बुंदेलखंड की लोक परंपरा का पर्व"महालक्ष्मी आठें'


बुंदेलखंड में कुंआर माह (आश्विन) कृष्णपक्ष अष्टमी को महालक्ष्मी व्रत रखा जाता है यह व्रत 16 दिन पहले से शुरू होता है राधा अष्टमी के दिन से महिलाएं लोटे में दूब रखकर जल ढारती हैं एवं सूत के धागे का गण्डा लेती हैं और प्रतिदिन उस गंडे में एक गांठ लगाती है।
महालक्ष्मी के दिन कच्ची मिट्टी से बने हुए हाथी की पूजा करते हैं बुंदेलखंड में कुमहार कच्ची मिट्टी से बना हुआ हाथी लेकर घर आता है जोकि चने की दाल से सजा हुआ होता है कुमहार को बदले में अनाज एवं रुपए पैसे दिए जाते हैं इस हाथी को पट्टे पर विधि पूर्वक सजाकर उसकी पूजा की जाती है बेसन एवं आंटे से बने हुए आभूषणों से महालक्ष्मी एवं हाथी का श्रृंगार किया जाता है और उस पर दीपक जलाएं जाते हैं।
पंडित जी को बुलाकर पोथी सुनी जाती है जिसमें 16 बोल की एक कहानी कही जाती है-
ऊंचो सो पुरपाटन गांव,
जहाँ के राजा मंगल सिंग,
अमयन्ति-दमयंती दो रानी,
बहमन देवता कहें कहानी,
सुनो महालक्ष्मी देवी रानी,
हमसे केते तुमसे सुनते,
सोला बोल की एक कहानी।।