अभी तिवारी जी नहा धो कर स्नानगृह से बाहर आये ही थे कि दरवाज़े की घण्टी बजी । खोला तो सामने किराने की दुकान वाले का नौकर रामदीन खड़ा था । सारा शरीर मिर्च, मसाले, धूल से अटा हुआ,चेहरे पर पसीने की चित्रकारी ऐसी जैसेकि वो पानी से मुलाक़ात को अरसे से तरस गया हो । शरीर से उठने वाली बदबू भी यही पैगाम दे रही थी । फिर भी उसकी बेहद थकी हुई जीर्ण शीर्ण काया को अपने द्वारा मंगाये सामान से लदाफंदा देख तिवारी जी ने आत्मीयता से कहा,‘अरे रामदीन आओ आओ,बड़े थके हुए लग रहे हो,पानी पियोगे ?’
‘नहीं पण्डित जी, मैं ठीक हूँ । अन्दर नहीं आऊँगा, मालिक ने आपका सामान भेजा है । मैं यहीं दरवाज़े पर रख देता हूँ आप उठा लीजिएगा ।’ये कहते हुए उसने ऐसा बुरा सा मुँह बनाया था जैसे तिवारी जी कोई अछूत हों और उसे कहीं छू न लें । उसने सामान दरवाज़े पर तिवारी जी की परछाईं से भी बचते हुए रखा । सामान रख,वो कबड्डी के खिलाड़ी की तरह ऐसे फुर्ती से पीछे हटा जैसे विरोधी टीम का खिलाड़ी यानि तिवारी जी उसे दबोचने आ रहा हो । फिर बिना दुआ सलाम वहाँ से वापस हो लिया । वापस जाते रामदीन को तिवारी जी आवाक से देख रहे थे । वो बदहवास सा इतना तेज़ चल रहा था जैसे सैकड़ों भूत उसके पीछे लगे हों । तिवारी जी मुस्कुराये और मन ही मन बोले,‘वाह रे कोरोना वाइरस ।’सामान उठा के अंदर रखते हुए,उन्हें कोरोना वायरस के प्रकट होने से पहले की एक घटना याद हो आई ।
उस दिन यही रामदीन सुबह सुबह आया था । दरवाज़ा उस दिन भी तिवारी जी ने ही खोला था । रामदीन के हाथ मे एक लोटा था और मुँह मे दातुन ।
‘पण्डित जी दही जमाने को जामन मिलेगा ।’
उसके हाथ मे लोटा देख तिवारी जी को शंका हुई कि कहीं ये सीधे दीर्घशंका का निवारण कर तो नहीं आ रहा । अतः उनसे बिना पुछे न रहा गया ।
‘कहाँ से आ रहे हो ।’
‘जी दिशा मैदान को गया था ।’
‘अजीब आदमी हो दीर्घशंका करके आ रहे हो यानि अशुद्ध, अस्वच्छ हो । एक तो उन्हीं हाथों से दातुन कर रहे हो ऊपर से जामन मांग रहे हो । जाओ नहा धो के आना ।’
‘मैं अशुद्ध, अस्वच्छ हूँ क्योंकि मैं छोटी जाति का हूँ ।’अचानक रामदीन को तिवारी जी से अपनी जातिगत जलन व बैर याद हो आयी ।
तिवारी जी का मन किया कि अपना सर पीट लें परन्तु अपना नेक विचार त्याग उसे समझाने का प्रयास किया,‘कैसी बेकार की बात करते हो,अशुद्धता और अस्वच्छता के विरुद्ध अनिवार्य सामाजिक दूरी वैज्ञानिक है इसमे जाति कहाँ से आ गयी ।’
लेकिन अहसास-ए-कमतरी ने उसके भेजे मे,तिवारी जी की बात न घुसने दी और वो गुस्से मे बड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया था ।
सनातन सभ्यता मे यानि हमारे यहाँ किसी की मृत्यु होने पर उसके शव को अग्नि देने वाले घर के सदस्य को बाहर वाले ही नहीं,घर वाले भी 13वीं के बाद यानि दो सप्ताह बाद ही छूते हैं । शव यात्रा से आए लोगों को घर के बाहर ही हाथ पैर धो, स्नान करके और कपड़े वहीं निकालकर, घर में प्रवेश मिलता है । अग्नि देने वाले का खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिया जाता है । इतने इन्तज़ाम के बाद भी 13 दिन तक उस घर में कोई प्रवेश नहीं करता ।13वीं के बाद यानि शुद्धिकरण के पश्चात, सिर के बाल हटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध माना जाता है और बाहरी लोगों का आवागमन प्रारम्भ होता है ।आप पूछेंगे कि लंबे चौड़े आडम्बर की क्या आवश्यकता है?
हम जानते हैं कि मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण दोनों ही स्थितियों मे मृतक का शरीर तमाम रोगों का घर हो सकता है। वो रोग हर जगह न फैले इसलिए दो सप्ताह का एकांतवास का नियम बनाया हुआ है ।आज प्रत्येक देश की सरकार कोरोना वायरसके डर से बाहर से आए व्यक्ति को दो सप्ताह तक एकांतवास मे रखती है जिसे क्वेरेंटाइन या आईसोलेशन पीरियड कहा जा रहा है । क्या हमारे यहाँ मृत्योपरान्त किया जाने वाला एकांतवास और इस आइसोलेशन पीरियड का कारण और निदान समान नहीं हैं ? फिर भी आजतक सारी दुनियाँ उसे भारतीय अन्धविश्वास कहकर हमारा मज़ाक बनाती रही है ।
यही नहीं हमारे यहाँ रजस्वला स्त्री को भी 4 दिन एकांतवास में रखे जाने का नियम है ताकि वह भी बीमारियों से बची रहें और आप भी बचे रहें । इसकी भी आधुनिकायें खूब हँसी उड़ाती रहीं हैं । जिसे नारीवादियों ने भी ख़ूब हवा दी और ख़ूब ज़हर बोया । उसकी कीमत आज तमाम औरतें तरह तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर चुका रही हैं।
एक और परम्परा थी कि बाहर से आए प्रत्येक व्यक्ति के हाथ पैर धुलवाये जाते थे । वह तब तक घर मे प्रवेश नहीं पाता था जब तक लोटे मेंहल्दी पड़ा जल लेकर, उस पर छिड़काव करके वो जल बहा नहीं दिया जाता था । आधुनिक समाज ने इसका भी खूब मजाक बनाया था । अब कोरोना के डर से सब हर दो घंटे मे हाथ पाँव धो रहे हैं ।
इसीप्रकार सुअर, भेड़, बकरी, मुर्गा, कुत्ता पालने वाले,माँस और चमड़ों का कार्य करने वाले या कोई भी गंदे या अशुद्ध कार्य करने वालों को ब्राह्मण व दूसरे प्रबुद्ध समाज के लोग तब तक नहीं छूते थेजब तक कि वह भलीभाँति स्नान करके शुद्ध न हो जाय। यही नहीं ये लोग जल्दी उनके हाथ का छुआ जल या भोजन भी नहीं ग्रहण करते । इस सबका सीधा सा कारण है कि अपने कार्य के दौरान इन लोगों के शरीर अनगिनत बीमारियों के जीवाणुओं के सम्पर्क मे आते हैं और उनके फैलने की सम्भावना होती है । परन्तु इस बात के लिए ब्राह्मणों पर छुआछूत करने का आरोप लगाया जाता रहा है । इन बातों पर इतना हो हल्ला मचा, ब्राह्मणों को इतनी गालियाँ मिलीं कि वो अपने आप से लज्जित रहने लगे ।
याद करिये जब आप छोटे थे तो आपके शरीर पर कपूर पानी का लेप किया जाता था ताकि सुगन्धित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें।बाहर निकलते समय माँ आपकी जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि रखा दिया करती थी ।यह सब कीटाणुरोधी वस्तुएँ हैं।लेकिन आपको इससे क्या आपको तो अपने शास्त्रों को गाली देने में और ब्राह्मणों को अपमानित करने में, उनको भगाने में जो परमानंद आता है वो शायद किसी और काम मे नहीं मिलता ।
यह अशुद्ध अस्वच्छ कार्य करने वाले लोग ही थे जो प्लेग, टी बी, चिकन पॉक्स, छोटी माता, बड़ी माता इत्यादि जैसी जानलेवा बीमारियों के संवाहक थे । इन बीमारियों के फैलने पर जब ब्राह्मणों ने समझाना चाहा कि बीमारियों से बचने के लिए आप इनसे दूर रहें तो लोगों ने उनकी निन्दा की और इतना अपमानित किया कि उन्होंने इस बारे मे बोलना ही छोड़ दिया ।
अजीब विडम्बना है हमारे भारत की । कल तक ये हाल था कियदि आप किसी से कहें कि जब कोई अशुद्ध, अस्वच्छ यानि गंदा हो तो हमे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए उसे नहीं छूना चाहिए, तो इस अनिवार्य सामाजिक दूरी के नियम को जाति से जोड़ कर भारतीय ही नहीं बल्कि सारा विश्व नाराजगी ज़ाहिर करता था और इसे जातिगत भेदभाव बताते हुए ब्राह्मणवाद/मनुवाद की संज्ञा दी जाती थी । इसे समाज पर कलंक बताया जाता था ।आज जब इस कोरोना वायरस के कारण सबकी जान पर बन आई है तो वही विश्व इस सामाजिक दूरी को हिन्दी मे बोले तो सोशल डिस्टेन्सिंग्नाम दे के जान बचाने का एक मात्र उपाय बता रहा है ।अबजब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप उसी ब्राह्मणवाद/मनुवाद को विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं । शास्त्रों के जिन वचनों को आपने लांछित व अपमानित किया था,आज यह उसी की परिणति है कि पूरा विश्व इस कोरोना वायरस के जूझ रहा है।
आज तिवारी जी को हिन्दी के दो मुहावरे याद आ रहे थे । एक ‘थूक के चाटना’ और दूसरा ‘आसमान पर थूकना’ । मुझे तो दोनों ही मुनासिब भी लग रहे हैं । आपका क्या ख़्याल है ?