वो बीते दिन कहां छुप गए हैं ,
स्मृतियों में पलते थे हरदम ।
ना निश्चल सा मन है, ना पावन तन है,
न जाने कहां छुपा रावण है ।
पवन के झोंके आते हैं प्रतिपल,
मलय समीर न जाने कहां है।
वो बीते दिन कहां छुप गए हैं ,
चंदा भी फेरी देता तारों संघ ,
चांदनी न जाने कहां है ।
सूनी सी सड़कें ,थमा आसमां है
, धड़कन दिलों की न जाने कहां है।
मन में दहक है ,तन में अगन है,
ठहरा सा जीवन बहकने लगा है।
वो बीते दिन कहां छुप गए हैं ,
स्मृतियों में पलत थे हर दम ।।