होली के रंग और कृष्ण गोपी की रासलीला से प्रांगण हुआ भक्तिमय
निर्णय तिवारी
खजुराहो/ विश्व प्रशिद्ध धार्मिक और पर्यटन नगरी खजुराहो में मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा आयोजित 48वेंं भारतीय शास्त्रीय नृत्य विधाओं पर आधारित खजुराहो नृत्य समारोह के अंतिम दिन तीन प्रस्तुतियां हुई। जिन्हें देखकर दर्शक भावविभोर हो गए। भारतीय सांस्कृतिक नृत्यों की मनमोहक प्रस्तुतियों से कलाकारों ने दर्शक से खूब तालियों बटोरी। यह महोत्सव शास्त्रीय नृत्य शैलियों को प्रदर्शन के लिए एक ऐसा प्रदर्शन स्थल है, जहां देश की ख्याति प्राप्त कलाकार अपने नृत्य की प्रस्तुति देने के बाद अपने आप को वैभवशाली और कृतज्ञ मानते हैं साथ ही अपनी प्रस्तुति के लिए सदैव उत्सुख नजर आते हैं। इन शास्त्रीय नृत्यों को परखने और समझने वाले अपना सब कुछ भूलकर नृत्य में इस तरह खो जाते हैं कि वह कलाकारों के ताल और चाप पर खुद भी थिरकते नजर आते हैं। मृदंग की तान में घुंघरू की खनक से खजुराहो नृत्य महोत्सव का यह मंच सात दिनों के लिए जागृत हो जाता है। कला, योग, अध्यात्म एवं संस्कृति नगरी खजुराहो, शिल्प कला के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पर्यटन नगरी में आज की शाम बसंत और फागुन का अदभुद प्रदर्शन देखने को मिला। अलि के चुंबन से कलियों की पुलकन देखते ही बनती थी। बासंती बयार के झोंके कलियों को छूकर गुजरी तो खुसबू फैल गई। बसंत कब फागुन में बदल गया इसका पता भी न चला। खजुराहो नृत्य महोत्सव में आज की शाम ऐसी नृत्य प्रस्तुति लेकर आई। कथक की जानी मानी हस्ती शमा भाटे ने ऐसे अद्भुत रंग भरे कि जिसका बखान करना मुश्किल है , फिर सुदूर उत्तर पूर्व भारत के मणिपुरी नर्तकों ने तो कमाल ही कर दिया। इन्ही प्रस्तुतियों के साथ 48 वें खजुराहो नृत्य समारोह का समापन हो गया।
नृत्य समारोह के आखिरी दिन की पहली प्रस्तुति के रूप में कथक और भरतनाट्यम की जुगलबन्दी देखने को मिली। भोपाल की भरतनाटयम नृत्यांगना श्वेता देवेंद्र और कथक नृत्यांगना क्षमा मालवीय ने अपने समूह की 14 नृत्यांगनाओं के साथ अद्भुत नृत्य प्रस्तुति दी। दोनों ने नर्मदा जी की आराधना से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की।" नमो नर्मदाय निजानंदाय.."। आदि और तीनताल में निबद्ध इस रचना में नर्मदा जी के 10 नामों के भाव नृत से प्रस्तुत किया गया। आगे बढ़ते हुए श्वेता जी ने अलारिपु की प्रस्तुति दी। ये भरतनाटयम शैली का एक शुद्ध नृत्य का प्रस्तुत किया। तिस्त्र जाति में त किट के बोल पर पद संचालन के साथ भरतनाटयम की मुद्राओं के साथ श्वेता जी ने इसे बखूबी पेश किया। उपरांत क्षमा जी ने - "जय जगदंबा कालिका " पर शुद्ध कथक नृत्य की प्रस्तुति दी। 13 मात्रा में निबद्ध इस रचना पर क्षमा जी ने कथक के मुख्य तत्वो को नृत भावों से पेश किया। उपरांत में सूरदास के पद "सुंदर श्याम सुंदसर लीला सुंदर बोलत बचन " कथक और भरतनाटयम का सुंदर रूप उभरकर सामने आया। भरतनाटयम में आदिताल जो कथक में तीन ताल हो जाती है पर बेहतरीन पद और अंग संचालन देखने को मिला। इसी के साथ कथक और भरतनाटयम को एकाकार करते हुए इस प्रस्तुति का समापन हुआ।
समारोह में दूसरी प्रस्तुति भी कथक की रही। पुणे से आई देश की जानी मानी नृत्यांगना शमा भाटे जो कोई आधी सदी से नृत्यरत हैं । उनके नृत्य संस्थान - "नादरूप " के कलाकारों ने बसंत और फागुन को अपने कथक से खजुराहो के मंच पर साकार किया। " उमंग" नाम की इस प्रस्तुति में बसंत भी था तो होली के रंग भी बिखरे और कृष्ण की बंशी के जादू ने तो मादकता के पैमाने तोड़ दिए। दरअसल शमा जी की इस नृत्य रचना में पृकृति की खूबसूरती के दर्शन होते हैं। तिलंग के स्वरों में कृष्ण की वंदना- "-वसुदेव सुतम ..." पर कलाकारों ने बेहतरीन नृतभाव दिखाए । फिर रथ पर सवार बसन्त का आगमन मन को लुभा गया। " कलियन संग करत रंगरलियां" वसंत और बहार के सुरों और त्रिताल में बंधी इस रचना पर भाव नृत से कलाकारों ने जैसे बसंत को साकार कर दिया। और फिर आगे बढ़े तो पहाड़ी के सुरों में होली- " रंग डारूँगी डारूँगी रंग डारूँगी नंद के लालन पे " की प्रस्तुति सभी को रंग बिरंगा कर गई। कृष्ण की बांसुरी का जादू अभी बांकी था सो पटदीप के सुरों में सजी बंदिश - बाजे मुरलिया बाजे- पर बाँसुरी और भीमसेन जोशी दोनों ही साकार हो गए। बंदिश पंडित भीमसेन की आवाज में थी आखिर में तीन ताल में भैरवी की बंदिश-" आज राधा बृज को चली," पर भाव नृत करते हुए तराने के बोलों के साथ खुद को समाहित करते हुए नृत्य का समापन हुआ। लगा कि सब परिपूर्ण है सब सबरंग है।
समारोह तीसरी और अंतिम प्रस्तुति इम्फाल से मणिपुरी नृत्य समूह तपस्या के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत मणिपुरी नृत्य से हुआ। ये अब तक कि ओजपूर्ण और जोशीली प्रस्तुति रही। नृत्य का आगाज़ नट संकीर्तन से हुआ। यह पूजा का एक रूप है जो महायज्ञ के रूप में माना जाता है। यह श्रीमद भागवत के सौंदर्य तत्व को प्रदर्शित करता है। मणिपुरी शैली में नर्तकों ने पुंग और करताल के साथ मंद अभिनय नृत्य संगीत के साथ इसे पेश किया। यूनेस्को ने मणिपुरी नृत्य संकीर्तन को अपनी प्रतिनिधि सूची में जगह दी है। अगली प्रस्तुति " एको गोपी एको श्याम " की रही। ये रचना श्रीमद्भागवत के रास पंचाध्याय से ली गई है। इस प्रस्तुति में कृष्ण के प्रति गोपियों के प्यार को बड़े सुंदर और अभूतपूर्व तरीके से प्रस्तुत किया गया। जिसमें नृत्य के माध्यम से दर्शाया गया कि कृष्ण के प्यार में गोपियों में जो अहंकार आया उसे कृष्ण द्वारा तोड़ने और उसका गोपियों को अहसास कराने की रही। जिसमे बताया कि प्रेम में अहंकार की कोई जगह नहीं को मणिपुरी नर्तकों ने बड़ी सुंदरता और भव्यता के साथ ओजपूर्ण तरीके से से पेश किया। अहंकार होने पर कृष्ण गोपियों को छोड़कर चले जाते हैं और अहंकार टूटने पर वापिस आ जाते हैं। हर गोपी के साथ उनकी उपस्थिति से इसे एको गोपी एको श्याम की संज्ञा दी गई। इन प्रस्तुतियों में 20 कलाकारों ने सहभागिता दी।
तपस्या कला संस्थान के कलाकार देश-विदेश में प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियाँ देकर विश्व भर के दर्शकों से जुड़ने में सफल रहे हैं। तपस्या कला संस्थान ने वर्ष 2005 में पुराना किला में संयुक्त राष्ट्र के 60 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में प्रस्तुति दी थी। तपस्या से जुड़े कलाकार फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडियन कल्चर, 2007 में न्यूयॉर्क में भारत की आज़ादी के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हुए उत्सव और 2016 में ग्लासगो महोत्सव और 2019 में कालिदास समारोह में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर चुके हैं।