देश के क्रान्तिकारियों पर आधारित जायज हत्यारे का सफल मंचन
लखनऊ- 18 दिसम्बर 2021 नगर की प्रतिष्ठित नाट्य संस्था आकंाक्षा थियेटर आटर््स, लखनऊ द्वारा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (संस्कृति विभाग), नई दिल्ली के सहयोग से वर्ष 2021-22 के वेतन अनुदान के अन्तर्गत द्वितीय प्रस्तुति के रूप में देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित सुप्रसिद्ध नाटककार अल्बेयर कामू की मूल नाट्य रचना एवं हिन्दी नाट्य रूपान्तरण सुरेश भारद्वाज एवं दीपा साही लिखित नाट्य प्रस्तुति जायज हत्यारे का नाट्य मंचन नगर के वरिष्ठ रंग निर्देशक अशोक लाल के कुशल निर्देशन में स्थानीय बाल्मीकि सभागार, उ0प्र0 संगीत नाटक अकादमी परिसर, गोमती नगर लखनऊ में सांयकाल 05ः30 बजे मंचित किया गया। इस नाट्य प्रस्तुति को 60 दिवसीय कार्याशाला के अन्तर्गत तैयार किया गया था। नाटक का उद्घाटन श्री प्रदीप कुमार आई0ए0एस0 द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। मंच प्रस्तुतिकरण परिकल्पना में दीपिका बोस एवं श्रद्धा बोस का था। कथानक के अनुसार सुप्रसिद्ध नाट्ककार अल्वेयर कामू के नाटक ‘द जस्ट एसासिन्स’ का हिन्दी रूपान्तरण सुरेश भारद्वाज एवं दीपा शाही द्वारा किया गया नाटक को साहित्य की ऐसी विधा माना जाता है जिसमें समाज के सभी वर्गो की सहभागिता सम्भव है इसलिए सामाजिक विधा माना जाता है पश्चिम में ऐसे साहित्यिक आन्दोलन चले है जिसके केन्द्र में नाट्य साहित्य की महाभूमिका रही है चाहे वह एब्सर्ड नाटक हो या मनुष्य के आस्तितिवक प्रश्नों को उठाता प्रस्तुति की विविध भंगिमाओं को प्रस्तावित करता प्रयोगशील थियेटर या फिर जीवन के जटिल यथार्थ को समझने-समझाने के लिए पहल करने वाला यथार्थवादी नाटक इन सभी ने जो मुहावरा दिया है उससे साहित्य की तमाम विधाओं को प्रभावित करने के साथ-साथ विश्व के प्रत्येक सजग साहित्यकार को सोचने का, लिखने का बड़ा परिपेक्ष्य प्रदान करता है। अल्वेयर कामू ऐसे ही नाटककार रहे है जिनके नाटक विश्व की अनेक भाषाओं में अनुदित होने के साथ-साथ सफलता पूर्वक मंचित हुए है क्योंकि नाट्य साहित्य में मानवीय जिजीविषा, अनथक संघर्ष और मनुष्य जीवन के वास्तविक अर्थ को खोज पाने का ऐसा उपक्रम मिलता है जो अत्यन्त दुर्लभ है। ‘द जस्ट एसासिंस’ इनकी एक ऐसी नाट्यकृति है जो इन्कलाब के लिए लड़ने वाले क्रान्तिकारियों के माध्यम से कामू ने अपने समय की चिन्ताओं को ऐसे प्रस्तुत किया है कि वह देशकाल की सीमाओं का अतिक्रमण कर आज भी परेशान करती है और जब तक दुनिया में अन्याय, अत्याचार, शोषण और असमानता रहेगी तब तक ऐसी रचनाओं की प्रासंगिकता कम नहीं होगी। मात्र नौ पात्रों वाला ये नाटक आसानी से मंचित किया जा सकता है। इस दृष्टि से क्लैसिक की श्रेणी प्राप्त कर चुके इस नाटक, नाटकीय द्धन्द्ध तथा चरित्रों और घटनाओं की टकराहट से उब्जा तनाव जिस संश्लिष्ट कार्य व्यापार को दिखलाता है वह क्लाइमेक्स का एक नया प्रयोग बन जाता है। नाटक तथा रंगमंच से जुड़े सुरेश भारद्धाज और दीपा साही ने अल्वेयर कामू के इस नाटक पर ‘‘जायज हत्यारे’’ के शीषर्क में ऐसा रूपान्तरण किया है कि ये नाट्य रचना विदेशी नहीं लगती। पाठक और दर्शक इससे सहज भाव से ही जुड़ जाते है। मंच पर ओंकार नाथ की प्रधान भूमिका में अशोक लाल, सुखेन की भूमिका में मोहित यादव विवान की भूमिका में सौरभ सिंह विमी की भूमिका में ऋषभ तिवारी एवं देविका की भूमिका में दीपिका बोस, श्रद्धा बोस तथा आरती निगम, चीफ़ ऑफ पुलिस की भूमिका प्रभात कुमार बोस, फज़ल की भूमिका में आनन्द प्रकाश शर्मा गर्वनर की बीबी की भूमिका में अचला बोस पहला क्रान्तिकारी कर्मेन्द्र सिंह गौर, दूसरा क्रान्तिकारी सचिन सिंह चौहान, तीसरा क्रान्तिकारी अरूण कुमार चौथा क्रान्तिकारी सुश्री बबीता पंचवा क्रान्तिकारी में सुश्री पूजा श्रीवास्तव ने अपने-अपने सजीव एवं भावपूर्ण अभिनय से रंग दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। नाटक की सेट डिजाइनिंग सचिन सिंह चौहान ने बड़े ही आकर्षक ढंग से सजाया था। सेट निर्माण में कर्मेन्द्र सिंह गौर एवं अरूण कुमार ने किया था। रूप सज्जा में विश्वास वैश्य, अर्चना सिंह, सपना सिंह ने नाटक के अनुरूप कलाकारों का मेकअप किया था। संगीत संयोजन श्रद्धा बोस तथा प्रकाश परिकल्पना गिरीश अभीष्ट ने किया था। अशोक लाल द्वारा निर्देशित इस नाटक को भाव पूर्ण ढंग से मंच पर प्रस्तुत करने का आयाम बहुत सुन्दर रहा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह नाटक क्रान्तिकारियों के जीवन की एक सम्पूर्ण गाथा को प्रस्तुत करने में अत्यन्त सफल रहा। अन्त में संस्था के अध्यक्ष बी0एन0 ओझा एवं संरक्षक डा0 डी0सी0 पाण्डेय द्वारा समस्त कलाकारों को आर्शीवाद प्रदान किया। ...................................