हमारी संस्कृति और विरासत को लेकर चलने वाली भाषा हिन्दी है - हृदय नारायण दीक्षित


लखनऊ, 28 नवम्बर, 2021। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्त्वावधान में सम्मान समारोह का आयोजन हिन्दी संस्थान के यशपाल सभागार में किया गया। श्री हृदय नारायण दीक्षित, मा. अध्यक्ष, विधान सभा, उत्तर प्रदेश ने मुख्य अतिथि के रूप में सम्मान समारोह के गौरव को बढ़ाया। समारोह की अध्यक्षता डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा गयी।  

मुख्य अतिथि  श्री हृदय नारायण दीक्षित, सभाध्यक्ष डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त,  कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, श्री जितेन्द्र कुमार, प्रमुख सचिव, भाषा, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान एवं श्री पवन कुमार, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान सहित अन्य मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्रीमती पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी।

मुख्य अतिथि  श्री हृदय नारायण दीक्षित का उत्तरीय एवं प्रतीक चिह्न द्वारा स्वागत डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त,  कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, श्री जितेन्द्र कुमार, प्रमुख सचिव, भाषा, उ0प्र0 शासन एवं श्री पवन कुमार, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया। 

अभ्यागतों का स्वागत करते हुए डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त,  कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा आयोजित आज के इस सारस्वत समारोह के मुख्य अतिथि वैदिक वाड्मय के गहन अध्येता, भारतीय परम्परा के पुनराख्यान एवं विकास में अहर्निश संलग्न, संविधानवेत्ता, पत्रकारिता जगत् से सक्रिय रूप से निरंतर जुडे़  विधान सभा अध्यक्ष श्रीयुत् हृदय नारायण जी दीक्षित, भाषा विभाग के प्रमुख सचिव श्री जितेन्द्र कुमार जी, संस्थान के निदेशक श्री पवन कुमार जी, कार्यक्रम संचालन के दायित्व का निर्वहण कर रहीं डॉ. अमिता दुबे, भारत भारती, लोहिया, महात्मा गाँधी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अवंतीबाई साहित्य सम्मान के सम्मानित मंचस्थ क्रमशः डॉ. पाण्डेय शशि भूषण शीतांशु, डॉ. राम कठिन सिंह, डॉ. महेन्द्र मधुकर, डॉ. देवेन्द्र दीपक, डॉ. सीतेश आलोक तथा राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन सम्मान से सम्मानित गुजरात प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, अहमदाबाद के प्रतिनिधि श्री नरेन्द्र जोशी साथ ही साहित्य भूषण सहित सभी सम्मानों से सम्मानित अतिथि गण, उनके परिजन संस्थान के आमंत्रण पर पधारे मान्य अतिथिगण, संस्थान के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी बंधु, संचार माध्यमों के प्रतिनिधि गण मैं आप सबका उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की ओर से हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करता हूँ।


मैं सर्व प्रथम अपने मुख्य अतिथि  विधान सभा अध्यक्ष के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिनका मुझे स्नेह निरंतर मिलता रहा है और जिन्होंने मेरे अनुरोध को सहजता के साथ स्वीकार किया और यहाँ पधारे हैं। आपके आगमन से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ गयी है। माननीय अध्यक्ष जी की भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि है और इस संदर्भ में उन्होंने विपुल लेखन किया है। ‘भारतीय संस्कृति की भूमिका’, भारत की राजनीति का चारित्रिक संकट, सांस्कृतिक राष्ट्रदर्शन, ईशापास्योपनिषद् का पुनर्पाठ, सांस्कृतिक अनुभूति और राजनीति प्रतीति, ऋग्वेद और डॉ. रामविलाास शर्मा, अथर्ववेद का मधु, मधु अभिलाषा, पण्डित दीन दयाल उपाध्याय: द्रष्टा, दृष्टि और दर्शन, हिन्दी स्वराज: एक पुनर्पाठ, भारतबोध, मधु विद्या, मधुरसा आदि आदरणीय दीक्षित जी की महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। भाषा विभाग के प्रमुख सचिव श्री जितेन्द्र कुमार जी का मैं इस अवसर पर स्वागत करता हूँ, जिन्होंने संस्थान के कार्यों में निरंतर रुचि लेकर इसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में मदद की है। इस अवसर पर मैं संस्थान के निदेशक श्री पवन कुमार जी का भी स्वागत करता हूँ और इस बात के लिए उन्हें विशेष साधुवाद देता हूँ कि उन्होंने बजट की स्वीकृत धनराशि को उपलब्ध कराने में बड़ी तत्परता दिखायी।


मैं भारत भारती सहित सभी सम्मानों से सम्मानित रचनाकारों एवं विद्वज्जनों का अभिनन्दन करता हूँ जो संस्थान द्वारा दिये जाने वाले सम्मान को ग्रहण करने हेतु देश के अनेक स्थानों तथा विदेश से यहाँ पधारे हैं। उनके इस अनुग्रह के लिए हम उनके कृतज्ञ हैं तथा संस्थान की ओर से उनका अभिनन्दन करते हैं। इस अवसर पर हम उनके परिजनों का भी अभिनन्दन करते हैं जो इस आनन्दपूर्ण क्षण के साक्षी बन रहे हैं। हम अपने उन अतिथियों का भी स्वागत करते हैं, जो हमारे आमंत्रण पर यहाँ पधारे और जिनकी गरिमामयी उपस्थिति से संस्थान को बल मिला है। हम संस्थान के सभी सहयोगियों का भी अभिनन्दन करते हैं, जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अतिथियों के आने, उनके आवास आदि की व्यवस्था करने में संस्थान के हमारे सहयोगियों ने बड़ी तत्परता दिखायी है। मैं उन्हें फिर से साधुवाद देता हूँ। मैं जन-संचार माध्यमों के सभी प्रतिनिधियों का अभिनन्दन करता हूँ जो समाचार प्रसारित कर हमारा उत्साहवर्धन करते हैं और एक बंद कमरे में आयोजित कार्यक्रम को जनता तक पहुँचाते हैं।

मैं इस अवसर पर हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष तथा इस प्रदेश के यशस्वी, कर्मयोगी समाज और देश की सेवा में सर्वात्मना समर्पित  मुख्यमंत्री श्रद्धेय योगी आदित्यनाथ महाराज के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जो प्रदेश का नेतृत्व सँभालने के बाद उसके चतुर्दिक् विकास हेतु कृत संकल्प हैं, साथ ही जिन्होंने संस्थान के प्रति गहरी रुचि दिखायी है। आप के अभिभावकत्व में संस्थान को सम्मान संख्या एवं राशि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह संस्थान के लिए आह्लाद का विषय है कि  मुख्यमंत्री जी ने कार्यकारिणी के प्रस्ताव का सहर्ष अनुमोदन करते हुए भारत भारती सम्मान को विशेष दर्जा प्रदान किया और उसकी राशि पाँच लाख से बढ़ाकर आठ लाख कर दी है। अब हिन्दी गौरव, लोहिया तथा पं. दीनदयाल उपाध्याय, महात्मा गाँधी, अवंतीबाई सम्मान से सम्मानित विद्वान भी कुछ शर्तों के साथ भारत भारती सम्मान के लिए अर्ह हो गये हैं। पूर्व में ये सभी सम्मान एक स्तर के माने जाते थे।  मुख्यमंत्री जी ने भारत भारती के अतिरिक्त अन्य सम्मानों की राशि में भी वृद्धि कर दी है। एक अन्य सम्मान देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर देने की भी स्वीकृति प्रदान कर दी गयी हैं, जिसकी राशि हिन्दी गौरव सम्मान आदि के समकक्ष होगी। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि भारतवर्ष के किसी भी प्रांत की साहित्य अकादमी या 

संस्था इतनी बड़ी संख्या में सम्मान प्रदान नहीं करती। हिन्दी के हृदय प्रदेश उत्तर प्रदेश के लिए यह गर्व का विषय है। मुझे यह कहने में भी प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि पिछले लगभग आठ-नौ वर्षों से संस्थान के सभी कार्यक्रम समुचित रूप से अनवरत चल रहे हैं। 

आदरणीय बंधुओं, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की साहित्यकारों के सम्मान के अतिरिक्त अन्य गतिविधियाँ भी हैं जिनमें साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन, पुस्तकों का प्रकाशन, पाण्डुलिपियों के प्रकाशन हेतु आर्थिक अनुदान प्रदान करना, अस्वस्थ साहित्यकारों को चिकित्सकीय सहायता प्रदान करना, पत्रिका का प्रकाशन आदि प्रमुख हैं। हिन्दी संस्थान का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारत है इसलिए हिन्दी संस्थान सम्मानों के लिए अखिल  भारतीय स्तर पर प्रविष्टियाँ आमंत्रित करता है। वह विदेशों में हिन्दी के प्रसार के लिए संलग्न दो साहित्यकारों का सम्मान भी प्रतिवर्ष करता है। कोरोना काल में भी हिन्दी संस्थान की गतिविधियाँ बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुईं। संस्थान ने ऑनलाइन संगोष्ठियों का आयोजन तो किया ही कोरोना की स्थिति में सुधार होते ही ऑफलाइन कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। इस बीच कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ। संस्थान ने उन साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पुस्तकें प्रकाशित करना उचित समझा जिनका हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवदान है पर जिनकी चर्चा वादों के घटाटोप में दब गयी है। इस संदर्भ में बदरी नारायण चौधरी प्रेमधन, आचार्य चन्द्रबली पाण्डेय तथा आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के नाम उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई और अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार राधाकृष्णदास की रचनावली संस्थान की ओर से छप रही है। इस कार्य में हमें राधाकृष्णदास की पौत्री डॉ0 प्रतिभा अग्रवाल का अपूर्व सहयोग मिला है। यह ग्रंथ उनके ही सम्पादन में छप रहा है। 

आदरणीय विद्ववज्जन! कथा सम्राट मंुशी प्रेमचंद का महत्वपूर्ण कथन है ‘‘राष्ट्र की बुनियाद राष्ट्रभाषा है। नदी, पहाड़ और समुद्र राष्ट्र नहीं बनाते। भाषा ही वह बंधन है जो चिरकाल तक राष्ट्र को एकसूत्र में बाँधे रहता है और उसका शीराज़ा अर्थात् संरचना बिखरने नहीं देता।’’ भाषा का संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता के साथ गहरा सम्बन्ध है। भाषा मनुष्य की सबसे रहस्यमय और मौलिक उपलब्धि है। महादेवी वर्मा का यह कथन अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भाषा मनुष्य के आंतरिक और वाह्य जीवन के परिष्कार का आधार है। राष्ट्र केवल मनुष्यों का समूह नहीं है वरन् भूखंड के साथ एक सांस्कृतिक दाय भाग के अधिकारी प्रबुद्ध मानव समाज का उसमें योग आवश्यक है। इस सांस्कृतिक दाय भाग का भाषा के साथ अविभाज्य सम्बन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा के संदर्भ में या कि सम्पूर्ण भारतीय भाषा के संदर्भ में निर्णायक कदम नहीं उठाया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा और राष्ट्रभाषा या कि राजभाषा हिन्दी पर विशेष बल दिया गया है। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत हम सभी का यह दायित्व है कि हम भारतीय भाषाओं की समृद्धि में अपना योग दें। 

आज एक बड़ी चुनौती साहित्य में प्रचलित विभिन्न वृत्तांतों को लेकर भी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद साहित्य में उत्पन्न खेमेबाजी में उसके स्वरूप 

को विकृत करने का प्रयास किया गया। दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, स्त्री विमर्श, मुस्लिम विमर्श ने साहित्य के अखण्ड स्वरूप को क्षत विक्षत किया है। एक वृत्तांत इतिहास और साहित्य के शिखर व्यक्तित्वों को छोटा करके प्रस्तुत करने का भी चला है। इस संदर्भ में पहले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को निशाना बनाया गया, उनके सामने राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द को खड़ा किया गया। अज्ञेय बनाम मुक्तिबोध के द्वन्द्व से हम सभी परिचित हैं ही, जयशंकर प्रसाद को केवल विश्वविद्यालयों का कवि कहा गया। मैथिलीशरण गुप्त को हिन्दू पुनरुत्थानवादी कवि कहा गया। इधर हिन्दी के शिखर आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को निशाना बनाया गया है। उनके लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने ग्रियर्सन के कहने पर हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा और भक्तिकाल को केन्द्र में इसलिए रखा क्योंकि भक्तिकाल दास मनोवृत्ति को महत्व देता है। हम सब जानते हैं कि भक्तिकाल जातीय स्वाभिमान का काव्य है। वह लौकिक सत्ता के बजाय अलौकिक सत्ता को महत्व देता है और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने सम्पूर्ण लेखन में अनुकरण प्रवृत्ति की तीव्र भर्त्सना की है। उनका यह एक कथन ही उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व का परिचय देने के लिए पर्याप्त है - 

जो हृदय संसार की जातियों के बीच अपनी जाति की स्वतंत्र सत्ता का अनुभव नहीं करता वह देशप्रेम का दावा नहीं कर सकता। इस स्वतंत्र सत्ता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतंत्र सत्ता से है केवल अन्न धन संचित करने और अधिकार भोगने की स्वतंत्रता से नहीं। अपने स्वरूप को भूलकर यदि भारतवासियों ने संसार में सुख समृद्धि प्राप्त की तो क्या? क्योंकि उन्होंने उदात्त वृत्तियों को उत्तेजित करने वाली बँधी बँधायी परम्परा से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया, नयी उभरी हुई इतिहास शून्य जंगली जातियों में अपना नाम लिखा लिया।’’ ऐसे स्वतंत्र चेत्ता साहित्यकार को गियर्सन का अनुचर बताना नितांत निन्दनीय है। हालाँकि इस नरेटिव का खंडन बहुत से रचनाकारों और आलोचकों ने किया है, पर ऐसे प्रयत्नों का दृढ़ प्रतिकार आवश्यक है। स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव के अवसर पर हमारा यह दायित्व बनता है कि हम नकारात्मक दृष्टिकोण का दृढ़ता के साथ प्रत्याख्यान करें। यह उन स्वतंत्रचेत्ता साहित्यकारों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

एक बार पुनः  विधानसभा अध्यक्ष, परम श्रद्धेय महाराज श्री तथा अन्य सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। हमारे मान्य अतिथिगण देश के सुदूर प्रांतों से आये हैं। उन्हें यात्रा सम्बन्धी कठिनाइयाँ हुई होंगी, यहाँ आवास की व्यवस्था यद्यपि हमारी ओर से की गयी है, पर संभव है वह उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप न हुई हो। मैं उन सब त्रुटियों के लिए आप सबसे क्षमा याचना करता हूँ। उ0प्र0 हिन्दी संस्थान अपने दायित्व के प्रति सचेत है। वह अपनी गतिविधियों के विस्तार के लिए प्रयत्नशील है। इस संदर्भ में हम आपके बहुमूल्य सुझावों का स्वागत करेंगे। आपके सहयोग से उ0प्र0 हिन्दी संस्थान भाषा, साहित्य, समाज और संस्कृति के क्षेत्र में अपनी भूमिका का निर्वहण करता रहेगा। 

मुख्य अतिथि  श्री हृदय नारायण दीक्षित ने  - 1- भारत-भारती सम्मान - रु0 8.00 लाख (रु0 आठ लाख)- पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’, अमृतसर, 


2- लोहिया साहित्य सम्मान - रु0 5.00 लाख (रु0 पाँच लाख) - डॉ. रामकठिन सिंह, लखनऊ, 3- महात्मा गांधी साहित्य सम्मान - रु0 5.00 लाख (रु0 पाँच लाख) - डॉ. महेन्द्र मधुकर, मुजफ्फरपुर, बिहार, 4- पं. दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान - रु0 5.00 लाख (रु0 पाँच लाख) - डॉ. देवेन्द्र दीपक, भोपाल, 5- अवन्तीबाई साहित्य सम्मान - रु0 5.00 लाख (रु0 पाँच लाख) - डॉ. सीतेश आलोक, नोएडा, 6- राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन सम्मान - रु0 5.00 लाख (रु0 पाँच लाख) - गुजरात प्रान्तीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, अहमदाबाद, 7- साहित्य भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - (1) मो. मूसा खान (अशान्त बाराबंकी), बाराबंकी, (2) डॉ. शशि गोयल, आगरा, (3) डॉ. अरविन्द कुमार राम, प्रयागराज, (4) श्री दयानन्द जड़िया ‘अबोध’, लखनऊ, (5) डॉ. मंजु शुक्ल, लखनऊ, (6) श्री शिवाकान्त मिश्र ‘विद्रोही’, गोण्डा, (7) प्रो. हरिमोहन, आगरा, (8) श्री सुधीर विद्यार्थी, बरेली, (9) डॉ. सुधाकर मिश्र, ठाणे (महाराष्ट्र), (10) श्री धीरेन्द्र वर्मा, लखनऊ, (11) डॉ. चन्द्रपाल शर्मा, पिलखुवा, (12) डॉ. ओम प्रकाश शुक्ल ‘अमिय’, कानपुर, (13) श्री केशव प्रसाद वाजपेयी, रायबरेली, (14) डॉ. सुशील कुमार पाण्डेय ‘साहित्येन्दु’, सुलतानपुर, (15) श्री बी.एल. गौड़, नयी दिल्ली, (16) डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल, जबलपुर, (17) श्री सतीश आर्य, गोण्डा, (18) श्री रामकरन मिश्र सैलानी, बहराइच, (19) डॉ. तपेश्वरनाथ, भागलपुर, (20) श्री हरीलाल ‘मिलन’, कानपुर, 8- लोक भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - डॉ. जयप्रकाश मिश्र, वाराणसी, 9- कला भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - श्री सुशील कुमार सिंह, लखनऊ, 10- विद्या भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - श्री गिरीश्वर मिश्र, गाजियाबाद, 11- विज्ञान भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - डॉ. दुर्गादत्त ओझा, जोधपुर (राजस्थान), 12- पत्रकारिता भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) -श्री रामबहादुर राय, नयी दिल्ली, 13- प्रवासी भारतीय हिन्दी भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - सुश्री पुष्पिता अवस्थी, नीदरलैंड्स, 14-  हिन्दी विदेश प्रसार सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - श्रीमती रेखा राजवंशी (बंसल), सिडनी (आस्ट्रेलिया), 15- बाल साहित्य भारती सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - (1) डॉ. राकेश चक्र, मुरादाबाद, (2) श्री घमंडी लाल अग्रवाल, गुरुग्राम (हरियाणा), 16- मधुलिमये साहित्य सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - डॉ. दिलीप सिंह, अमरकंटक, 17- पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी साहित्य सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - श्री सुभाष चंदर, गाजियाबाद, 18- विधि भूषण सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - सुश्री सन्तोष खन्ना, दिल्ली, 19- सौहार्द सम्मान - रु0 2.50 लाख (रु0 दो लाख पचास हजार) - (1) श्रीमती रुनू शर्मा बरुवा, जोरहाट, असम (असमिया), (2) डॉ. लक्ष्मीधर दाश, पुरी (ओड़िआ), (3) श्री अनीस अंसारी, लखनऊ (उर्दू), (4) डॉ. धरणेन्द्र कुरकुरी, शिरसी, कर्नाटक (कन्नड़), (5) श्री महाराज कृष्ण संतोषी, जम्मू (कश्मीरी), (6) डॉ. जशभाई नारणभाई पटेल, गांधीनगर, गुजरात (गुजराती), (7)  डॉ. भारत भूषण शर्मा, जम्मू (डोंगरी), (8) डॉ. पी.आर. वासुदेवन ‘शेष’, चेन्नई (तमिल), (9) डॉ. सुमनलता रुद्रावझला, हैदराबाद (तेलुगु), (10) श्री राकेश प्रेम (राकेश मेहरा), अमृतसर (पंजाबी), (11) डॉ. केशव सिंह ‘प्रथमवीर’, पुणे (मराठी), (12) प्रो. डी. तंकप्पन नायर, तिरुवनन्तपुरम् (मलयालम), (13) प्रो. हरिदत्त शर्मा, प्रयागराज (संस्कृत), (14) श्री सुन्दरदास, कानपुर (सिंधी), 20- मदन मोहन मालवीय विश्वविद्यालयस्तरीय सम्मान - रु0 1,00,000=00 (रु0 एक लाख) - (1) डॉ. गीता सिंह, आजमगढ़, (2) डॉ. रामकृष्ण, लखनऊ को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। श्री बी0एल0 गौड़, श्री रामबहादुर राय एवं श्री तंकप्पन नायर के प्रतिनिधियों ने पुरस्कार ग्


सभी सम्मानित साहित्यकारों की ओर से आभार व्यक्त करते हुए भारत भारती सम्मान-2020 से सम्मानित डॉ. पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ ने कहा साहित्य व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ता है। समाज को जोड़ने का कार्य करता है। साहित्य राष्ट्र की एकता का संवाहक है। 

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन सम्मान से सम्मानित गुजरात प्रान्तीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, अहमदाबाद के प्रतिनिधि श्री नरेन्द्र जोशी ने संस्था का परिचय देते हुए हिन्दी के प्रति समर्पण के भाव को प्रदर्शित किया। 

श्री जितेन्द्र कुमार, प्रमुख सचिव, भाषा, उत्तर प्रदेश शासन ने कहा -  मुख्यमंत्री जी प्रेरणा से सभी पुरस्कार पारदर्शी हो ऐसा हमारा प्रयास रहा, जिसकी सभी ने सराहना की। हमारा श्रम आज फलीफूत हुआ है।

 मुख्य अतिथि श्री हृदय नारायण दीक्षित,  अध्यक्ष, विधानसभा, उत्तर प्रदेश ने अपने वक्तव्य में कहा - बोली जिसे वाणी भी कहते हैं के अर्थ को समझने के लिए अनुशासन की आवश्यकता पड़ी होगी तभी भाषा परिष्कार रूप में सामने आयी। हमारी संस्कृति और विरासत को लेकर चलने वाली भाषा हिन्दी है जिसमें अनेक ऐसे शब्द हैं जो दुनिया की अन्य भाषाओं में नहीं मिलते। साहित्यकारों के सानिन्ध्य में जो आनन्द मिलता है उसे कोई कवि ही गा सकता है। 

आभार व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक, श्री पवन कुमार ने कहा - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के प्रतिष्ठित वार्षिक सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे मा. अध्यक्ष विधान सभा श्री हृदय नारायण दीक्षित जी के प्रति हम हृदय तल से आभार व्यक्त करते हैं। आपकी गरिमापूर्ण उपस्थिति ने हमारे समारोह को गौरव प्रदान किया है। मा. कार्यकारी अध्यक्ष  डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त जी के प्रति भी हिन्दी संस्थान परिवार विशेष आभारी है। आपकी मार्गदर्शन में हम सहजतापूर्वक इस प्रकार के आयोजन सम्पन्न कर सके हैं। श्री जितेन्द्र कुमार, प्रमुख सचिव, भाषा का भी धन्यवाद। आपके सकारात्मक सहयोग से ही संस्थान अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित नहीं कर पा रहा है। 

हमारे आमंत्रण पर देश ही नहीं विदेश से भी पधारे साहित्यकारों का विशेष स्वागत हम करना चाहते हैं। आपकी उपस्थिति में हमारा सदैव की भाँति मनोबल बढ़ाया है। हमारा आतिथेय स्वीकार करने के प्रति हम धन्यवाद व्यक्त करना चाहते हैं। संस्थान को स्थानीय साहित्यकारों का सम्बल सदैव प्राप्त होता रहता है। इस प्रमाण आप सबकी उपस्थिति है। हम इसके लिए अत्यंत आभारी हैं और विश्वास दिलाना चाहते हैं कि आप सबके सहयोग से हिन्दी संस्थान इसी प्रकार अपनी गतिशीलता बनाये रखने के प्रति दृढ़ संकल्प है। पत्रकार बंधुओं, मीडिया कर्मियों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके माध्यम से हमारी गतिविधियाँ प्रकाश में आती हैं। हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। अन्त में आप सबके प्रति हृदय से आभार। 

समारोह का संचालन डॉ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया।