राजेंद्र जादौन
चंडीगढ़। कौशल पूर्ण पत्रकारिता के हरावल विनोद दुआ का निधन पत्रकारिता के लिए कभी न भरने वाली क्षति हैं। उन्हे ह्रदय की गहराइयों से श्रद्धांजलि। पर बात लौट कर पत्रकारिता के क्षेत्र की सच्चाई पर आती है। तथ्यों को भाषा के प्रवाह में संजो कर जन जन तक पहुंचाने का कर्म ही पत्रकारिता है। अक्सर लोग पूछते है कि ये मिशन की पत्रकारिता क्या है? तो यही मिशन की पत्रकारिता है कि तथ्य पेश करने के लिए कोई समझौता न किया जाए। फिर चाहे कोई रूठे या प्रतिबंध लगाए। भले ही आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जोर है लेकिन बगैर शब्द के उसे भी साध्य नहीं बनाया जा सकता है। तो शब्द मेव जयते है। पत्रकारिता में यह नही कहा जा सकता कि शब्द तो शोर है तमाशा है, भाव के सिंधु में बताशा है। मर्म की बात होठों से ना कहो मौन ही भावना की भाषा है। तो दूरदर्शन में रहते हुए विनोद दुआ ने प्रभावी भाषा के साथ चुनावी विश्लेषण प्रस्तुत किए थे। बाद में भी उन्होंने सटीक पत्रकारिता की। मोजूदा दौर में उन्होंने पत्रकारिता करते हुए मुकदमों का सामना भी किया।
विनोद दुआ एक बड़ा संदेश पत्रकारिता जगत के लिए छोड़ गए है। पत्रकारिता का कोशल हासिल करो और भय एवम लालच मुक्त पत्रकारिता करो। भय और लालच ही तथ्यों को प्रस्तुत करने से रोकते है। पत्रकारिता के क्षेत्र में खड़े हुए संस्थान अगर सरकार की एजेंसी की तरह काम करने लग जाए तो पेशे के साथ न्याय नहीं होगा। राजनीति करने वाले दम भरते है कि वे अपनी भूमिका से लोकतंत्र को मजबूत करते है लेकिन सच्चाई तो यह है कि अगर पत्रकारिता सच्चाई का साथ छोड़ दे तो लोकतंत्र आवरण भर बना रह जायेगा। सत्ता पक्ष और विपक्ष को हाथ मिलाते देर नही लगती। सरकारी एजेंसियां सत्ता के साथ खड़ी होती है। वे नियम कानून और संविधान की मनमानी व्याख्या करने लग जाती है। अधिकारी वर्ग लोकतंत्र और संविधान के बजाय अपनी कार और बंगलो की चिंता करते है। दिखावा इस बात का करते है मानो वे कानून को सख्ती से पालना कर रहे है।
विपक्ष के नेता सरकार की बखिया उधेड़ करने के लिए पत्रकारिता का साथ न मिलने पर गोदी मीडिया जैसे विशेषण देते वो पत्रकारों द्वारा उनकी असलियत सामने लाने पर उपेक्षा करते नजर आते है। विनोद दुआ पत्रकारिता के क्षेत्र में इन अनुभवों से गुजरे थे। वे अपने कृतित्व से सटीक और कर्मठ पत्रकारिता का संदेश छोड़ गए हैं। दुआ को हृदय की गहराई से श्रद्धांजलि।