स्थानीय भाषा में नवाचार कार्यक्रम का आधार


चिंतन वैष्णवपीवी मधुसूदन राव     

दुनिया के अधिकांश हिस्सों की तरह भारत में भी मुख्यधारा के नवाचार इकोसिस्टम में पूरी तरह से भाग लेने के लिए एक नवोन्मेषी को अंग्रेजी में दक्षता की आवश्यकता होती है। एक स्थानीय भाषा का नवोन्मेषीजो अंग्रेजी नहीं जानता हैसंभवतः एक अंग्रेजी बोलने वाले की तुलना में उतनी आसानी से निवेश नहीं जुटा पायेगाचाहे उसका नवाचार आधारित समाधान कितना भी रचनात्मक हो। ऐसा क्यों होक्या रचनात्मक अभिव्यक्ति कामकाज की भाषा पर निर्भर होनी चाहिएबिल्कुल नहीं! हमने इस सम्बन्ध में कला क्षेत्र में बहुत सारे उदाहरण देखे हैंजहां कुछ सबसे रचनात्मक कलाकार अंग्रेजी नहीं जानते हैं।

इसलिए यह स्थानीय भाषा में नवाचार कार्यक्रम (वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम-वीआईपी) तैयार करने का समय हैजो व्यवस्था के तहत रचनात्मक अभिव्यक्ति और भाषा को अलग-अलग  करता है। अटल नवाचार मिशन (एआईएम)भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम हैजिसका संचालन नीति आयोग करता है। मिशन ऐसे ही एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का शुभारंभ करने वाला है।

2011 की जनगणना के अनुसारकेवल 10.4 प्रतिशत भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं और इनमें से अधिकांश के लिए यह दूसरीतीसरी या चौथी भाषा है। आश्चर्य नहीं कि केवल 0.02 प्रतिशत भारतीय ही अपनी पहली भाषा के रूप में अंग्रेजी बोलते हैं। एक दशक बाद भी इस संख्या में बहुत बदलाव होने की संभावना नहीं है। फिर हमें स्थानीय भाषा के नवोन्मेषकों के लिए समान अवसर क्यों नहीं उपलब्ध कराना चाहिएजो हमारी 90 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। हम निश्चित रूप से जानते हैं कि यह समूह भीचाहे वे कोई भी भारतीय भाषा बोलते होंकम-से-कम बाकी लोगों के समान ही रचनात्मक प्रतिभा के धनी हैं।

स्थानीय भाषा में नवाचार कार्यक्रम (वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम-वीआईपी) बनाने का क्या अभिप्राय हैएक स्तर परइसका मतलब एक नवाचार इकोसिस्टम तैयार करना हैजहां एक स्थानीय नवोन्मेषक (ए) डिजाइन अवधारणा और उद्यमिता के आधुनिक विषयों को सीख सकता है, (बी) वैश्विक बाजारों तक पहुंच बना सकता है और (सी) निवेश आकर्षित कर सकता है। यह नवाचार और उद्यमिता से जुड़े जोखिमों को पूरी तरह कम करने के बारे में नहीं हैबल्कि यह सिर्फ भाषा की बाधा को दूर करने से सम्बंधित है। भारत के सन्दर्भ में इसका मतलब 22 अनुसूचित भाषाओं के लिए अलग-अलग इकोसिस्टम तैयार करना है।

स्थानीय नवोन्मेषकों के लिए डिजाइन अवधारणा और उद्यमिता को सुलभ बनाने का पहला कदम इन आधुनिक विषयों को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराने पर आधारित है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है- स्थानीय संस्कृतियों से इन्हें जोड़ना। एक भाषा से दूसरी भाषा में विषयों का अनुवाद युगों से होता आ रहा है। किसी भी अन्य पुस्तक की तुलना में हर गुजरते साल के साथ भगवद गीता का अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सरल अनुवाद का विचार नया नहीं है।

अब तक जो नहीं हो पाया हैवह है- इन विषयों को स्थानीय संस्कृतियों के अनुकूल बनाना। इसका सीधा अर्थ यह है कि इस तरह के अनुकूलन के लिए एक योजनाबद्ध तरीका मौजूद नहीं हैजो आवश्यक है। आखिरकारएक पंजाबी व्यवसायीएक तमिल व्यवसायी के समान नहीं हैंभले ही वे दोनों समान व्यावसायिक सिद्धांतों का पालन कर रहे हों। इसी तरहएक बंगाली उपभोक्तागुजराती उपभोक्ता के समान नहीं है। उनकी संस्कृतियों में सूक्ष्म अंतर हैंजिनके बारे में हम सभी जानते हैंलेकिन हमें इन अंतरों को व्यवस्थित रूप से व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। तोइसे कैसे किया जाएआइए हम इस पर एक प्रणाली के रूप में विचार करें।      

किसी भी विषय को सीखने के दो प्राथमिक आयाम होते हैं: विषयवस्तु और शिक्षणशास्त्र। उच्चतम स्तर परअध्ययन सामग्री के लिए सीखने के सिद्धांत और इसके अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिएएक डॉक्टर इस सिद्धांत को सीखता है कि मन और शरीर कैसे कार्य करते हैं और इसे अपनी चिकित्सा पद्धति में लागू करता है। सिद्धांत आगे जाकर अवधारणाओं और उनके अंतर्संबंधों में विभाजित होता है।

शिक्षाशास्त्रअध्ययन सामग्री को सिखाने और सीखने का एक तरीका है। किसी विषय के लिए मोटे तौर पर अध्ययन सामग्री समान होती है और इंटरनेट क्रांति के साथ आज दुनिया भर में कहीं से भी इस सामग्री तक पहुंचा जा सकता हैलेकिन यह अध्यापन-कला ही हैजो एक प्रभावी शिक्षक को दूसरे शिक्षकों से अलग करती है। उच्चतम स्तर परशिक्षाशास्त्र के तीन भाग हैं: शिक्षण उद्देश्यों का निर्माणअध्ययन सामग्री को पढ़ाने और ज्ञान-प्राप्ति के प्रभावी तरीकों का उपयोग करना और यह आकलन करना कि क्या इच्छुक व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं और यदि नहींतो अध्यापन-कला को बेहतर रूप में अपनाना। आज संकट यह है कि अध्ययन सामग्री तो आसानी से साझा हो जाती हैलेकिन अध्यापन-कला का तेजी से प्रसार नहीं हो पाता है।   

एक स्थानीय भाषा नवाचार कार्यक्रम को दो अतिरिक्त आयामों की आवश्यकता होती है: भाषा और संस्कृति। उपरोक्त चर्चा के आधार परकिसी विषय को किसी दूसरी भाषा में अपनाने के लिए अवधारणाओंउनके अंतर्संबंधों और उदाहरणों के अनुवाद की आवश्यकता होती है। जब हम अंग्रेजी से 22 भारतीय भाषाओं में अवधारणाओं और अंतर्संबंधों का अनुवाद करेंगेतो हम एक ऐसा संग्रह तैयार करेंगेजो किसी भी द्विभाषी व्यक्ति को अपनी मूल भाषा से दूसरी भाषा में जाने की अनुमति देगा।

सटीक उदाहरणों के चयन से ही भाषा आयाम और संस्कृति आयाम का ताल-मेल स्पष्ट होता है। संस्कृति का विचार बहुत व्यापक है। इसलिए हमें उस हिस्से पर ही विचार करना चाहिएजिसकी हमें यहां आवश्यकता है। संस्कृति के निम्नलिखित दो आयामों पर विचार करें: उद्यमिता संस्कृति और उपभोक्ता संस्कृति। क्षेत्र के आधार पर इनमें अंतर होता है। उद्यमिता संस्कृतिउच्चतम स्तर परक्षेत्र के लोगों की मान्यताओंविश्वासोंजोखिम लेने की ताकतक्षमता और महत्वाकांक्षाओं में दिखाई पड़ती है। इसी तरहउपभोक्ता संस्कृति उस क्षेत्र के लोगों की जरूरतोंइच्छाओंरीति-रिवाजों और सपनों में खुद को प्रकट करती है। यदि हम इन पहलुओं को समृद्ध उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैंतो हम किसी विषय को संस्कृति के अनुकूल बनाने में सफल होंगे।

भारत में सत्तर हजार से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप के साथउद्यमिता संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कई समकालीन उदाहरण मौजूद हैं। हालांकि स्थानीय भाषा में कामकाज करने वाले नवोन्मेषी इनमें शामिल नहीं हैं। इसलिए हमें क्षेत्रीय अनुभव और आंचलिक साहित्य पर भरोसा करना चाहिए। उदाहरण के लिएमुंशी प्रेमचंद ने जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा लोगों में अंतर्मन में गहरी बैठी आशाओं और आकांक्षाओं को चित्रित किया हैजिन्हें आज इस क्षेत्र की उद्यमिता और उपभोक्ता संस्कृति के अंतर्निहित तत्वों के रूप में समझा जा सकता है। अन्य भाषाओं में भीइस तरह की लोकप्रिय रचानाओं में ज्ञान-प्राप्ति की दृष्टि से विभिन्न उदाहरण मौजूद हैं। हमें चयनित उदाहरणों के माध्यम से संस्कृति की इस गहराई को अपने नवाचार इकोसिस्टम से जोड़ना चाहिए।

इस तरह के कार्यक्रम के लिए जरूरी क्षमता-निर्माण को ध्यान में रखते हुएअटल नवाचार मिशन ने भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से प्रत्येक मेंएक भाषा टास्क फोर्स की पहचान करने और उसे प्रशिक्षण देने के लिए आईआईटीदिल्ली के डिजाइन विभाग के साथ भागीदारी की है। प्रत्येक टास्क फोर्स में स्थानीय भाषा के शिक्षकडिजाइन अवधारणा विशेषज्ञतकनीकी लेखक और क्षेत्रीय अटल इनक्यूबेशन सेंटर का नेतृत्व शामिल हैं। इसके अलावाउद्योग जगत के अग्रणी व्यक्तियों ने डिजाइन अवधारणा विशेषज्ञता साझा करने की पेशकश की है और सीएसआर प्रायोजक उदारतापूर्वक इस मिशन में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं। दिसंबर, 2021 से अप्रैल, 2022 की अवधि में टास्क फोर्स को प्रशिक्षित करने के बादइकोसिस्टम को स्थानीय नवोन्मेषकों के लिए खोल दिया जाएगा।

भारत को इस तरह की पहल का शुभारंभ करने वाला दुनिया का पहला देश कहा जा सकता हैजहां 22 भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी की जरूरतों को पूरा करने वाला एक नवाचार इकोसिस्टम तैयार किया जा रहा है। निश्चित रूप सेअपनी भाषा और संस्कृति में डिजाइन अवधारणा और उद्यमिता को सीखने की सुविधा देनाकेवल एक शुरुआत है। हमारा काम तब तक पूरा नहीं होगाजब तक हम परामर्श व प्रोत्साहन देने वालोंबाज़ारनिवेशकों और नीति निर्माताओं तक आसान पहुंच की सुविधा जैसे अन्य इकोसिस्टम का निर्माण करने में सफल नहीं होते हैं। जब हम सफल होंगेतो हम उन लोगों की सुविधा के लिए रचनात्मक अभिव्यक्ति को कामकाज की भाषा के बंधन से मुक्त कर देंगेजो हमारे सच्चे वीआईपी हैं।

 

लेखकों के बारे में:      

डॉ. चिंतन वैष्णव अटल इनोवेशन मिशन के मिशन निदेशक हैं।

प्रो. पीवी मधुसूदन राव मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानदिल्ली के डिजाइन विभाग के प्रमुख हैं।

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