लीला और रामचरन रोज सवेरे काम पर निकलते। राम चरन रिक्शा चलाता और लीला कुछ घरों में झाड़ू बर्तन करती।पर दोनों पति-पत्नी अपनी तंगहाली से उदास या निराश नहीं होते।बस उनका तो एक ही सपना था
बेटी को खूब पढ़ाना हैऔर डॉक्टर बनाना है।इसके लिए वे मेहनत मजदूरी से न चूकते। लीला कहती कि अब हमारा सपना बड़ा है तो मेहनत भी बड़ी ही करनी पड़ेगी। कभी कभी लीला मालकिन से पहले ही पैसे मांगती तो खरी खोटी सुनने को मिल ती। अरे तुम कामवालियों की यही आदत अच्छी नहीं लगती महीना पूरा हुआ नहीं पैसे मांगना चालू।लीला विवश थी यह सब सुनने के लिए पर वह अपने मन को मजबूत किए रहती हंसकर कहती दीदी बड़ी जरुरत है बिटिया की फीस भरनी है नहीं तो पेपर में नहीं बैठ पाएगी। मालकिन को दया आती तो देती नहीं तो टाल जाती।पर दोनों पति-पत्नी कभी न मेहनत से चूकते न उदास होते।उनकी बेटी सविता भी पूरे मन से पढ़ती। अपनी ज़हीन बेटी को इस तरह लालटेन की रौशनी में बैठकर तल्लीनता से पढ़ते देखकर दोनों पति-पत्नी फूले न समाते। डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा देकर जब सविता जब खुशी-खुशी घर लौटी तो दोनों पति-पत्नी ने राहत की सांस ली। सविता ने कहा अम्मा बाबू जी आज मैं बहुत खुश हूं। क्योंकि मेरा पेपर बहुत अच्छा हुअा है पर थोड़ा डर भी लग रहा है।अमरता अगर मैं पास न हुई तो तो क्या होगा। लीला बेटी की घबराहट समझ रही थी उसको दुलारते हुए बोली ना बिट्टी ना उदास नहीं होते तुम ज़रुर पास हो जाओगी।रात दिन एक करके पढ़ाई की हो। तुम अव्वल रहोगी बिट्टी । कड़ी मेहनत का फल मीठा होता है बिट्टी।
मेहनत का फल