बस छोटा ही रहा....

जब भी रहा औकात  से छोटा ही रहा
कभी पात्र ना बना बस  लोटा  ही रहा

ऐसा भी नहीं कभी बंदगी छोड़ दी हो
हरदम रब का बेआवाज़ सोटा ही रहा

जितना भी सोचा दूसरों का ही  सोचा
स्वार्थी ना बना दिमाग़ से मोटा ही रहा

किसी ने नहीं सोचा क्या था अंदर मेरे
सबको लगा ये सिक्का खोटा ही रहा

कितने लोग आए झूठे हमदर्द बनकर
मेरी वोट के मामले में तो नोटा ही रहा

सारी ज़िन्दगी बस ऐसे ही रहा "उड़ता "
कद बढ़ गया औकात से छोटा ही रहा.