सुर लय ताल से कथक ओर भरतनाट्यम में आध्यत्म ओर प्रकति के दिखे रंग
निर्णय तिवारी
खजुराहो।
विश्व प्रशिद्ध धार्मिक और पर्यटन नगरी में मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा आयोजित 47 में भारतीय शास्त्रीय नृत्य विधाओं पर आधारित खजुराहो नृत्य समारोह का भव्य शुभारंभ हो गया पश्चिम मंदिर समूह के अंदर चंदेल कालीन कंदारिया महादेव मंदिर की अनुभूति के बीच मंच पर 26 तक चलने वाले इस समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगभाई पटेल और प्रदेश की पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ओर प्रदेश अध्यक्ष एवम खजुराहो सांसद बी डी शर्मा के द्वारा चंदेल कालीन स्मारक की अनुभूति के मुक्ताकाश मंच पर 26 फरवरी तक चलने वाले समारोह का शुभारंभ किया गया। देश का प्रतिष्ठित सात दिवसीय खजुराहो नृत्य समारोह रविवार से प्रारंभ हो गया ।
a नृत्यों में जीवन का आनंद है, क्योंकि नृत्यों में मानवीय अभिव्यक्तियों का रसमय प्रदर्शन होता है। वास्तव में नृत्य रस और भाव की अभिव्यंजना से युक्त होते हैं। भारतीय शात्रीय नृत्य हमारी संस्कृति और धर्म से जुड़े हुए हैं सो जाहिर है इनमें आध्यात्म का भी पुट है। यही वजह है कि जब नृत्यों की प्रस्तुति होती है तो इनसे ऐसी रसभीनी निष्पत्ति होती है जो हमें आनंदलोक में ले जाती है। आज खजुराहो नृत्य महोत्सव में भी कला रसिकों ने ऐसे ही आनंद की अनुभूति की। मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी द्वारा आयोजित 48 वें खजुराहो नृत्य समारोह के पहले दिन कथक महाराज बिरजू महाराज के शिष्य शिष्याओं ने अपनी नृत्य प्रस्तुति से न केवल बिरजू महाराज को मंच पर साकार किया लखनऊ घराने की भावभूमि से भी साक्षात्कार कराया। इसके बाद चेन्नई के शांता वीपी धनंजय और उनके साथियों ने अपनी भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुति से आध्यत्म के रंग भरे।
नृत्य के इस अनूठे और अद्भुत समारोह के पहले दिन कथक के महाराज स्वर्गीय पंडित बिरजू महाराज को नृत्यांजलि अर्पित की गई। बिरजू महाराज की पटु शिष्याओं में शुमार सुश्री शाश्वती सेन और बिरजू महाराज द्वारा स्थापित शास्त्रीय नृत्य एवं कला संस्थान कलाश्रम के विद्यार्थियों ने मिलकर कथक की अद्भुत प्रस्तुति दी। खास बात ये रही कि इस प्रस्तुति में बिरजू महाराज की शिष्या और बेटी ममता महाराज ने भी खूब रंग भरे।कोई एक घंटे की इस प्रस्तुति में शाश्वती जी और कलाश्रम के कलाकारों ने कथक की यात्रा के दर्शन कराए। मंदिरों से लेकर महलों ओर राजे रजवाड़ों से लेकर जागीरदारों की हवेलियों तक आधुनिक काल तक की कथक यात्रा को रसिकों ने इस एक घंटे की प्रस्तुति में देखा और समझा।
प्रस्तुति की शुरुआत बिरजू महाराज द्वारा रचित भजन " श्याम मूरत मन भाए" से हुई। मिश्र बसंत के सुरों में सजी इस रचना पर इतनी असरदार प्रस्तुति ने कथक के प्राचीन सौंदर्य को बखूबी उकेरा। रचना से लेकर संगीत और नृत्य संयोजन सब कुछ बिरजू महाराज का था और ये प्रस्तुति भी उन्हीं की स्मृतियों को समर्पित थी। इस प्रस्तुति में शाश्वती जी और उनके ग्रुप के कलाकारों ने कथक के लखनबी अंदाज़ को पूरी तरह से पेश किया। शाश्वती जी ने कृष्ण के भावों को इतनी जीवन्तता से पेश किया कि रसिक मुग्ध हो गए।
अगली प्रस्तुति होली की थी। इस प्रस्तुति में कथक के मौजूदा स्वरूप के दर्शन हुए। राग काफी के स्वरों में पगी कालका विंदादीन की ठुमरी " जसोदा के लाल खेलें होरी" पर शाश्वती जी ने अपने गुरु बिरजू महाराज को साकार करने की कोशिश की। होली की इस प्रस्तुति में लखनऊ घराने के नजाकती अंदाज प्रचुरता में दिखा। पैरों के काम से लेकर अभिनय में अंग संचालन, रंग मलते समय कसक मसक और आंखों की चाल रसिकों को भीतर तक रंगों से सराबोर कर गई। होली की इस प्रस्तुति में तेजी तैयारी का काम खूब शानदार रहा। कलाकारों ने तेजी तैयारी और चक्करों से कुछेक जगह लयकारी का काम भी बड़ी शिद्दत से दिखाया। इस प्रस्तुति में तबले पर उत्पल घोष, सितार पर चंद्रचूड़ भट्टाचार्य, गायन पर जयवर्धन दधीच एवं प्रियंका ने बखूबी साथ दिया।
आज की दूसरी प्रस्तुति भरतनाट्यम की थी। नृत्य के क्षेत्र में दिए जाने वाले 2020- 21 के राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से विभूषित नृत्य दंपति वी पी धनंजय एवं शांता धनंजय ने अपने नृत्य से आध्यात्म की भावभूमि साकार की। धनंजय दंपति भरत कलांजलि नाम से नृत्य संस्थान भी चलाते हैं। इस संस्थान के विद्यार्थियों ने भी प्रस्तुति में भागीदारी की। उन्होंने सबसे पहले प्रार्थना के भाव जाग्रत किये। चूंकि आज उन्हें कालिदास सम्मान से नवाजा गया था सो उन्होंने शुरुआत कालिदास द्वारा रचित कुमार सम्भावम के प्रार्थना के श्लोकों पर भाव नृत्य करके की। इसके बाद वंदे मातरम पर भारत माँ की वंदना की। दोनों ही प्रस्तुतियां लाजवाब रहीं। अगली पेशकस नृत्य स्वरावली की थी। मोहनराग और मिश्र चाप ताल में सजी ये प्रस्तुति दो नर्तकों का एक तरह का युगल नृत्य था जो कठिन लयकरियों से भरा हुआ था। अगली प्रस्तुति में कलाकारों ने जयदेव रचित दशावतार पर भाव प्रवण नृत्य किया। प्रलय पयोधि जले पर ग्रुप के नर्तकों ने अपने नृत भावों से भगवान विष्णु के दस अवतारों को साकार किया। इसके बाद कालिदास के कुमार संभव में वर्णित विवाह के बाद शिव पार्वती के मिलन की पहली रात को ग्रुप के कलाकार ने बखूबी पेश किया। इन प्रस्तुतियों में पढन्त और गायन पर शांता धनंजय थीं, जबकि राजेश ने भी गायन में साथ दिया। मृदंग पर रमेश और वायलिन पर कल्लई अर्शन थे। नृत्य में शोभना बालचंद्र, दिव्या शिवा, शिवदास राजन, श्रीनिवासन,आदि थे।