली की रागिनी नागर के द्वारा शिव स्तुति को नृत्य के माध्यम से बड़े ही भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया। जिसमें इनके द्वारा भगवान शिव के शांत और तांडव स्वरूप का वर्णन बड़े सौंदर्यता के साथ किया गया। इसके बाद उन्होंने खूबसूरती के साथ अपनी दूसरी प्रस्तुति दी। जिसके बाद अपनी अंतिम प्रस्तुति में उन्होंने कालिया मर्दन को दर्शाने का प्रयास किया। जिसमें भगवान कृष्ण कालिया नाग के ऊपर खड़े होकर किस प्रकार नृत्य कर कलिया नाग को चोट पहुंचाते हैं इसका नृत्य ही सुंदरता के साथ बखूबी प्रदर्षित किया गया।
ReplyReply to allForward |