कहानी ***** मारिया******

          

             
                डॉ प्रभाकर शुक्ल
आज मौसम जैसे नाराज हो गया है। सुबह से झमाझम बरसात का कोप जारी है। सारे रास्ते, गलियां पानी में डूब गई है। मानो आसमान का वाटर टैंक फट गया हो। इसी कारण जरूरी होते हुए भी आज अस्पताल नहीं जा सका। शाम से तो कहर बरपने लगा । मूसलाधार बारिश के साथ बादलों की भयंकर गर्जना और कड़कड़ाती बिजली की चमक क्षितिज मैं गोधूलि बेला को डरावना बना रही हैं। टीवी पर कश्मीर के सोपुर क्षेत्र में आतंकवादियों से जबरदस्त मुठभेड़ का समाचार प्रसारित हो रहा है। लेकिन मौसम के उग्र रूप को देखकर टीवी को बंद करना पड़ा। कभी-कभी आसमानी बिजली का प्रहार टीवी के माध्यम से घर के अंदर तक पहुंच जाता है।                    ऐसी ही वह एक बरसाती रात थी जब मेरी पहली बार मारिया से मुलाकात हुई। इमरजेंसी वार्ड में उसका पहला दिन था। मारिया एक सभ्य सुशील और मृदुभाषी लड़की थी। चिकित्सा पेशा के प्रति लगन के कारण पीएमटी में असफल होने पर उसने बीएससी नर्सिंग का कोर्स किया। इस अस्पताल में काम करते उसे एक साल हो चुके थे। रोगियों की सेवा और अपने कोमल व्यवहार से वह अस्पताल में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुकी थी। इमरजेंसी वार्ड में उसकी एक महीने की पोस्टिंग थी। कुछ दिनों में ही मैं उसके बारे में बहुत कुछ जान गया। वह एक मध्यम परिवार से थी और उसका पति भी सरकारी मुलाजिम था। शादी के 8 वर्ष हो चुके थे पर वह संतान सुख से वंचित थे।                           मारिया बहुत अच्छा कॉफी बनाती थी। रात में फाइनल राउंड के बाद वह अक्सर कॉफी पीने की पेशकश करती जिसे मैं ठुकरा ना पाता। कॉफी के साथ हम बहुत देर तक बातें करते रहते। कभी-कभी इमरजेंसी होने पर उठ कर वार्ड में जाना पड़ता। हमारी अंतरंगता बढ़ती जा रही थी। दूरियां और औपचारिकताएं सिमट रही थी । मन की कोई बात अब बटी नहीं थी। संकोच की अदृश्य दीवार कब ढह गई पता ही ना चला।                                       मारिया का एक माह बाद सर्जरी विभाग से ट्रांसफर हो गया। कभी-कभी उससे आते जाते अस्पताल में भेंट हो जाती थी। वह बहुत शांत दिखती पर उसके ललाट पर एक गहरी चमक दिखाई पड़ती । वह मुस्कुरा कर सर झुका कर अपनी राह निकल जाती। मैं आंकलन करने की कोशिश करता पर मुझे उसमें परिवर्तन के कोई भाव नजर नहीं आते। मुझे भी उसे देख कर संतोष और खुशी का एहसास होता। अब मारिया की ड्यूटी  प्रसूति विभाग में थी। चूंकि  मेरी दिन  की ड्यूटी थी और उसकी रात की इसलिए सामना नहीं हो पाता। 1 माह और बीत गए। एक दिन मेरे वार्ड की नर्स ने बताया कि मारिया ने लंबी छुट्टी के लिए आवेदन किया है और उसके स्वीकृत होते ही वह अपने घर चली जाएगी। मेरे मन में हजारों सवाल एक साथ उठने लगे। मुझे मारिया से मिलना जरूरी लगा। 2 दिन बाद ही उससे भेंट हो गई। मैं एकटक उसे देखता रह गया। वह सच्चाई हुई स्थिर मंद मंद मुस्कुरा रही थी। वह कुछ कहना चाह रही थी पर उसके ओंठ जैसे सील गए हो। मुझे उसकी परिस्थिति का बौद्ध हो चुका था। मैं प्रायश्चित करना चाहता था मगर कैसे? मारिया तो खुश थी उसे किसी बात का कोई अफसोस नहीं था। पर मेरा कर्तव्य बोध मुझे बार-बार कोंच  रहा था। मैं चाह कर भी ना कुछ कह सका ना कर सका। शायद मेरे अंदर कोई खलनायक बैठ गया था। मारिया चली गई पर मुझे यह अभास नहीं था कि उसका जाना कभी लौट कर ना आने वाला था । 1 वर्ष तक उसके बारे में कोई समाचार नहीं मिला। मैं भी उसे लगभग भूल चुका था। सुबह से लेकर रात तक की व्यस्तता और थकान नींद के आगोश में समाप्त हो जाती।                                    एक दिन अचानक मारिया का फोन आया। उसने बताया कि वह एक बेटे की मां बन चुकी है । वह बहुत खुश थी । उसे मन की मुराद मिल चुकी थी। उसका नौकरी पर लौटने का कोई इरादा नहीं था। स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए उसने आवेदन भेज दिया था। इस बार मैंने मारिया से कहा कि यदि वह किसी तरह के सहायता की जरूरत समझे तो मुझे अवश्य बताएं। उसने हंसकर बस इतना ही कहा कि आपकी दुआएं काफी हैं।             समय पंख लगाकर उड़ रहा था। 5 वर्ष बीत गए इस बीच ना मारिया का कोई फोन आया ना अस्पताल से कोई समाचार मिला। सभी उसे बहुत याद करते थे। वह थी ही ऐसी।          उस रात मैं अस्पताल से राउंड लेकर घर लौटा था और चेंज कर रहा था कि अचानक मारिया का फोन आ गया। चहकते  हुए उसने बताया कि उसका बेटा स्थानीय कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने जाने लगा है। मैंने उसे बधाई दी और संतान के प्रति प्रतिबद्धता के लिए शुभकामनाएं भी। मैं मारिया की कुछ आर्थिक सहायता करना चाहता था पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। उसने कहा कि ऊपर वाले का दिया बहुत है उसके पास! आप की शुभकामनाएं ही मेरी प्रेरणा है।           देखते देखते 15 वर्ष बीत गए। मैं भी अब मारिया के प्रति बेपरवाह हो चुका था। मेरा फैसला और परिवार इससे अधिक सोचने की गुंजाइश भी नहीं थी। पर कल रात जो फोन आया उसने फिर से मेरे  स्मृति पटल पर मारिया की छवि को उकेर दिया। उसका बेटा दिल्ली में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। पिछले 2 दिनों से वह कॉलेज और हॉस्टल से गायब था। उसका कोई सुराग नहीं मिल रहा था। मारिया दिल्ली पहुंच गई। अगले दिन मैं भी दिल्ली पहुंच गया वहां मारिया से लंबे अंतराल के बाद फिर भेंट हुई वह काफी बदल गई थी वह सचमुच एक मां की प्रतिमूर्ति लग रही थी। कॉलेज प्रशासन की ओर से पुलिस स्टेशन पर एफ आई आर दर्ज हो गई थी। गहन जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि उसके साथ कॉलेज के दो और छात्र लापता थे जो कश्मीरी थे।             6 माह तक मैं और मारिया दिल्ली दौड़ लगाते रहे पर उसके बेटे का कोई सुराग नहीं मिला। उसने पीएमओ से लेकर मानवाधिकार तक पत्र लिख डाले पर ढाक के तीन पात। मानो उसके बेटे को धरती निकल गई या आसमान खा गया। अब वह मुझे अक्सर फोन करती। उसका रुदन सुनकर दिल कांप उठता। इससे आगे मैं कुछ करने में असमर्थ था जिसका मुझे बेहद अफसोस था। एक मां का अंतर्मन छलनी हो चुका था पर आशा की एक ज्योति अभी भी चल रही थी। उसे विश्वास था कि उसका बेटा जीवित है यही उसके जीने का बड़ा संबल था।                                          रात 8:00 बजे बारिश का शोर थम गया मौसम भी साफ होने लगा। मैंने पुणे टीवी का कनेक्शन जोड़ दिया। कश्मीर घाटी में उग्रवादियों से मुठभेड़ की खबर प्रमुखता से आ रही है सैन्य बलों को अंततः भारी सफलता मिली। एक पहाड़ी के ऊपर बने घर के अंदर से सैकड़ों राउंड फायर करने वाले चार आतंकवादी ढेर कर दिए गए थे पुलिस डॉग उनके पास से हथियारों का भारी जखीरा बरामद हुआ । उनकी पहचान दो विदेशी और दो कश्मीरी युवकों के रूप में हुई। घर के अंदर से एक नवयुवक का रक्त रंजित शव भी बरामद हुआ जिसके  हाथ-पैर बंधे थे और मुंह पर टेप चिपका हुआ था। युवक के पैंट के पिछले पैकेट से एक कागज मिला जिसने लिखा था, " मां मुझे माफ कर देना मैं देशद्रोही नहीं हूं। यह लोग कॉलेज से हम जैसे युवकों को कश्मीर घुमाने के बहाने ले जाते हैं और वहां आतंकी ट्रेनिंग कैंप में छोड़ देते हैं। वहां बहुत बुरी तरह से आत्मा दी जाती है। जेहाद या मौत दो ही विकल्प होते हैं। मुझे मजबूरन हथियार उठाना पड़ा पर मेरे मन को यह स्वीकार नहीं था। शायद इन लोगों को शक हो गया है पुलिस टॉप मेरे ऊपर चौबीसों घंटे निगरानी रखी जा रही है। मां मैं नहीं जानता कि मैं तुमसे फिर मिल पाऊंगा या नहीं पर मेरी ओर से यह साफ कर लेना कि तेरा बेटा जेहादी नहीं एक सच्चा देशभक्त है।"                      सुबह ही मारिया का फोन आ गया। वह बिलख बिलख कर रो रही है । उसका रोना मेरे लिए असहनीय हो रहा है । पांचवें शव की पहचान हो गई। वह मारिया का बेटा था जो दिल्ली के अपने कॉलेज से 6 माह से लापता था। वह कहे जा रही है कि क्या मेरी परवरिश में कोई कमी थी? मेरा बेटा गलत रास्ते पर जा ही नहीं सकता था। वह आतंकवादी कैसे हो सकता है ? उसकी मौत तो वतन परस्ती का सबूत है। मेरा शरीर कांप रहा है। जीभ  सूख कर मुंह में चिपक गई है। मैं मारिया के किसी बात पर कुछ भी नहीं बोल पा रहा हूं। मेरी आंखें नम है पर मन में गर्व की एक रोशनी है कि हमारा बेटा देशभक्त था।