बहुमूल्य वोट



चुनाव-प्रचार चल रहा था। सभी नेता रेणु के दरवाजे पर भी दस्तक देने लगे थे। महेश भी इस बार उम्मीदवार था, जो कि धनी व्यक्ति था। महेश चुनाव-प्रचार के दौरान वोट माँगने के लिए रेणु के दरवाजे पर आया और हाँथ जोड़ते हुए कहा- " मैडम, वोट मुझे ही दीजिएगा मैं विकास करूंगा।" रेणु कुछ बोल पाती उसके पहले महेश के सचिव ने रेणु के हाथ पर दो हजार का नोट रख दिया।
रेणु ने अपने बच्चों पर एक नजर डाला और बिना कुछ सोचे पैसे जल्दी से वापस कर दिया। रेणु ने कहा -" नेता जी, मैं गरीब ज़रूर हूँ लेकिन, मेरा वोट बिकाऊ नहीं हैं। मेरी ग़रीबी का मजाक मत उड़ाइये। आप यहाँ से चले जाइए।"
बिना कुछ बोले महेश वहाँ से चला गया। मन-ही-मन सोचने लगा कि आज के दौर में भी रेणु जैसे लोग हैं, जिनको अपने एक बहुमूल्य वोट की कीमत पता है।
रेणु का बेटा यह सब देख आवाक रह गया क्योंकि रेणु के पति की नौकरी लॉकडाउन में छूटे महीनों हो गए थे। रेणु भी लोगों के घर काम करती थी लेकिन, कोरोना के डर से सबने काम छोड़ा रखा था। बच्चे भूख से बिलख रहे थे। ऐसे विषम परिस्थिति में भी दो हजार हाथ में आने के बाद ठुकरा दिया था रेणु ने।
बेटे ने पूछा -" माँ आखिर वोट किसी को तो देना ही हैं न तो आपने पैसे क्यों नहीं ले लिया?"
माँ ने समझाते हुए कहा-" बेटा, अगर पैसे ले कर हम नेताओं को वोट करेंगे तो फिर, जो नेता आज हमारी कीमत लगा रहे हैं, कल देश का लगायेंगे और हमारा देश भ्रष्टाचार में लिप्त होता चला जाएगा। हम गरीब जरूर हैं लेकिन, पेट के लिए अपने देश की कीमत नहीं लगा सकते। कोई तो नेता होगा, जो ईमानदारी से चुनाव लड़ कर काम करेगा। हम उन्हें वोट देंगे।"
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रेणु जी, आपने मेरी आँखें खोल दी। हम जैसे पैसे वाले गरीबी का मजाक उड़ा कर वोट खरीद लेते हैं और देश के साथ गद्दारी करते हैं। आज मैं प्रण लेता हूँ कि मैं जीतूँ या हार जाऊं लेकिन वोट का व्यापार कभी नहीं करुंगा।"
दरवाज़े से आवाज़ आई। रेणु पीछे मुड़ी तो देखा महेश जी थे दरवाजे पर सर झुकाए खड़े थे । रेणु जी महेश को एक कभी न भूलने वाली सीख दी थी।

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नृपेन्द्र अभिषेक नृप