आया है फिर से वसंत
प्रणय छंद लेकर अनंत।।

आया है, फिर से वसंत।।

 

मधुर गंध, सुंदर सुगंध।

चली वायु जब मंद-मंद।

सम्मुख सरसों के पुष्प गुच्छ।

जग वैभव लगते सभी तुच्छ।

जग में है आई नव बहार।

हैं सभी प्रफुल्लित निर्विकार।

लिखते हैं निराला और पंत।।

आया है, फिर से वसंत।।

 

प्रकृति यूं सुहावन-मनभावन।

ज्यों लगता, फिर आया सावन।

हरा, लाल , नारंगी, पीला।

मौसम एकदम रंग-रंगीला।

सूनी धरती की है भरी गोद।

हर ओर ठिठौली और विनोद।

गाते नर, किन्नर और संत।।

आया है, फिर से वसंत।।