गाँव

आज वर्षों बाद गाँव पँहुचा
शरीर से.मन तो उड़कर कितनी बार
घर के सामने वाले नीम तले खेल आया
ठंडी ठंडी मधुमती छाया . 
घुट्टना बनियान पहने यार 
करते इंतजार
मंथर मंथर बहती बयार 
निश्छल ब्यौहार
कंचे खनखनाते हाथ  जेबों में, दोस्त
निशाना लगते ही 
उछल पड़ते बाँसों,
मानो. मिल गया हो इन्द्रासन
खेलते खेलते बतियाते
खिसिया जाते ,जब हारते
कंचा उठाकर भागते
 नहीं कोई भेदभाव,ईर्ष्या और वैमनस्य
 सब के मन वाणी एक
 रंग,वर्ण, जाति अनेक
छोटी सी खुशहाल दुनियां
न कोई तनाव , तनाव क्या है
नहीं जानते थे, बस समरसता की
संस्कृति में पूरा गाँव
बैठता एक छाँव
प्रेम, मोहब्बत, अच्छाई, बुराई
सबके साथ रचते रहते
एक खूबसूरत दुनियां
जिसमें होते सब अपनी -अपनी
भूमिकाओं में, सबकी मौज
मस्ती रग रग मे झलकती 
सब था, पर दीवार नहीं थी ।