नवगीत-डा. मृदुल शर्मा

जितनी विकसित हुई सभ्यता,


लोग हुए उतने बेढंगे।।

 

मिट्टी लाये खोद चाँद से,

उस पर जल भी खोज निकाला।

भागमभाग मची है ऐसी,

मानवता का पिटा दिवाला।

 

युवा त्रस्त हैं बेकारी से,

नौनिहाल हैं भूखे-नंगे।।

 

मजहब है खा गया मोहब्बत,

नफरत की फसलें लहरायींं।

लालच ने लूटी नैतिकता

झेल रह है सच तनहाई।। 

 

लोकतंत्र को हथियाने को,

लामबन्द हो गये लफंगे।।

 

देख पड़ोसी को गुर्राती

है अक्सर माचिस की तीली।

फैला है उन्माद इस कदर,

लगता भांग शहर ने पी ली।

 

छोटी छोटी बातों पर भी,

पल भर मे हो जाते दंगे।।