घर-घर भीख माँग रहे रे पाँच साला भिखारी
रूप बदल के आय गये रे पाँच साला भिखारी
में किसको डालूँ भीख रे पाँच साला भिखारी
अरे रूप बदल के ..........
दूर से देखूँ तो नीक लगत हैं
निहार के देखूँ तो झूठे लगत हैं
अरे नारो में मोहे उलझाय रहे रे पाँच साला भिखारी
अरे रूप बदल के ..........
कोई कहत है इण्डिया गुड है
कोई कहत है इन्दिरा गुड है
अरे ये फील गुड में उलझाय गये रे पाँच साला भिखारी
अरे रूप बदल के ..........
कोई लुभावे हाथी पे चढ़के
कोई साइकिल पे चढ़के चरखा दाँव लगा रहा रे पाँच साला भिखारी
अरे मुखौटा बदलकर आ गये रे पाँच साला भिखारी
अरे रूप बदल के ..........
कोई दिखा रहा फूल कमल का
कोई हाथ का पंजा दिखा रहा रे पाँच साला भिखारी
अरे रूप बदल के ..........
मेरा देवरा बहुत सयानो
इनको अच्छी तरह पहचानो
अरे लक्ष्मण रेखा खींच गयो रे मेरो देवरा
अबकी भीख न डारूँ रे पाँच साला भिखारी
समझ गई मैं ये हैं रावण
इनकी नीयत है गड़बड़
अरे मायावी हिरण दिखा रहे रे पाँच साला भिखारी
रेख लाँघ मैं न आऊँ बाहर
सीता नही हूँ मैं हूँ वोटर
‘अग्नि परीक्षा’ देकर आओ रे तुम पाँच साला भिखारी
मेरे दरवाजे पर तभी आओ रे तुम पाँच साला भिखारी
‘अग्नि परीक्षा’ देकर आओ रे ...................
-- पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’
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