"नेकियों की दुहाई दी थी तुमसे खुदाई तो नहीं मांगी थी"
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भलाई ही तो मांगी थी आपसे बुराई तो नहीं मांगी थी
वफा की कमाई थी मेरी बेवफाई तो नहीं मांगी थी।
वक़्त की गर्दिश थी या फिर बदनसीबी थी मेरी
मिलन की ख्वाहिश थी मगर जुदाई तो नहीं मांगी थी।
गुलशन को खाक तुमने किया इसमें मेरा कसूर क्या है
महफिल की तमन्ना थी दिल में तन्हाई तो नहीं मांगी थी।
हमने भी कसम खाई हैं चट्टानों पर गुल खिलाने की
शिद्दत से वफा निभाई अपनी वफा पराई तो नहीं मांगी थी।
मिली थी थोड़ी खुशी उस हसीन खुशी को हम खो बैठे
अरमानों की मुस्कान मांगी थी जगहसाई तो नहीं मांगी थी।
क्या हुआ हमारा चेहरा देखकर अपना मुँह फेरते हैं लोग
जीने की आरजू थी हमारी भी बिदाई तो नहीं मांगी थी।
भलाई का ऐसा सिला मिलेगा हमने कभी न सोचा था
नेकियों की दुहाई दी थी तुमसे खुदाई तो नहीं मांगी थी।
सीताराम पवार
उ मा वि धवली
जिला बड़वानी
9630603339