मुंबई शहर की पढ़ी-लिखी लड़की रचना शादी के बाद इंदौर आ गई। शादी के बाद रचना का शहर ही नहीं बदला बल्कि जिंदगी पूरी तरह ही बदल गई । रचना का पति पूरी तरह से अपनी मां के बस में था। शादी की भीड़ भाड़ में जो दो-चार दिन सुकून के निकले बस वही रचना की शादी के बाद के सुनहरी दिन रहे उसके बाद तो जैसे हर दिन एक जंग बन के रह गया। खुले विचार और माहौल की लड़की चारदीवारी में बंद के रह गई । सांस ऐसी मिली कि हर बात पर झगड़ा खड़ा हो जाता। यहां तक कि घर पर हाथापाई भी होने लगी। मां की बातों में पति उसे पीट देता । इन्हीं सभी कलह के बीच एक-एक कर 3 बच्चों को भी पैदा कर डाला। पति और ससुराल वालों को लड़के की बहुत इच्छा थी । आखिर सामाजिक ताना-बाना कुछ ऐसा बना है कि एक बार बेटी मायके से विदा कर दी गई तो वापसी नहीं होती। चाहे अनचाहे जिंदगी का आखरी सफर ससुराल से ही तय करना पड़ता है।
धीरे-धीरे समय बीतता गया रचना के बच्चे जवान हो गए और सास परलोक सिधार गई । सास के जाने से रचना की जिंदगी में बदलाव आ गया और वक्त ने एक नई करवट ली । पति अपनी ही दुनिया में गुम रहते थे सो वह उनकी आदत बन चुकी थी। अब रचना घर से बाहर आने जाने लगी। रचना की दोस्ती प्रदीप से हो गई, प्रदीप के साथ वक्त गुजारना रचना को अच्छा लगने लगा। दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई मगर समाज के बंदिशों के चलते एक अनचाहा सा डर बना रहता था । आखिर समाज की नजरों में उनका रिश्ता नाजायज था। मगर रचना के लिए कई सालों के बाद मिली आजादी और प्रदीप का सहारा जैसे यही एक जायज रिश्ता था। यह उसे अपने होने का एहसास दिलाता था। प्रदीप की अपनी परिस्थितियां थी उसका तलाक शादी के कुछ समय पश्चात ही हो चुका था। रचना के साथ जिंदगी तो बिताना चाहता था किंतु रचना अपने बच्चों से अलग नहीं होना चाहती थी। दोनों की जिंदगी यूं ही बटी बटी हुई चल रही थी।
फिर एक दिन प्रदीप का ट्रांसफर हो गया और उसे बाहर जाना पड़ा। शहरों के फासले ने रचना और प्रदीप के बीच एक फासला खड़ा कर दिया। रचना अपने बच्चों की जरूरतों में फिर से खो गई और प्रदीप अपनी नौकरी और अपनी जिंदगी में आगे निकल गया। कई बार हालात चाहे अनचाहे ही किसी रिश्ते में जोड़ देते हैं और फिर बदलते हालातों के हाथ जिंदगी नया मोड़ लेती चली जाती है। वक्त हर पल एक नई करवट लेता है।
नई करवट