दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कवि, आलोचक, चिंतक प्रो़ आनंद सिंह की बहुचर्चित महाकविता “अथर्वा, मैं वही वन हूँ” का विमोचन सम्पन्न हुआ। अथर्वा की रचना में 26 साल लगे और दिल्ली के नयी किताब प्रकाशन समूह से यह किताब इसी साल जनवरी में प्रकाशित हुई।
कोविड के कारण इस कृति का अप्रैल में प्रस्तावित विमोचन स्थगित हो गया था, लेकिन अंतत: देश के अति महत्वपूर्ण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली में एक भव्य समारोह में इस महत्वपूर्ण कृति का विमोचन हुआ और इस बहाने विचार चर्चा भी संभव हुई। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का आत्मीय स्वागत शाल-श्रीफल, पुष्पगुच्छ तथा पौधा प्रदान कर सत्यदेव ग्रुप ऑफ कॉलेजेज ग़ाज़ीपुर के प्रबंधक डॉ सानंद एवं निदेशक श्रीमती सुमन सिंह ने किया। इस अवसर पर साहित्य और संस्कृति तथा मीडिया की अनेक महत्वपूर्ण विभूतियाँ उपस्थित रहीं। कविता, संस्कृति और कला के पर्याय हिंदी की विरल शख़्सियत अशोक बाजपेयी जी की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ ।
सामाजिक विज्ञान के गंभीर चिंतक श्री अभय दूबे जी ने पुस्तक पर अपना सुचिंतित वक्तव्य दिया। डॉ आनंद जी ने लेखकीय वक्तव्य में अपनी रचना प्रक्रिया पर गंभीर बात करते हुए कहा कि इसकी रचना पिछले २५-२६ वर्षों में पूरी हुई। उन्होंने कहा कि कुछ अर्थवान शब्दों की खोज में कविता लिखी जाती है और लिख लिए जाने के बाद वह अपने ज्ञात आशयों और अर्थों का का अतिक्रमण भी करती है। यों भी अथर्वा जैसी बड़ी रचना पर संक्षेप में बात करना तनिक कठिन ही है लेकिन आनंद जी ने यह साफ़ करने की कोशिश की कि एक लेखक क्यों और किसके लिए रचता है। जो रचना स्वयं को नहीं बदलती वह पाठक को भी प्रभावित नहीं करती। कोई भी बड़ी रचना एक तरह से आत्म परिष्कार का काम भी करती है। कला की यह भी एक सिद्धि मानी जाती है कि वह अपनी स्वायत्तता के बाहर पसरे हुए सामाजिक आकाश को देखने के लिए किस तरह अपनी खिड़की खोल देती है। इस अवसर पर प्रो. आनंद ने एक कविता का पाठ भी किया।
अशोक बाजपेयी जी ने कहा कि पिछले चालीस-पचास वर्षों में हिंदी की कविता से “उदात्त, उदार, उज्ज्वल और ऊर्जस्वित” तत्त्व लुप्त हो गया था जिसे अथर्वा ने पुन: संभव और साकार किया। उन्होंने यह भी कहा कि कविता का एक काम याद करना है, दूसरा काम याद को संजोना है और तीसरा काम याद दिलाना भी है । अथर्वा की कविता यही काम करती है। इस तरह पिछले चालीस-पचास वर्षों की एक बड़ी उपलब्धि है यह कृति: अथर्वा। प्रो अभय दुबे जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि ईसाइयत ने जिस तरह की मनुष्य केंद्रित और युरोप केंद्रित सभ्यता का विस्तार किया है उससे केवल हिंसक समाज की ही रचना हुई है और उसकी श्रेष्ठता का वर्चस्व भी युरोपी देशों के पास रहा आया है। उसके प्रतिवाद में यह कृति मजबूती से खड़ी है। उन्होंने प्रो आनंद की कृति अथर्वा से अनेक उद्धरण देकर कहा कि आनंद जी ने पहली बार यह बताया है कि गद्योन्मत्त सभ्यताओं ने कितना आत्म विनाश किया है।
यह पहली बार इस कविता के मार्फ़त उजागर हुआ है कि सभ्यता विकास के क्रम में हमने कविता पर गद्य को बढ़त दी है और किस तरह इससे संवेदना का देश नष्ट हुआ है। जनसत्ता के सह संपादक कथाकार श्री सूर्यनाथ जी ने लेखक का अंतरंग परिचय दिया। चूँकि वे आनंद जी के बचपन के मित्र और सहपाठी रहे हैं, इसलिए एक अलग ही अंदाज में आत्मीयता से लबरेज़ परिचय के बहाने कुछ दिलचस्प बातें भी उन्होंने कहीं। संचालन का दायित्व निर्वहन आनंद जी के मित्र डॉ अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के संकायाध्यक्ष प्रो़ सत्यकेतु सांकृत ने किया। उन्होंने अपनी विशेष शैली में सदा की तरह मंच को जीवन्तता प्रदान की ।
इस आयोजन में हिंदी की प्रख्यात कथाकार आदरणीय ममता कालिया, प्रसिद्ध कवि और इग्नू की निदेशक प्रो सविता सिंह, प्रसिद्ध गीतकार कवि और आलोचक डॉ ओम निश्चल जी, हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो उदय प्रताप सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. कैलाश नाथ तिवारी, भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय भोपाल के पूर्व कुलपति श्री कमलाकर सिंह, अर्थशास्त्री श्री नमित वर्मा एवं श्रीमती जया वर्मा, प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो सुस्मिता पांडे, रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक श्री विधुकुमार पांडे, गगनांचल पत्रिका के संपादक डॉ आशीष कंधवे, प्रवासी साहित्य के संपादक डॉ राकेश पांडे, मुंबई विश्वविद्यालय हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो करुणाशंकर उपाध्याय, डॉ अंगद तिवारी, एनसीईआरटी के प्रोफ़ेसर डॉ लालचंद, डॉ वीरपाल सिंह, अधिवक्ता अमित गौरव, डॉ रागिनी सांकृत, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की निदेशक डॉ प्रियंका मिश्रा, लोकसभा के संपादक विकास नेमा, प्रसिद्ध पत्रकार और पेंटर गोकर्ण सिंह एवं कवि कलाकार डॉ वाजदा खान तथा मनोज मोहन ने उपस्थित रहकर कार्यक्रम का गौरव बढ़ाया। पारिवारिक सदस्यों में डॉ आनंद की सहधर्मिणी कवि-कथाकार सुमन सिंह, प्रो आनंद के अनुज और सत्यदेव ग्रुप ऑफ कॉलेजेज ग़ाज़ीपुर के प्रबंध निदेशक डॉ सानंद सिंह, मनिंदर सिंह बग्गा, गुरूप्रीत कौर, प्रबुद्ध राज, श्रीमती पद्मजा सिंह, मयंक राय, अनुपम भट्ट, राजेश सिंह, डॉ महेंद्र प्रजापति, प्रो. संजय बघेल, हरींद्र तिवारी, आशुतोष सिंह, संदीप सिंह, नीतू सिंह, उपस्थित रहे। कार्यक्रम में पधारे अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापन जनसत्ता के सह संपादक डॉ सूर्यनाथ सिंह ने किया। कार्यक्रम का सुंदर आयोजन नयी किताब प्रकाशन के अध्यक्ष अतुल माहेश्वरी ने किया तथा प्रकाशकीय आभार आदित्य माहेश्वरी ने माना।