जयंती दिवस विशेष 30नवंबर(जीवभौतिकी के जनक भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस


जगदीश चंद्र बोस ने प्रयोग के माध्यम से यह सिद्ध किया कि पेड़ों में भी जान अर्थात  जीवन होता है।पेड़ों में भी ठंडी, गर्मी आवाज को महसूस करने की क्षमता है, काटने पर इन्हें भी दर्द महसूस होता है। जीव भौतिकी के जनक महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 में ढाका जिले के फरीदपुर के माइमसिंह गांव में हुआ था, जो कि अब बंग्लादेश का हिस्सा है।उनकी मृत्यु 23नवंबर 1937में 72वर्षकीअवस्था में मृत्यु हुई थी। जगदीश चंद्र बोस भारत के उन महान वैज्ञानिकों में शामिल हैं जिन्हें नोबल पुरस्कार दुर्भाग्यवश नहीं मिल पाया यद्यपि उनके शिष्य सत्येंद्र नाथ बोस को नोबेल पुरस्कार मिला। उनके समकालीन मारकोनी को भी जगदीश चंद्र बोस की खोज पर ही  भौतिकी का  1909 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। रेडियो तरंग, माइक्रो तरंग  विज्ञान के पिता का दर्जा प्राप्त जगदीश चंद्र बोस उच्च कोटि के विज्ञान कथा लेखक भी थे  ,रवींद्र नाथ टैगोर उनके अच्छे मित्रो में से थे।ग्यारह वर्ष की आयु तक इन्होने गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। बाद में ये कलकत्ता आ गये और सेंट जेवियर स्कूल में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की यद्यपि जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट की प्रेरणा से बोस ने भौतिकशास्त्र का स्नातक तक अध्ययन  किया।

भौतिकशास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ खराब रहने की वजह से इन्होने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार त्यागकर कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय से बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौटे तथा भौतिकी के सहायक प्राध्यापक के रूप में प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाने लगे।लेकिन मन वचन से जीव विज्ञान के प्रति आस्था कभी खत्म नहीं कर पाए अतः अपनी सभी भौतिकी की खोजों को पौधों के लिए पेड़ो के लिए समर्पित कर दिया परिणामस्वरूप विज्ञान की एक शाखा बायोफिजिक्स अर्थात जीवभौतिकी का जन्म हुआ। प्रेसीडेंसी कॉलेज में वह 1915 तक रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका जगदीश चंद्र बोस ने विरोध किया और बिना वेतन के तीन वर्षों तक काम करते रहे, जिसकी वजह से उनकी स्थिति खराब हो गई और उन पर काफी कर्जा हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेचनी पड़ी।ऐसी खुद्दारी आज तक किसी वैज्ञानिक में नहीं दिखी । लगातार रंग भेद से संघर्ष के बाद चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दिया गया। बोस एक अच्छे शिक्षक  भी थे, जो कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का उपयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र जैसे सतेन्द्र नाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री बने।

बोस और सूक्ष्म तरंगों की खोज:

इसी दौरान जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन एवं ध्रुवीकरण के क्षेत्र में अपने प्रयोग भी प्रारंभ कर दिये थे। लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था। मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।

आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था। बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युतचुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई।

इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक (पौधों) में भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।उन्होंने बताया की पौधों में भी विद्युत तरंगे संचरण करती हैं,केस्कोग्राफ उनकी उम्दा खोज है।

 बोस ने अपना पूरा शोधकार्य बिना किसी अच्छे (महगे) उपकरण और प्रयोगशाला के किया था इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे। "बोस इंस्टीट्यूट" (बोस विज्ञान मंदिर) इसी सोच का परिणाम है जोकि विज्ञान में शोधकार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।

जगदीश चंद्र बोस द्वारा लिखित पुस्तके: मोटर मेकैनिज्म आफ प्लांट ,रिसर्च आफ इरिटिबिलिटी आफ प्लांट्स, रिस्पांसस इन द लिविंग एंड नॉन लिविंग, द नर्वस मेकैनिज्म आफ प्लांट ,ग्रोथ एंड ट्रॉपिक मूवमेंट ऑफ़ प्लांट्स, लाइफ मूवमेंट इन प्लांट_ 1,लाइफ मूवमेंट इन प्लांट_ 2, प्लांट रिस्पांसस एज मीन ऑफ फिजिओलॉजिकल  इन्वेस्टिगेशन, कंपैरेटिव इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल।इसके अलावा बोस द्वारा लिखित कथाओं और निबंधों का संकलन "अव्यक्त "के नाम से बांग्ला और हिंदी में प्रकाशित हुआ।जगदीश चंद्र बोस द्वारा लिखित प्रसिद्ध शोध पत्र: जगदीश चंद्र बोस ने जीवभौतिकी  की दिशा में बड़ी ही जीवंतता के साथ कार्य किया इसलिए उन्हें बायोफिजिक्स अर्थात जीवभौतिकी का जनक भी माना जाता है। उनके प्रसिद्ध शोध पत्रों में, पौधों में विकास की गति, पौधों में भी होती है विद्युत चुंबकीय तरंगे ,सॉलि़ड स्टेट डायोड डिटेक्टर का अविष्कार, सूचना तरंगों की खोज, पेड़ों पर बाहरी वातावरण का प्रभाव ,केस्को ग्राफ पेड़ों के विकास नापने का यंत्र ,रेडियो तरंगों पर महत्वपूर्ण खोज, पेड़ों में भी तंत्रिका तंत्र होता है ,प्रकाश संश्लेषण और मौसम के बीच संबंध ,उन्होंने ऐसे ऐसे शोध पत्र लिखे जो विज्ञान में अनुसंधान के क्षेत्र में लगभग 60 वर्ष आगे की सोच रखते थे। जगदीश चंद्र बोस का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान क्यों महान हैं?: महान जीव भौतिकीविद जगदीश चंद्र बोस  ने मानव कल्याण के लिए विज्ञान में क्या-क्या योगदान किया है इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है जैसे उनके महानतम खोजों में से एक यह है कि पेड़ निर्जीव नहीं बल्कि सजीव है, बिना तार के सिग्नल भेजने की खोज ने इंटरनेट मोबाइल फोन वायरलेस कम्युनिकेशन सब कुछ आज बहुत आसान कर दिया है जो कि जगदीश चंद्र बोस की खोज पर ही आधारित है, पेड़ों पर रिसर्च करने के लिए कई तरह के डिवाइस जगदीश चंद्र बोस बनाते रहते थे लेकिन उनका कभी भी उन्होंने पेटेंट नहीं करवाया इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स को पहचानने वाला डिवाइस पहली बार इन्होंने ही बनाया था। जिस कार्य "बेतार के संचार" के लिए फिजिक्स का 1909 का नोबेल पुरस्कार मारकोनी को दिया गया था उस कार्य को मारकोनी से 2 वर्ष पूर्व ही जगदीश चंद्र बोस ने कर दिया था लेकिन उन्होंने इसका पेटेंट नहीं करवाया था बाद में उसकी खोज का श्रेय मारकोनी को दिया गया और उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया।  सम्मान और पुरस्कार :विज्ञान में अपने जीवन पर्यंत, अभूतपूर्व योगदान के लिए इन्हें कई बार सम्मानित किया गया था,जैसे,लंदन विश्वविद्यालय ने 1886 में डॉक्टरेट की उपाधि दी थी।1920 में इनको रॉयल सोसायटी का फेलो चुना गया।इन्स्ट्यिूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स की तरफ से इन्हें अपने वायरलेस हॉल ऑफ फेम मे शामिल करके सम्मानित किया गया।

ब्रिटिश सरकार इन्हें 1917 में "नाइट बैचलर"की उपाधि दी थी।स्वयं पर पूर्ण  भरोसा: जगदीश चंद्र बोस ने जब केस्को ग्राफ की खोज की थी उस उपकरण या यंत्र का प्रदर्शन रॉयल सोसाइटी के सामने किया जा रहा था उन्होंने पोटेशियम साइनाइड का घोल तैयार कराया था लेकिन रॉयल सोसाइटी में कुछ लोगों ने भारतीय होने के कारण इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया  और पोटेशियम साइनाइड का नकली घोल तैयार कर दिया जब जगदीश चंद्र बोस अपने प्रयोग को वैज्ञानिकों के समक्ष प्रदर्शित कर रहे थे तो उन्होंने 2 पौधे लिए और एक पौधे को पोटेशियम साइनाइड के घोल में डुबोया तथा दूसरे पौधे को सामान्य विलियन में डुबोया और दोनों  पौधों की वृद्धि नापने के लिए केस्को ग्राफ का प्रयोग किया लेकिन परिणाम नहीं आ रहे थे तथा उनके समकालीन वैज्ञानिक जो सोसाइटी में बैठे हुए थे वह उन पर हंसने लगे और उनके प्रयोग का मजाक उड़ाया,तभी जगदीश चंद्र बोस ने पोटेशियम साइनाइड का घोल  पी लिया सोसाइटी में सन्नाटा छा गया उन्होंने साथी वैज्ञानिकों को आश्वस्त किया कि वो नहीं मरेंगे क्योंकि पोटेशियम साइनाइड का घोल नकली है। अपने आप पर और अपनी खोज पर उन्हें इतना भरोसा था , यहां यह बताना लाजमी है कि पोटेशियम साइनाइड अत्यंत जहरीला पदार्थ है जिसके सेवन मात्र से ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है किंतु ने अपनी खोज पर पूर्ण विश्वास था । उन्होंने अपने सामने पोटेशियम साइनाइड का घोल तैयार करवाया और फिर अपने प्रयोग का प्रदर्शन रॉयल सोसाइटी के वैज्ञानिकों के समक्ष किया था फिर केस्कोग्राफ़ ने कार्य किया। यह उनके स्वयं पर विश्वास स्वयं पर भरोसे की सबसे बड़ी कहानी है।एक महान शिक्षक महान वैज्ञानिक  बायोफिजिक्स के जनक ,भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी योगदान देने वाले नोवेल पुरुस्कार विजेता छात्र देने वाले जगदीश चंद्र बोस की आज 143वीं जयंती पर उनका भावपूर्ण नमन ।

 - डॉक्टर रामानुज पाठक सतना मध्यप्रदेश।